दही हांडी महोत्सव: जनमाष्टमी का जीवंत और रोमांचक उत्सव

दही हांडी एक रंगीन और धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। यह उत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मनाया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व है। दही हांडी उत्सव, जन्माष्टमी के तीसरे दिन मनाया जाता है। इस उत्सव में दही से भरे मटके का प्रतीकात्मक महत्व है, जो भगवान कृष्ण के बचपन की एक घटना को दर्शाता है, जो इतिहास और परंपरा में गहराई से जड़ी हुई है।

दही हांडी का इतिहास

दही हांडी उत्सव का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की कहानियों से जुड़ा हुआ है। भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था, लेकिन उनका पालन-पोषण नंद और यशोदा द्वारा गोकुल में हुआ। बचपन में, कृष्ण अपने नटखट स्वभाव और शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। श्रीकृष्ण के बचपन से जुड़ी एक कहानी है, जिसमें उनका और उनके ग्वाल-बालों का मक्खन और दही के प्रति विशेष प्रेम दर्शाया गया है।

गोकुल में कृष्ण और उनके साथी ग्वाल-बाल, जिन्हें ‘गोपाला’ कहा जाता था, रात के समय घरों से मक्खन और दही चुराया करते थे। गांववाले अपनी खाने-पीने की चीजों को कृष्ण और उनके साथियों से बचाने के लिए उन्हें ऊंचाई पर बांध देते थे। लेकिन कृष्ण आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने अपने दोस्तों की मदद से मानव पिरामिड बनाकर मटकों तक पहुंचने का उपाय खोजा। वे अपने ग्वाल-बालों के साथ मिलकर इन मटकों को तोड़ते और उसमें से निकली चीजों को आपस में बांट लेते थे। यह कहानी कृष्ण के नटखट स्वभाव और उनके साधारण भोजन के प्रति प्रेम को दर्शाती है।

दही हांडी का सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाना 19वीं सदी में विशेष रूप से महाराष्ट्र में शुरू हुआ। मुंबई और पुणे जैसे शहरों में यह उत्सव छोटे स्तर की प्रतियोगिता से बढ़कर एक बड़े आयोजन में तब्दील हो गया, जिसमें प्रतिभागी बड़े-बड़े पिरामिड बनाते हैं, ताकि ऊंचाई पर बंधे मटके तक पहुंच सकें। इन मटकों में दही, मक्खन, गुड़ आदि रखा जाता है।

दही हांडी कैसे और कहां मनाई जाती है

दही हांडी का आयोजन भारत के विभिन्न हिस्सों में होता है, लेकिन विशेष रूप से महाराष्ट्र में यह एक प्रमुख सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस आयोजन का मुख्य आकर्षण मानव पिरामिड का निर्माण होता है, जिसमें ‘गोविंदा’ नामक समूह मटके को तोड़ने का प्रयास करता है। मटका (हांडी) एक रस्सी के सहारे ऊंचाई पर बंधा होता है, जिसे तोड़ना काफी कठिन होता है। यह मटका आमतौर पर दो संरचनाओं या दो ऊंचे खंभों के बीच में लटकाया जाता है।

मुंबई में दही हांडी का उत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। स्थानीय समुदायों और सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न समूह ऊंची और जटिल हांडियों के निर्माण में प्रतिस्पर्धा करते हैं। गोविंदा, जोकि युवा पुरुष और कभी-कभी महिलाएं भी होते हैं, इस आयोजन के लिए हफ्तों पहले से तैयारी करते हैं। इस आयोजन में संगीत, जयकारों और अन्य लोगों के उत्साहवर्धन के साथ प्रतिभागी रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर भाग लेते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में यह उत्सव अब भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है, जहां कम लोग होते हैं और आयोजन के वास्तविक पहलू पर अधिक ध्यान दिया जाता है। यहां, मुख्य आयोजन में बड़े पैमाने पर पूजा, कृष्ण की कहानियों और भजनों का गायन शामिल होता है। इस उत्सव का आयोजन स्थानीय मंदिरों और घरों द्वारा किया जाता है।

