हरिद्वार का नाम धर्मशास्त्रों में कई बार गंगा द्वार के रूप में उल्लेखित है। इसका कारण यह है कि गंगा, जो हिमालय से बहती हुई मैदानों की ओर आती है, इसी पवित्र स्थान से गुजरती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा के पृथ्वी पर आगमन का श्रेय महाराज भागीरथ को जाता है, जिन्होंने अपने कठिन तप से गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया। गंगा पतित पावनी है, जो मोक्ष दायिनी मानी जाती है। ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली यह पवित्र नदी शिव जी की जटाओं से बहती हुई स्वर्ग से पृथ्वी की ओर आती है। इसी कारण इसे गंगा द्वार कहा जाता है।

हरिद्वार का दूसरा नाम हरत द्वार भी है, जिसका संबंध भगवान शिव से है। चूंकि केदारनाथ भगवान शिव का स्थान है और हरिद्वार उनके मार्ग का हिस्सा है, इसलिए इसे हरत द्वार कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, हरिद्वार को भगवान विष्णु के कारण भी महत्व प्राप्त है, क्योंकि यह स्थान भगवान नारायण से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि इसे हरिद्वार कहा गया है।

हरिद्वार का पितृ तीर्थ के रूप में भी महत्वपूर्ण स्थान है। महाभारत के युद्ध के बाद जब दोनों पक्षों के लोग मारे गए थे, तो उनके मोक्ष हेतु युधिष्ठिर ने पिंडदान का आयोजन किया। इस अवसर पर दोनों पक्षों, यानी कौरव और पांडव के लोग, पिंडदान करने के लिए हरिद्वार के कुसावर्त घाट पर एकत्र हुए। कुसावर्त घाट का इस घटना के बाद से विशेष धार्मिक महत्व हो गया, जहां महाभारत के युद्ध में मारे गए सभी लोगों के निमित्त पिंडदान किया गया।

यह पवित्र स्थान नील पर्वत, कनखल और आनंदवन के रूप में भी प्रसिद्ध है। आनंदवन क्षेत्र में विशेष रूप से पहली भागवत कथा का आयोजन हुआ था। इसी स्थान पर सप्तऋषियों ने भागवत कथा सुनी थी और यहीं से भागवत का विस्तार हुआ। इस कारण यह स्थान भागवत कथा की जन्मस्थली के रूप में भी जाना जाता है। इसके अलावा, पांडवों ने भी इसी क्षेत्र में निवास किया था और यहीं से उन्होंने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। इस क्षेत्र में कुंती, गंधारी और अन्य प्रमुख व्यक्तित्वों ने भी अपनी पर्ण कुटिया बनाकर निवास किया और अंत में मोक्ष प्राप्त किया।

भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है, खासकर तीर्थ स्थल पर। जब महाराज परीक्षित ने भागवत कथा सुनी, तो उन्होंने राजमहल में इसे सुनने का आदेश नहीं दिया, बल्कि गंगा के तट पर शुक्रताल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर अपने परिवार और कुल को एकत्र कर भागवत कथा सुनी। तीर्थ स्थल पर भागवत कथा सुनने से सामान्य कथा सुनने की अपेक्षा हजारों गुना अधिक फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थल पर कथा सुनने का महत्व और भी बढ़ जाता है।

आज के समय में हरिद्वार में कोई चिंता या तनाव नहीं रहता। यहां आने वाले लोग अपने घर, दुकान और परिवार की चिंता छोड़कर आते हैं और पूरी तरह से भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं। यहां पर भक्तों को न सिर्फ बना-बनाया भोजन और चाय मिलती है, बल्कि सोने की भी व्यवस्था होती है। भक्त सुबह-शाम गंगा स्नान करते हैं और हरि ओम का जाप करते हुए भक्ति में लीन रहते हैं। जो लोग गंगा में स्नान नहीं कर सकते, वे आचमन कर सकते हैं और अपने पितरों के लिए जल अर्पित कर सकते हैं। इस तीर्थ में निवास करने का विशेष लाभ है, और यहां बिताए गए सात दिन जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और भक्ति का संचार करते हैं।

सात दिनों तक भक्तों को निंदा, चुगली और अन्य नकारात्मक कर्मों से दूर रहकर केवल भगवान नारायण की भक्ति करनी चाहिए। ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप और गंगा स्नान से पवित्रता प्राप्त होती है। यहां गंगा में स्नान करने से मन और शरीर दोनों शुद्ध हो जाते हैं, और पित्रों को जल अर्पित करने से उनका मोक्ष होता है। हरिद्वार जैसे पवित्र तीर्थ में रहकर धार्मिक कार्यों में लीन रहने से भक्तों को जीवन में अपार लाभ और शांति प्राप्त होती है।