वीडियो शिव और सती की कथा: पितृपक्ष में जरूर सुनें यह कथा | अनिरुद्धाचार्य जी

एक बार भगवान शंकर ने माता सती से कहा, “चलो, कथा सुनने चलते हैं।” जब वे कथा सुनने गए, तो अगस्त ऋषि ने भगवान राम की कथा सुनाई। हालांकि शिव जी ने कथा को ध्यान से सुना, लेकिन माता सती का मन नहीं लग रहा था। कथा समाप्त होने के बाद, शंकर जी लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें भगवान राम का दर्शन हुआ। उस समय राम जी अपनी पत्नी सीता को खोज रहे थे, जो रावण द्वारा अपहरण किया गया था।

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जब राम जी चारों ओर सीता को खोजते हुए पुकार रहे थे, तब शंकर जी ने दूर से प्रणाम किया और कहा, “जय हो!” माता सती ने पूछा, “आप किसकी जयकार कर रहे हैं?” शंकर जी ने उत्तर दिया, “यह भगवान राम हैं, जिनकी आपने अभी कथा सुनी है।” माता सती हंसते हुए बोलीं, “हे भोलेनाथ, आप कितने भोले हैं! जिस भगवान को अपनी पत्नी का पता नहीं है, वह कैसे भगवान हो सकता है?”शंकर जी ने समझाया कि राम जी वास्तव में अंतर्यामी हैं और सब कुछ जानते हैं, लेकिन वह जानकर ना जानने का अभिनय कर रहे हैं।

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उन्होंने कहा कि अगर राम जी अपनी पत्नी को खोज लेंगे तो यह साबित हो जाएगा कि वह भगवान हैं। रावण ने वरदान मांगा था कि वह केवल मनुष्य या बंदर से ही मरेगा। इसलिए राम जी को मनुष्य की तरह व्यवहार करना पड़ा।शंकर जी ने कहा कि यदि कोई उनकी पत्नी को उठाकर ले जाएगा तो वह रोएंगे क्योंकि यह एक सामान्य मनुष्य की प्रतिक्रिया है। माता सती को यह समझाने के लिए शंकर जी ने कहा कि राम जी की लीला पूरी तरह से अद्वितीय और असली है। इस लीला में ऐसा अभिनय किया गया है कि माता सती भी मोहित हो गईं।जब माता सती ने शंकर जी से पूछा कि क्या राम मनुष्य हैं या भगवान, तो उन्होंने कहा कि राम भगवान हैं और लीला कर रहे हैं।

लेकिन माता सती को यह समझ नहीं आया और उन्होंने कहा कि वह परीक्षा लेंगी।माता सती ने राम जी के सामने जाकर कहा, “प्रभु, मैं रावण के पास से आ गई हूं।” राम जी ने तुरंत पहचान लिया और बोले, “हम सब जानते हैं।” जब माता सती ने पूछा कि अगर आप सब जानते हैं तो अपनी पत्नी का पता क्यों नहीं लगा पाए, तो राम जी ने उत्तर दिया कि अगर वह सब कुछ जानते होते तो हनुमान जी की महिमा कैसे बढ़ती?इस पर माता सती घबरा गईं और जब वह परीक्षा लेकर आईं तो उन्होंने झूठ बोला कि उन्होंने कोई परीक्षा नहीं ली।

इस झूठ के कारण शंकर जी ने उन्हें त्याग दिया क्योंकि जब पत्नी माता का रूप धारण कर लेती है, तो पति उसे पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता।शंकर जी ने समझाया कि गृहस्थ जीवन में रहना बुरा नहीं है, लेकिन भोगी बनकर नहीं रहना चाहिए। जब आप अपने बच्चों के बड़े होने पर माता-पिता बन जाते हैं, तो आपको योगी बनकर रहना चाहिए।जब माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में गईं और वहां पति का अपमान देखा तो उन्होंने योग अग्नि में आत्मदाह कर लिया।

इस घटना से शिव जी को दुख हुआ और उन्होंने वीर भद्र को भेजा ताकि यज्ञ का अपमान खत्म किया जा सके।वीर भद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और यज्ञ का विध्वंस किया। अंत में दक्ष ने भगवान शिव की स्तुति की और बकरे के सिर से यज्ञ पूरा किया। माता सती हिमालय की पुत्री बनकर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और 100 हजार वर्षों तक तपस्या करके अपने पति शिव को प्राप्त किया।इस प्रकार यह कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और समर्पण के साथ-साथ धैर्य भी आवश्यक है।

जीवन में अनेक परीक्षाएं आती हैं, लेकिन हमें अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए और सही मार्ग पर चलना चाहिए।