पूर्वजो का आशीर्वाद: श्राद्ध से प्राप्त शांति और समृद्धि | मनोज शास्त्री जी

श्राद्ध पक्ष, जिसे कनागत भी कहते हैं, एक ऐसा पवित्र समय है जब हम अपने पूर्वजों की स्मृति में विशेष कर्म करते हैं। यह हिन्दू धर्म में पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का अवसर है। पितर, जिन्हें गृहस्थियों के लिए देवता माना गया है, उनके तर्पण द्वारा हम कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

श्राद्ध में मुख्य रूप से तीन पीढ़ियों का स्मरण करते हुए तर्पण और ब्राह्मण भोज का विधान है। काले तिल, जल और कुशा का उपयोग महत्वपूर्ण होता है। ब्राह्मण भोजन का समय मध्यान्ह के बाद निर्धारित है, और शुद्ध शाकाहारी भोजन ही उचित माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार, जिन परिवारों में श्राद्ध विधिपूर्वक किया जाता है, वहां पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। यदि किसी के पास श्राद्ध करने के लिए आवश्यक धन न हो, तो मात्र जल अर्पण कर भी पितरों को तृप्त किया जा सकता है। महत्वपूर्ण यह है कि श्राद्ध श्रद्धा और सच्चे मन से किया जाए।

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पितरों की तिथि भूल जाने पर अमावस्या का दिन श्राद्ध करने के लिए सर्वोत्तम माना गया है। पितर, इस समय देव लोक से आकर अपनी संतान द्वारा किए गए तर्पण को स्वीकार करते हैं, और यह समय पितृ ऋण चुकाने का प्रमुख समय होता है।

श्राद्ध का धार्मिक महत्व केवल कर्मकांड में नहीं, बल्कि आंतरिक श्रद्धा और प्रेम में है, जिससे पितरों की कृपा मिलती है।