नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो कि पालन-पोषण करने वाली देवी मानी जाती हैं। आइये समझते हैं मां स्कंदमाता के महत्व, रंग, पूजा विधि और भोग ।

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नवरात्रि के पांचवें दिन: मां स्कंदमाता का महत्व

मां स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम “स्कंद” (कार्तिकेय) और “माता” (माता) से लिया गया है। मां स्कंदमाता का स्वरूप बहुत ही दिव्य और आकर्षक होता है। मां स्कंदमाता अपने हाथों में भगवान कार्तिकेय को लिए हुए होती हैं और उनकी उपासना से भक्तों को मानसिक शांति और सुरक्षा मिलती है।

महत्व:

  • पालन-पोषण: मां स्कंदमाता बच्चों की माता हैं और वे सभी जीवों के पालन-पोषण का कार्य करती हैं। उनकी आराधना से भक्तों को मातृत्व का अनुभव होता है।
  • शक्ति और साहस: मां स्कंदमाता शक्ति और साहस की देवी मानी जाती हैं। उनकी कृपा से भक्तों को जीवन में कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
  • सफलता: मां स्कंदमाता की पूजा से व्यक्ति अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है और उसके सभी प्रयास सफल होते हैं।

नवरात्रि के पांचवें दिन का रंग

नवरात्रि के पांचवें दिन का रंग सफेद होता है। सफेद रंग शांति, पवित्रता और सच्चाई का प्रतीक होता है। इस दिन सफेद रंग पहनने से भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति बनी रहती है।

मां स्कंदमाता पूजा विधि

  1. साफ-सफाई: सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें।
  2. माता की प्रतिमा: मां स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
  3. स्नान: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  4. दीप जलाना: पूजा स्थल पर दीपक जलाएं।
  5. फूल और फल: देवी को ताजे फूल और फल अर्पित करें।
  6. भोग अर्पित करना: मां स्कंदमाता को विशेष भोग अर्पित करें, जिसमें फल, मिठाई, और दूध शामिल हैं।
  7. मंत्रोच्चारण: मां स्कंदमाता के मंत्रों का उच्चारण करें: text"ॐ देवी स्कंदमातायै नमः"
  1. आरती: अंत में माता की आरती करें और उन्हें प्रणाम करें।

मां स्कंदमाता भोग

नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता को विशेष भोग अर्पित किया जाता है। आमतौर पर निम्नलिखित भोग अर्पित किए जाते हैं:

  • फल: जैसे सेब, केला, अनार आदि।
  • मीठे पकवान: जैसे लड्डू, बर्फी आदि।
  • दूध और दही: जो शुद्धता का प्रतीक होते हैं।
  • हलवा: खासकर सूजी या बेसन का हलवा।
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विशेष बातें

  1. संस्कार: इस दिन विशेष रूप से बच्चों के लिए माता-पिता द्वारा विशेष पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है।
  2. सामाजिक समर्पण: इस दिन भक्तजन समाज में सेवा कार्य करने का संकल्प लेते हैं, जैसे कि अनाथालयों या वृद्धाश्रमों में भोजन वितरण करना।