दही हांडी कैसे बांधी जाती है

स्थान का चयन:

दही हांडी का आयोजन करते समय सबसे पहले उपयुक्त स्थान का चयन करना जरूरी होता है। यह स्थान एक खुला मैदान, दो इमारतों के बीच का स्थान, या मंदिर के आंगन में हो सकता है। इस स्थान पर पर्याप्त जगह होनी चाहिए, ताकि मानव पिरामिड बनाने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हांडी को कितनी ऊंचाई पर बांधना है, यह आयोजन के पैमाने पर निर्भर करता है। बड़े आयोजनों में हांडी को 10 से 30 फीट या उससे अधिक ऊंचाई पर बांधा जाता है, जबकि छोटे स्थानीय आयोजनों में इसे कम ऊंचाई पर भी बांधा जा सकता है।

सहारा संरचना तैयार करना:

यदि हांडी को दो इमारतों या खंभों के बीच बांधना हो, तो एक मजबूत रस्सी का उपयोग करना चाहिए। यह रस्सी इतनी मजबूत होनी चाहिए कि वह भरे हुए मटके के वजन को संभाल सके और मटका टूटने पर भी उस पर पड़ने वाले बल को सह सके। कई बार रस्सियों को इस तरह से बांधा जाता है कि वे एक निश्चित दूरी पर एक-दूसरे से क्रॉस करते हैं, ताकि हवा या दबाव में हांडी ज्यादा न हिले।

हांडी को बांधना:

हांडी को मिट्टी के बर्तन से बनाया जाना चाहिए और उसके गले पर बांधने के लिए एक लूप या हुक होना चाहिए। अगर हांडी पर लूप नहीं है, तो एक मजबूत रस्सी को उसके गले पर मजबूती से लपेटकर लूप बना सकते हैं। इसके बाद हांडी को रस्सी पर या कई रस्सियों पर ऊंचाई पर बांधा जाता है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि पिरामिड बनाने के दौरान हांडी को मजबूती और संतुलन में रहना चाहिए, ताकि वह हांडी तक पहुंचने से पहले ही गिर न जाए।

हांडी को भरना:

हांडी को आमतौर पर दही, मक्खन, छाछ या दूध से भरा जाता है, जो भगवान कृष्ण के प्रिय भोजन का प्रतीक होते हैं। इसके अलावा कुछ लोग हांडी में मिठाई, फल, पैसे या अन्य चीजें भी डालते हैं। हांडी को भरने के बाद उसके ऊपर एक कपड़े या ढक्कन से ढक दिया जाता है, ताकि उसमें से सामग्री गिरने से बच सके।

दही हांडी का महत्व

दही हांडी का उत्सव केवल भगवान कृष्ण की नटखट और बाल सुलभ शरारतों की याद दिलाता है, बल्कि यह हमें उनकी जीवन के प्रति सरल दृष्टिकोण और प्रेम का प्रतीक भी है। भगवान कृष्ण का मक्खन और दही से प्रेम, उनके बालपन की मासूमियत और साधारण जीवन जीने की प्रेरणा देता है। दही हांडी का पर्व समाज में सहयोग, एकता और सहिष्णुता का संदेश भी देता है। जब गोविंदा समूह मिलकर पिरामिड बनाते हैं और हांडी को तोड़ते हैं, तो यह teamwork और सामूहिक प्रयास की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।

आज के समय में, दही हांडी केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार बन चुका है। दही हांडी का आयोजन अब केवल धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक सामाजिक और मनोरंजक आयोजन का रूप ले चुका है। इस उत्सव में सभी वर्गों के लोग एकजुट होकर भाग लेते हैं और इसका आनंद उठाते हैं।

दही हांडी का उत्सव हमारे भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें भगवान कृष्ण के जीवन की शिक्षाओं और मूल्यों को याद दिलाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में संघर्ष और चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें एकजुट रहना चाहिए और सहनशीलता के साथ आगे बढ़ना चाहिए।