जन्माष्टमी विशेष: श्रीकृष्ण की करुणा: पुतना के उद्धार की प्रेरणादायक कहानी

पुतना एक महत्वपूर्ण पात्र है जो श्रीकृष्ण की बाल्यकाल की कथाओं में विशेष स्थान रखती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पुतना एक राक्षसी थी जो भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजी गई थी। उसकी कहानी महाभारत, भागवत पुराण, और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है। पुतना की कहानी भगवान श्रीकृष्ण के अद्वितीय दिव्य स्वरूप और उनकी लीलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पुतना की उत्पत्ति और कहानी

पुतना का जन्म एक सामान्य मानव के रूप में हुआ था, लेकिन उसकी दुष्ट प्रवृत्तियों ने उसे राक्षसी बना दिया। यह कहा जाता है कि पुतना के हृदय में बचपन से ही क्रूरता और दुष्टता भरी हुई थी। उसने अपनी शक्ति का उपयोग निर्दोष बच्चों को मारने के लिए किया। पुतना की कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि वह केवल एक राक्षसी नहीं थी, बल्कि उसके अंदर मानवीय दुर्बलताएँ और लालच भी थे, जिसने उसे यह दुष्कर्म करने के लिए प्रेरित किया।

पुतना और कंस का संबंध

पुतना की कंस के साथ पहचान तब हुई जब कंस ने श्रीकृष्ण को मारने का संकल्प लिया। जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब कंस को आकाशवाणी के माध्यम से यह ज्ञात हुआ था कि देवकी और वासुदेव का आठवां पुत्र ही उसका वध करेगा। कंस ने भयभीत होकर अपने साम्राज्य में जितने भी नवजात शिशु थे, उन्हें मारने का आदेश दिया। लेकिन श्रीकृष्ण को सुरक्षित गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास पहुँचा दिया गया।

कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई योजनाएँ बनाई, लेकिन वह असफल रहा। अंततः उसने पुतना को बुलाया और उसे श्रीकृष्ण को मारने का आदेश दिया। कंस को पुतना पर भरोसा था क्योंकि वह एक शक्तिशाली राक्षसी थी और उसके पास मायावी शक्तियाँ भी थीं। कंस को यकीन था कि पुतना अपने मायावी तरीकों से श्रीकृष्ण को आसानी से मार सकती है।

पुतना की योजना

कंस के आदेश पर पुतना गोकुल में पहुँची। वह एक सुंदर और मोहक स्त्री का रूप धारण कर वहां आई। उसने अपनी मायावी शक्तियों से सभी को मोहित कर लिया और अपने स्तनों में विष लगाकर श्रीकृष्ण को दूध पिलाने का नाटक किया। उसका उद्देश्य था कि जब वह श्रीकृष्ण को अपने विषैले स्तनों से दूध पिलाएगी, तो वे तुरंत मृत्यु को प्राप्त हो जाएँगे।

पुतना ने श्रीकृष्ण को उठाया और उन्हें अपने स्तनों से दूध पिलाने लगी। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी चाल को समझ लिया और उसके स्तनों से दूध पीने लगे। उन्होंने पुतना का विष पीते हुए उसकी जीवन शक्ति को भी खींच लिया। इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में ही पुतना का वध कर दिया।

पुतना का उद्धार

श्रीकृष्ण के द्वारा पुतना का वध केवल एक दैवीय लीला थी। इसके माध्यम से श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि वे इस संसार के उद्धारक हैं और कोई भी दुष्ट शक्ति उन्हें पराजित नहीं कर सकती। पुतना के वध के बाद, उसके असली रूप का प्रकट होना इस बात का प्रमाण था कि श्रीकृष्ण ने उसके जीवन का अंत कर उसे मोक्ष प्रदान किया।

यह भी कहा जाता है कि पुतना की मृत्यु के बाद उसके शरीर से सुगंधित पुष्प निकले, जो यह दर्शाते हैं कि श्रीकृष्ण के स्पर्श से उसका उद्धार हुआ और वह अपने पापों से मुक्त हो गई। इस प्रकार, पुतना की कहानी केवल एक दुष्टता की हार की कहानी नहीं है, बल्कि यह भगवान श्रीकृष्ण की दयालुता और उद्धार का भी प्रतीक है।

कंस और पुतना के बीच का संबंध

कंस और पुतना के बीच का संबंध केवल शासक और सेवक का नहीं था। पुतना कंस की शक्ति और क्रूरता का प्रतीक थी। वह कंस के आदेश का पालन करती थी और उसकी हर योजना में उसका साथ देती थी। कंस ने पुतना को श्रीकृष्ण के वध के लिए चुना क्योंकि उसे उसकी शक्तियों पर पूरा भरोसा था।

पुतना का कंस के साथ संबंध इस बात का प्रमाण है कि शक्ति और क्रूरता के आधार पर बने संबंध केवल विनाश का कारण बनते हैं। पुतना ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और कंस की योजनाओं का हिस्सा बनकर अपने विनाश को निमंत्रण दिया।

पुतना का कंस की मदद करना

पुतना ने कंस की मदद इसलिए की क्योंकि उसके अंदर लोभ, क्रोध और अन्य दुर्गुणों का वास था। उसने अपने स्वार्थ के लिए कंस की सेवा की और निर्दोष बच्चों की हत्या की। पुतना का चरित्र इस बात का उदाहरण है कि कैसे लोभ और क्रोध किसी व्यक्ति को विनाश के मार्ग पर ले जाते हैं।

पुतना की कहानी यह संदेश देती है कि अधर्म का अंत निश्चित है, चाहे वह कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो। पुतना ने अपने शक्तियों का दुरुपयोग कर अपने ही विनाश को आमंत्रित किया।

पुतना की कहानी का महत्व

पुतना और श्रीकृष्ण की कहानी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी बताती है कि भगवान श्रीकृष्ण ने किस प्रकार अपने बाल्यकाल में ही अधर्म और दुष्टता का नाश किया। पुतना का वध इस बात का प्रतीक है कि कोई भी दुष्ट शक्ति भगवान के सामने टिक नहीं सकती।

यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में सही मार्ग का अनुसरण करना कितना महत्वपूर्ण है। पुतना ने अपने दुर्गुणों के कारण अपना सर्वनाश कर लिया, जबकि श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य स्वरूप से संसार को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया।