अंतिम समय में जरूर करें ये काम, आत्मा को मिलेगी मुक्ति और शांति | अनिरुद्धाचार्य जी महाराज

मृत्यु जीवन का अटल सत्य है, और इसे कोई भी टाल नहीं सकता। लेकिन मरने से पहले कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें करके व्यक्ति अपने जीवन को सुकून और संतोष के साथ समाप्त कर सकता है। इस लेख में हम कुछ ऐसे कार्यों पर चर्चा करेंगे जिन्हें मृत्यु से पहले करना आवश्यक है ताकि हम मृत्यु के बाद भी शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकें।

1. गौ दान

गौ दान का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को ‘वैतरणी’ नामक नर्क से पार होने के लिए गाय की पूंछ पकड़नी होती है। यह गाय वैतरणी पार कराने में सहायक होती है। इसलिए, गौ दान को सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण दान माना जाता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी जीवनकाल में गौ दान करता है, तो उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।

2. भागवत कथा का श्रवण

जीवन में कई बार अनजाने में या जानबूझकर हम पाप कर बैठते हैं, जिनका प्रभाव हमारे अगले जन्म या जीवन पर पड़ सकता है। भागवत कथा का श्रवण करना इन पापों से मुक्ति पाने का एक उत्तम उपाय है। भागवत कथा सुनने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है और पाप पुण्य में परिवर्तित हो जाते हैं। इसीलिए, मृत्यु से पहले भागवत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए ताकि आत्मा शुद्ध हो सके और मोक्ष प्राप्ति की संभावना बढ़ सके।

3. अन्य दान

जीते जी अन्य दान करने का भी बहुत महत्व है। मरने के बाद किए गए अन्य दान का पुण्य अवश्य मिलता है, लेकिन यदि जीते जी भूखे-प्यासे को भोजन कराया जाए, तो उसका फल अनंत होता है। जीवन के अंतिम दिनों में संतों और ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो पुण्य मिलता है, वह अनमोल होता है। इसलिए, जीवन के अंतिम दिनों में अन्य दान अवश्य करें ताकि मृत्यु के बाद भी आपका नाम अच्छे कर्मों के लिए याद किया जाए।

4. रवी और वर्षी का महत्व

हमारे समाज में मृत्यु के बाद रवी और वर्षी करने का विधान है। यह कार्य मृत्यु के बाद जीवित संतानों द्वारा किया जाता है, लेकिन वर्तमान समय में बहुत से लोग इस कार्य को जल्दबाजी में निपटाने लगे हैं। रवी का कार्य 13वें दिन ही करना शास्त्रों में सही माना गया है। चार दिन या तीन दिन में रवी कर लेना केवल नियमों का उल्लंघन है। मरने से पहले अपनी रवी और वर्षी का कार्य स्वयं कर लेना चाहिए, ताकि मृत्यु के बाद भी यह कार्य सही तरीके से हो सके और परिवार को कोई असुविधा न हो।

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अनिरुद्धाचार्य जी

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