देवी चंद्रघंटा की पूजा और उनके मंत्र का उच्चारण हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। देवी चंद्रघंटा माता दुर्गा के नौ स्वरूपों में से तीसरे स्वरूप हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा की जाती है। यह देवी शक्ति, साहस और निर्भीक ता की प्रतीक हैं। चंद्रघंटा माता का स्वरूप बेहद शांत, सौम्य और सौंदर्य से परिपूर्ण होता है। उनके माथे पर अर्धचंद्र का घण्टा होने के कारण उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा है।

देवी चंद्रघंटा मंत्र का महत्व

देवी चंद्रघंटा का मंत्र उन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन में साहस, शक्ति और निर्भीकता की प्राप्ति करना चाहते हैं। यह मंत्र साधक को सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करता है। साथ ही, इस मंत्र के उच्चारण से मन और शरीर को शुद्धि मिलती है और साधक के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होता है।

देवी चंद्रघंटा की पूजा विधि

पूजन सामग्री:

  1. दीपक: घी या तेल का दीपक
  2. धूप: अगरबत्ती या धूप
  3. फूल: विशेषकर लाल रंग के फूल
  4. फल: ताजे फल
  5. पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण
  6. सिंदूर: पूजा के लिए

पूजा विधि:

  1. स्नान: सबसे पहले स्वयं को स्वच्छ करें और साफ कपड़े पहनें।
  2. आसन: किसी साफ स्थान पर आसन बिछाकर बैठें।
  3. दीपक जलाना: पूजन स्थल पर दीपक जलाएं।
  4. धूप दिखाना: धूप दिखाएं और वातावरण को शुद्ध करें।
  5. देवी का आह्वान: देवी चंद्रघंटा का ध्यान करें और उनकी मूर्ति या चित्र के सामने अपने मन को एकाग्र करें।
  6. मंत्र उच्चारण: मंत्र का 108 बार उच्चारण करें।
  7. प्रसाद: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और स्वयं भी ग्रहण करें।

देवी चंद्रघंटा मंत्र का उच्चारण

मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॐ चंद्रघंटायै नमः॥

इस मंत्र का उच्चारण सुबह और शाम के समय करने से विशेष लाभ होता है। मंत्र का 108 बार उच्चारण करना अत्यधिक फलदायी माना जाता है।

देवी चंद्रघंटा मंत्र के लाभ

  1. साहस और शक्ति की प्राप्ति: देवी चंद्रघंटा का मंत्र साधक को साहस, शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
  2. शत्रुओं का नाश: इस मंत्र के प्रभाव से शत्रुओं का नाश होता है और साधक की रक्षा होती है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा: यह मंत्र साधक को सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करता है।
  4. स्वास्थ्य में सुधार: इस मंत्र के नियमित उच्चारण से स्वास्थ्य में सुधार होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति: देवी चंद्रघंटा के मंत्र का उच्चारण साधक को आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शांति प्रदान करता है।

देवी चंद्रघंटा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी चंद्रघंटा का जन्म महिषासुर के आतंक को समाप्त करने के लिए हुआ था। महिषासुर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था जिसने स्वर्ग लोक और पृथ्वी लोक पर अत्याचार किया। देवताओं ने महिषासुर के आतंक से परेशान होकर भगवान शिव और देवी पार्वती से प्रार्थना की। तब देवी पार्वती ने चंद्रघंटा का रूप धारण किया और महिषासुर का संहार किया।

देवी चंद्रघंटा के स्वरूप का वर्णन

देवी चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत मनोहर और सौम्य है। उनके माथे पर अर्धचंद्र का घण्टा है जिससे उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा है। वे सिंह पर सवार होती हैं और उनके दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र होते हैं। उनका यह स्वरूप साधकों को साहस, शक्ति और निर्भीकता की प्रेरणा देता है।

देवी चंद्रघंटा के पूजा के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें

  1. साफ सफाई: पूजा स्थल और पूजा सामग्री की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  2. शुद्धता: मन और शरीर की शुद्धता का ध्यान रखें। स्वच्छ कपड़े पहनकर ही पूजा करें।
  3. एकाग्रता: पूजा के दौरान मन को एकाग्र रखें और देवी चंद्रघंटा का ध्यान करें।
  4. समर्पण: पूजा में पूर्ण समर्पण भाव रखें। मन, वचन और कर्म से पूजा करें।