क्या मां ही ईश्वर का सजीव रूप है? | अनिरुद्धाचार्य जी

इस संसार में सबसे सुंदर कौन है? इस सवाल का जवाब हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकता है, लेकिन एक छोटे बच्चे से पूछें तो उसका जवाब निश्चित रूप से “मां” होगा। एक बच्चे के लिए उसकी मां सबसे खूबसूरत, सबसे प्यारी और सबसे महत्वपूर्ण होती है। मां का प्यार, उसकी ममता, और उसकी देखभाल बच्चे की दुनिया का केंद्र होती है, और यही उसे दिव्यता का प्रतीक बनाती है।

कल्पना कीजिए कि यदि भगवान स्वयं बच्चे के पास आकर उसे अपनी गोद में लेने का प्रस्ताव दें, तो अधिकतर लोग सोचेंगे कि बच्चा तुरंत भगवान की गोद में चला जाएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि बच्चा भगवान की गोद में जाने की बजाय अपनी मां की गोद में ही रहना चाहेगा। क्यों? क्योंकि बच्चे के लिए उसकी मां की गोद, उसका स्नेह और उसकी गर्मजोशी सबसे महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि मां केवल एक देखभाल करने वाली नहीं, बल्कि इस धरती पर ईश्वर का स्वरूप है।

बहुत से धर्मों, विशेषकर हिंदू धर्म में, मां को ईश्वर के समान माना जाता है। हम ईश्वर को उसकी दिव्यता में न देख पाए हों, लेकिन मां के रूप में हम उसकी ममता और देखभाल को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करते हैं। जब बच्चा जन्म लेता है, तो उसकी देखभाल, पोषण, और सुरक्षा का दायित्व मां के कंधों पर होता है, जो उसे दिव्य गुणों का प्रतीक बनाता है। इसीलिए, कई लोग मानते हैं कि मां को ईश्वर कहना न केवल सही है, बल्कि यह सबसे बड़ी सच्चाई का प्रकटीकरण है।

मां का दिव्य रूप | अनिरुद्धाचार्य जी का क्या कहना है?

मां की सुंदरता केवल उसके शारीरिक रूप में नहीं, बल्कि उसकी ममता और त्याग में निहित होती है। जन्म से लेकर बच्चे के संपूर्ण विकास तक, मां की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

यह कहा जाता है कि जब बच्चा जन्म लेता है, तो सबसे पहला आहार उसे मां के दूध के रूप में मिलता है, जिसे जीवन का अमृत माना जाता है। यह दूध न केवल पोषण है, बल्कि यह ईश्वर का वह उपहार है जो उन्होंने मां को दिया है ताकि उसका बच्चा स्वस्थ और मजबूत हो सके। जिस तरह बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मां के स्तनों में दूध आता है, यह एक चमत्कार ही है—ईश्वर की अद्भुत ममता और समझ का प्रतीक।

कल्पना कीजिए, अगर बच्चे का जन्म हो लेकिन मां के स्तनों में दूध न आए, तो वह उसे क्या खिलाएगी? इस स्थिति से स्पष्ट होता है कि ईश्वर कितना दयालु और करुणामय है। वही सुनिश्चित करता है कि मां के पास अपने बच्चे की देखभाल के लिए सभी आवश्यक चीजें हों, जिससे उसकी भूमिका न केवल महत्वपूर्ण बल्कि पवित्र बन जाती है।

मां के माध्यम से ईश्वर की करुणा

जब हम करुणा की बात करते हैं, तो मां की करुणा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह करुणा कहां से आती है? यह ईश्वर की करुणा ही है जो मां के दिल से प्रवाहित होती है। ईश्वर ने मांओं को अपनी करुणा का वाहक बनाया है ताकि उसकी सृष्टि का ठीक तरह से ख्याल रखा जा सके।

उदाहरण के लिए, जब बच्चा बीमार होता है, तो मां रात भर जागकर उसके लिए प्रार्थना करती है। वह किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है, अपनी नींद, अपना आराम, और यहां तक कि अपनी सेहत भी कुर्बान कर देती है, बस यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसका बच्चा सुरक्षित और स्वस्थ हो। यह निःस्वार्थ देखभाल और समर्पण किसी भी तरह से दिव्यता से कम नहीं है। यह ईश्वर की करुणा है जो मां के कार्यों के माध्यम से व्यक्त होती है।

सर्वोच्च बलिदान

किसी भी संकट या आवश्यकता के समय, मां सबसे पहले अपने बच्चे की रक्षा के लिए आगे आती है, अक्सर खुद को खतरे में डालकर। यह दूसरे के लिए खुद को कुर्बान करने की इच्छा दिव्यता का सार है। मां इस दिव्य गुण का प्रतीक होती है, अक्सर बिना यह समझे कि वह क्या कर रही है।

कई संस्कृतियों में ऐसे अनगिनत किस्से हैं जहां मांओं ने अपने बच्चों को बचाने के लिए असाधारण साहस का प्रदर्शन किया है। ये कहानियां केवल वीरता की कहानियां नहीं हैं; ये उस दिव्य शक्ति के प्रमाण हैं जो हर मां के भीतर होती है। जब मां अपने बच्चे की रक्षा करती है, तो ऐसा लगता है कि ईश्वर स्वयं उसके माध्यम से कार्य कर रहा है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसकी प्रिय सृष्टि सुरक्षित रहे।

मातृत्व और दिव्यता का संबंध

कई आध्यात्मिक परंपराओं में माना जाता है कि मां बच्चे की पहली गुरु होती है। वह बच्चे को बोलना, चलना, और सबसे महत्वपूर्ण, प्यार करना सिखाती है। मां की यह भूमिका उसे दिव्य रूप में प्रस्तुत करती है।

मां ही वह होती है जो बच्चे को ईश्वर के बारे में बताती है, उन्हें उनकी पहली प्रार्थनाएं सिखाती है और जीवन के रहस्यों को सरल, समझने योग्य शब्दों में समझाती है। इस तरह, मां बच्चे और ईश्वर के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करती है, उन्हें धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करती है।

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