सुख में ईश्वर दूर, दुख में करीब: कुंती का प्रेरक संवाद श्रीकृष्ण से

कुंती मैया का जीवन भारतीय महाकाव्य महाभारत में एक अद्वितीय संघर्ष, बलिदान और धैर्य का प्रतीक है। उनकी कथा न केवल एक महान मां की, बल्कि एक वीर नारी की भी है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म, सत्य और अपने कर्तव्य का पालन किया। भगवान श्रीकृष्ण और कुंती के बीच का संवाद, जो आपने उल्लेख किया, उस संघर्ष और आध्यात्मिक जागरूकता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो कुंती को उनके जीवन के कष्टों के बावजूद मिला था।

कुंती का संघर्षमय जीवन

कुंती का जीवन कष्टों से भरा हुआ था। जब उनका विवाह राजा पांडु से हुआ, तब उन्होंने सुख की आशा की थी, लेकिन नियति ने उन्हें निराशाओं और कष्टों से भरा जीवन दिया। पांडु की असमय मृत्यु के बाद, कुंती विधवा हो गईं। उनके ऊपर अपने पांच बच्चों की जिम्मेदारी आ गई, और समाज के कठोर नियमों और रूढ़िवादी धारणाओं के बीच उन्हें अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा।

एक विधवा स्त्री का जीवन उस समय समाज में अत्यंत कठिन था। कुंती, अपने पांच पुत्रों के साथ, समाज के अन्यायपूर्ण व्यवहार और कठिनाइयों का सामना करते हुए भी न केवल अपने बच्चों की परवरिश करती रहीं, बल्कि उन्हें धर्म, नीतिशास्त्र और कर्तव्य के मार्ग पर आगे बढ़ाया। उनके जीवन में आए कष्टों को भगवान श्रीकृष्ण ने भी देखा और उनसे पूछा कि उन्हें क्या चाहिए, ताकि वह उनके कष्टों को दूर कर सकें।

धृतराष्ट्र का पुत्रमोह और पांडवों का संघर्ष

धृतराष्ट्र की स्थिति भी कुंती के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रमोह में आकर न केवल अपनी नेत्रहीनता को स्वीकार किया, बल्कि अपने हृदय को भी अंधा कर लिया। सत्ता का लालच और पुत्रमोह उनके जीवन पर इस कदर हावी हो गए थे कि उन्होंने पांडवों के साथ कई बार अन्याय किया। धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन और उसके भाइयों ने पांडवों की हत्या करने के कई प्रयास किए। चाहे लाक्षागृह की आग हो, भीमसेन को विष देने का षड्यंत्र, या वनवास और अज्ञातवास की पीड़ा, पांडवों ने हर मोड़ पर धैर्य से इन कठिनाइयों का सामना किया।

इन सभी कष्टों के बावजूद, कुंती ने अपने पुत्रों को धैर्य और साहस का मार्ग दिखाया। वे हमेशा धर्म और कर्तव्य की राह पर बने रहे, चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों।

भगवान श्रीकृष्ण से संवाद: दुख और सुख का महत्व

महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव विजयी हुए और उनके जीवन में सुख आया, तब भगवान श्रीकृष्ण कुंती से एक महत्वपूर्ण संवाद करते हैं। कृष्ण कुंती से पूछते हैं कि उन्होंने जीवनभर दुख ही देखा है और अब, जब उनके पुत्रों की विजय हो गई है, वे क्या मांगना चाहेंगी।

कुंती का उत्तर अद्वितीय था। उन्होंने कहा, “भगवान, अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं, तो मुझे और दुख दें।” कृष्ण यह सुनकर अचंभित हुए और उनसे पूछा, “मैया, आप दुख क्यों मांग रही हैं? अब तो आपके जीवन में सुख आया है।”

कुंती ने उत्तर दिया, “हे कृष्ण, मैंने यह देखा है कि जब तक हमारे जीवन में दुख था, तब तक आप हमारे साथ थे। हर विपत्ति में आपने हमारी रक्षा की, हमारे साथ खड़े रहे। लेकिन जैसे ही हमारे जीवन में सुख आया, आप हमसे दूर होने लगे। मुझे यह स्पष्ट हो गया है कि दुख के समय आप हमारे करीब रहते हैं, लेकिन सुख के समय आप हमसे दूर हो जाते हैं। इसलिए, हे कृष्ण, मैं आपको खोना नहीं चाहती, और इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरे जीवन में दुख बना रहे, ताकि आप हमेशा मेरे साथ रहें।”

कुंती का आध्यात्मिक जागरण

कुंती का यह संवाद भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके जीवन की गहरी समझ और आध्यात्मिक जागरूकता को दर्शाता है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि जीवन में दुख और कष्ट ही वह साधन हैं, जो मनुष्य को ईश्वर के निकट रखते हैं। सुख के समय, मनुष्य ईश्वर को भूलने लगता है और संसार के मोह में फंस जाता है। लेकिन दुख के समय, ईश्वर का स्मरण बार-बार होता है और मनुष्य ईश्वर के शरण में जाने की आवश्यकता को महसूस करता है।

कुंती की यह आध्यात्मिक चेतना यह दिखाती है कि उन्होंने जीवन के कष्टों को न केवल सहा, बल्कि उन्हें अपने आध्यात्मिक विकास के साधन के रूप में स्वीकार किया। उनका यह संवाद हमें यह सिखाता है कि दुख जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसे सकारात्मक रूप से देखने से हमें ईश्वर के निकट पहुंचने का अवसर मिलता है।

कुंती की महानता और बलिदान

कुंती का जीवन उन सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो कठिनाइयों और कष्टों का सामना कर रहे हैं। उनका धैर्य, साहस, और भगवान श्रीकृष्ण पर अटूट विश्वास उन्हें महान बनाते हैं। उन्होंने अपने जीवन में जितने भी कष्ट सहे, उन्हें कभी अपने धर्म और कर्तव्य से विमुख नहीं होने दिया।

महाभारत के युद्ध के बाद, जब पांडव विजयी हुए, तब भी कुंती ने अपने कर्तव्यों को नहीं छोड़ा। उन्होंने अपनी संतानों को हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और खुद भी एक आदर्श मां, पत्नी, और स्त्री के रूप में समाज के सामने आईं।

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