यह प्रवचन मनुष्य की सच्ची परिभाषा और धर्म-अधर्म के अंतर पर केंद्रित है। मनुष्य वह नहीं जो केवल दिखता हो, बल्कि जिसके भीतर मर्यादा, सत्य, दया, करुणा और बल हो, वही सच्चा मनुष्य है, जैसे भगवान राम। रावण ने मनुष्य के हाथ मरने का वरदान मांगा, पर कोई साधारण मनुष्य उसे नहीं मार सका, क्योंकि राम ने अपने गुणों से मनुष्यता का आदर्श स्थापित किया। राम के भीतर छल, कपट, निंदा, ईर्ष्या, काम, क्रोध, लोभ नहीं था, जबकि रावण शक्ति होने पर भी अधर्मी था।

मन, वाणी और कर्म से पाप होते हैं। निंदा, चुगली, कठोर शब्द और गलत विचार पाप का कारण बनते हैं। सास-बहू के रिश्ते में भी गलतियां मानने और प्यार से व्यवहार करने की सीख दी गई। धर्म का मूल परोपकार और दया है, जैसा राम और कृष्ण ने किया, जबकि रावण और कंस का मार्ग अधर्म था। अंत में, मनुष्य को भगवान का स्मरण, अच्छे शब्दों का प्रयोग और परोपकारी कर्म करने की प्रेरणा दी गई।