गाली के बदले गाली क्यों? समझदारी का असली मतलब | अनिरुद्धाचार्य जी

यह संसार एक विविधताओं से भरा हुआ है, और हमें हर दिन अलग-अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें से एक बड़ी चुनौती है दूसरों से मिले अपमान को सहना और उस पर प्रतिक्रिया ना देना। विशेष रूप से जब यह अपमान हमारे अपने रिश्तेदारों या करीबी लोगों से मिलता है, तब हमारी सहनशक्ति और विवेक की परीक्षा होती है।

आज के समाज में ऐसा कई बार देखा गया है कि लोग छोटी-छोटी बातों पर झगड़ने लगते हैं, और यह झगड़े परिवार के सदस्यों के बीच भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी सास ने अपनी बहू को अपमानित किया और बहू ने भी उसी प्रकार से जवाब दिया, तो दोनों के बीच अंतर क्या रह जाता है? दोनों ही समझदार नहीं माने जाएंगे। सच्चा समझदार वही है जो अपमान को सहकर चुप रहना जानता है।

सहनशीलता और समझदारी का महत्व

भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी सहनशीलता को एक महत्वपूर्ण गुण बताया गया है। भगवान कृष्ण ने शिशुपाल की सौ गालियाँ चुपचाप सुनीं, और तब जाकर उन्होंने उसे दंड दिया। इसका मतलब यह है कि जब तक संभव हो, हमें धैर्य और सहनशीलता से काम लेना चाहिए। हर किसी का जवाब देना आवश्यक नहीं होता।

एक बहुत पुरानी कहावत है, “कुत्तों के मुँह में हड्डी अच्छी लगती है, गाली नहीं।” अर्थात यदि कोई आपको गाली देता है और आप भी उसे उसी तरीके से जवाब देते हैं, तो आप दोनों में कोई फर्क नहीं रह जाता। वही इंसान समझदार है जो अपमान को सहकर चुप रहता है। क्योंकि चुप रहना कमजोरी नहीं, बल्कि आपके अंदर की मजबूती को दर्शाता है।

रिश्तों में विनम्रता और धैर्य

परिवार और रिश्तों में अपमानित होना एक आम बात है, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जिन रिश्तों की नींव प्रेम, विश्वास और सम्मान पर होती है, उन्हें केवल छोटी-छोटी बातों पर तोड़ना सही नहीं है। रिश्तों में कभी-कभी समझौता करना पड़ता है, और इसके लिए सहनशीलता आवश्यक है।

यदि कोई सास अपनी बहू को अपमानित करती है, तो बहू का उत्तर देना आवश्यक नहीं है। क्योंकि इससे रिश्ते और खराब हो सकते हैं। हमें अपने अपनों के अपमान को सहन कर लेना चाहिए, क्योंकि ये रिश्ते किसी झगड़े से ज़्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।

समाज में संगठित रहना

रिश्तों और समाज में संगठन का बहुत महत्व है। अगर हम आपस में झगड़ते रहेंगे, तो इससे केवल हमारा नुकसान होगा। इतिहास गवाह है कि जब-जब हमने आपस में एकता खोई है, हमने बाहरी शक्तियों से हार का सामना किया है। अंग्रेजों ने भारत पर कई सौ साल तक राज किया क्योंकि हमने आपसी लड़ाईयों में अपनी शक्ति खो दी थी।

आज भी समाज में जातिवाद और धार्मिक भेदभाव के कारण हम आपस में बँट रहे हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, ये सभी वर्ग एक ही मूल से निकले हैं, फिर भी हम आपस में लड़ते रहते हैं। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि संगठन में शक्ति होती है। यदि हम संगठित रहेंगे, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

अपनों का अपमान सहन करें, दूसरों से लड़ें

यह कहना बिल्कुल सही है कि जब हमारे अपने हमें अपमानित करें, तो हमें उन्हें माफ कर देना चाहिए। लेकिन जब कोई बाहरी व्यक्ति, जो हमारी परंपराओं, हमारे धर्म, या हमारे समाज पर हमला करे, तो हमें उसका सामना करना चाहिए। अपनों के बीच लड़ाई केवल हमारे परिवार और समाज को नुकसान पहुँचाती है।

भगवान श्रीराम ने भी रावण के साथ युद्ध तब किया जब रावण ने सीता का अपहरण किया, न कि किसी छोटी बात पर। यह हमें सिखाता है कि हमें सही समय पर, सही कारण के लिए ही लड़ाई करनी चाहिए। और यह लड़ाई बाहरी समस्याओं के खिलाफ होनी चाहिए, न कि अपने परिवार के खिलाफ।