परिवर्तनी एकादशी व्रत: शांति, समृद्धि और पापों से मुक्ति का दिव्य मार्ग | स्वामी बलरामाचार्य जी महाराज

आप सभी भक्तों को 14 सितम्बर 2024 को आने वाली परिवर्तनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं। यह व्रत भगवान श्री हरि विष्णु के विशेष रूप को समर्पित है। यह एकादशी उस समय आती है जब भगवान विष्णु शेषनाग पर सोते हुए अपनी करवट बदलते हैं। इस व्रत को रखने वाले भक्तों को विष्णु भगवान की असीम कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। आइए जानते हैं इस व्रत की महत्ता, पूजा विधि और इससे प्राप्त होने वाले शुभ फल के बारे में।

परिवर्तनी एकादशी व्रत की तिथि और समय

  • व्रत आरंभ: 14 सितम्बर 2024
  • पारण का समय: 14 सितम्बर 2024, प्रातः 6:06 से 8:26 बजे तक

पारण के समय विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, क्योंकि इस अवधि में ही व्रत का समापन करना चाहिए। यह समय शास्त्रों में उल्लिखित है और इसे छोड़ने से व्रत का फल पूर्ण रूप से नहीं प्राप्त होता।

परिवर्तनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

परिवर्तनीय एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ और सरल होता है। इसे विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है। पूजा की विधि इस प्रकार है:

  1. प्रातःकाल स्नान: व्रत के दिन सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  2. शालिग्राम भगवान की पूजा: भगवान श्री लक्ष्मी नारायण और शालिग्राम भगवान की पूजा करें। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल) से शालिग्राम को स्नान कराएं।
  3. तुलसी का अर्पण: शालिग्राम भगवान की पूजा में तुलसी का अर्पण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। तुलसी भगवान विष्णु को अति प्रिय है, और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
  4. भोग अर्पण: भगवान को मीठे व्यंजनों का भोग लगाएं और फिर प्रसाद ग्रहण करें।
  5. मंत्र जप: पूजा के दौरान “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का अधिक से अधिक जप करें। इस दिव्य मंत्र के जप से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
  6. आरती: भगवान की आरती करके अपने व्रत की विधिवत शुरुआत करें। दिनभर ध्यान और साधना में लीन रहें, और संयमित आहार लें।

परिवर्तनी एकादशी व्रत की कथा: राजा बलि और भगवान वामन

व्रत के दिन राजा बलि और भगवान वामन की कथा का श्रवण अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से एकादशी व्रत की महिमा पूछी, तब श्रीकृष्ण ने यह कथा सुनाई:

त्रेता युग में, भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। इस समय, राजा बलि, जो प्रह्लाद महाराज के पौत्र थे, अत्यंत दानवीर और धर्मशील थे। उन्होंने अपने धर्म के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवता चिंतित हो गए और भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

भगवान ने वामन रूप धारण करके राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि ने वामन भगवान को तीन पग भूमि देने का वचन दिया, भले ही उनके गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें चेतावनी दी थी कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है। लेकिन बलि ने यह सोचते हुए कि यदि यह नारायण भी हैं, तो भी मैं इन्हें खाली हाथ नहीं लौटाऊंगा, तीन पग भूमि देने का संकल्प कर लिया।

वामन भगवान ने एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में आकाश नाप लिया। तीसरे पग के लिए कोई स्थान न बचा, तो राजा बलि ने अपनी भक्ति और समर्पण से भगवान से कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें। भगवान वामन ने ऐसा ही किया और राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया।

राजा बलि की भक्ति से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और सदैव उनके द्वार पर रहने का वरदान दिया। तब से भगवान वामन राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं और उनकी आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

परिवर्तनी एकादशी का महत्व

परिवर्तनीय एकादशी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह भगवान विष्णु के शयन काल के मध्य समय में आती है। इस दिन व्रत रखने से चातुर्मास के दौरान किए गए सभी व्रतों का फल मिलता है और व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

इस व्रत को करने से व्यक्ति को वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसके साथ ही, यह व्रत पापों का नाश करता है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।

जो भक्त परिवर्तनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके जीवन से सभी प्रकार के दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करने का उत्तम साधन है।

परिवर्तनी एकादशी व्रत के लाभ

परिवर्तनी एकादशी व्रत करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  1. पापों का नाश: इस व्रत को करने से जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है।
  2. सुख और समृद्धि: व्रत करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  3. भक्तों की मनोकामना पूर्ण: भगवान वामन और विष्णु की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  4. पारिवारिक सुख: यह व्रत करने से परिवार में शांति और प्रेम बढ़ता है, और पारिवारिक जीवन सुखमय होता है।