भारत में गणेश चतुर्थी एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान गणेश के जन्म का उत्सव है। इस दिन लोग गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करते हैं, उनकी पूजा-अर्चना करते हैं, और उन्हें प्रसन्न करने के लिए विविध प्रकार के अनुष्ठान करते हैं। हालाँकि, गणेश चतुर्थी के दिन एक खास परंपरा भी है, जिसे मानने की सलाह दी जाती है—चंद्रमा को न देखना। यह परंपरा पौराणिक कथा पर आधारित है, जो हमें जीवन के महत्वपूर्ण संदेश भी देती है।

चंद्रमा को न देखने की कथा:

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना अशुभ माना जाता है और इससे कलंक लगने का डर रहता है। इस परंपरा के पीछे एक पुरानी पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार है:

एक बार भगवान गणेश अपने वाहन, चूहे पर सवार होकर कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे। रास्ते में गणेश जी का वाहन चूहा अचानक से एक ऊंचाई चढ़ने की कोशिश कर रहा था, और इस प्रयास में गणेश जी गिर गए। यह दृश्य चंद्रमा ने देखा और वह हंसने लगे। चंद्रमा का यह हंसी-ठिठोली करना भगवान गणेश को पसंद नहीं आया, और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्रमा को श्राप दे दिया। गणेश जी ने कहा, “तुम्हारे सुंदरता के अभिमान ने तुम्हें अंधा कर दिया है। अब से जो भी तुम्हें देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा।”

चंद्रमा को यह श्राप सुनकर बहुत पछतावा हुआ, और वह तुरंत गणेश जी के चरणों में गिरकर माफी माँगने लगे। गणेश जी ने उनकी प्रार्थना सुनी और कहा, “श्राप तो लगेगा, लेकिन यह केवल गणेश चतुर्थी के दिन ही प्रभावी रहेगा। इस दिन जो भी चंद्रमा को देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा।”

इस कथा के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि किसी के अभिमान या घमंड के कारण अन्य लोगों को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए। साथ ही, यह भी सिखाया जाता है कि हमें अपने जीवन में संयम और विवेक का पालन करना चाहिए।

चंद्र दर्शन से बचने के उपाय:

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को गलती से देख लेने पर भी उपाय हैं, जो इस पाप से मुक्ति दिला सकते हैं। यदि आप इस दिन धोखे से चंद्रमा देख लेते हैं, तो कुछ उपायों का पालन कर सकते हैं:

  1. पत्थर फेंकने का उपाय: एक प्राचीन उपाय यह है कि आप एक छोटा सा पत्थर उठाकर चंद्रमा की दिशा में फेंक दें। ऐसा करने से पाप का प्रायश्चित हो जाता है। यह प्रतीकात्मक होता है और इसे चंद्रमा को अपमानित करने के बजाय श्राप के प्रभाव को कम करने का एक साधन माना जाता है।
  2. श्रीकृष्ण की कथा सुनना: चंद्रमा देखने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की सत्यभामा और जामवंती के साथ विवाह की कथा सुनने से भी कलंक से मुक्ति मिलती है। यह कथा सुनना शुभ माना जाता है और इससे झूठे कलंक से बचा जा सकता है।

गणेश जी की प्रथम पूजा और उनका महत्व:

गणेश जी को ‘प्रथम पूज्य’ माना जाता है, अर्थात किसी भी धार्मिक कार्य या अनुष्ठान से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होती है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है:

एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने सभी देवताओं के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित की। प्रतियोगिता का उद्देश्य यह था कि जो सबसे पहले संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वह ‘प्रथम पूज्य’ कहलाएगा। भगवान कार्तिकेय ने अपने तेज वाहन मोर पर सवार होकर तुरंत पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। लेकिन गणेश जी का वाहन एक छोटा चूहा था, जो इतनी तेज गति से नहीं चल सकता था।

गणेश जी ने तब अपनी बुद्धि का उपयोग किया। उन्होंने अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा की और कहा, “मेरे लिए माता-पिता ही संपूर्ण विश्व हैं, क्योंकि उनसे ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है। उनकी परिक्रमा करना ही सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा के समान है।” उनकी इस बुद्धिमानी से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए और गणेश जी को ‘प्रथम पूज्य’ का आशीर्वाद दिया।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि हमारे माता-पिता ही हमारे जीवन का आधार हैं, और उनकी सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।

गणेश जी का वाहन चूहा और उसका प्रतीकात्मक महत्व:

गणेश जी का वाहन चूहा है, जो तर्क और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। गणेश जी को बुद्धि और विवेक का देवता माना जाता है, और चूहा तर्क का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा तर्क पर आधारित होते हैं, और तर्क के माध्यम से ही सत्य की प्राप्ति की जा सकती है। जीवन में तर्क और विवेक का सही उपयोग ही हमें समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करता है।

द्वार पर गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति नहीं लगाने का कारण:

बहुत से लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ या चित्र लगाते हैं, लेकिन धार्मिक दृष्टि से यह सही नहीं माना जाता। गणेश जी बुद्धि के देवता हैं और लक्ष्मी धन की देवी। इनका स्थान घर के भीतर होना चाहिए, क्योंकि घर के बाहर बुद्धि और धन का बहिर्गमन हो सकता है। इसके स्थान पर मुख्य द्वार पर शंख, चक्र और तिलक का चिन्ह लगाना शुभ माना जाता है। शंख यश का प्रतीक है, चक्र नकारात्मकता को दूर करता है, और तिलक शुभता का प्रतीक है।