क्या तलाक ईश्वर के दरबार में मान्य है? | अनिरुद्धाचार्य जी

तलाक एक ऐसा विषय है जो आजकल के समाज में काफी चर्चा में है। यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से पति-पत्नी अपने वैवाहिक संबंधों को कानूनी रूप से समाप्त कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या तलाक केवल एक कानूनी प्रक्रिया है, या इसका धर्म और ईश्वर के न्याय में भी कोई स्थान है? यह सवाल इस आधार पर भी खड़ा होता है कि जब विवाह धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से संपन्न होता है, तो क्या तलाक मात्र कानूनी प्रक्रिया से वैध हो सकता है?

विवाह: एक धार्मिक और आध्यात्मिक बंधन

हिन्दू धर्म में विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं है, बल्कि यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक बंधन है। जब विवाह संपन्न होता है, तो इसके साक्षी अग्नि, वेद, ब्राह्मण, और अन्य देवता होते हैं। वेदों के मंत्रों के माध्यम से विवाह को संपन्न किया जाता है, और इसे एक अटूट बंधन माना जाता है। अग्नि के सामने सात फेरों के साथ दिया गया वचन इस बात का प्रतीक होता है कि यह संबंध जीवन भर के लिए है।

तलाक का धार्मिक दृष्टिकोण

आज के समाज में तलाक एक कानूनी प्रक्रिया बन गया है, जो अदालतों और कानून के तहत होता है। लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो यह एक विवादास्पद मुद्दा है। हिन्दू धर्म में तलाक की कोई मान्यता नहीं है। धर्मग्रंथों के अनुसार, विवाह का संबंध केवल इस जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जन्म-जन्मांतर तक चलता है। ऐसे में, तलाक को केवल एक कानूनी प्रक्रिया मानना गलत हो सकता है।

ईश्वर का न्याय और तलाक

यदि विवाह ईश्वर के सामने और धार्मिक अनुष्ठानों के तहत होता है, तो तलाक का निर्णय क्या केवल अदालतें और कानून ही ले सकते हैं? यह प्रश्न विचारणीय है। ईश्वर के न्याय में, तलाक का कोई स्थान नहीं है। ईश्वर ने विवाह का संबंध जोड़ने के लिए बनाया है, तोड़ने के लिए नहीं। यह मात्र एक कागजी कार्यवाही हो सकती है, लेकिन आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से इसे मान्यता नहीं दी जा सकती।

समाज और तलाक

समाज में तलाक की प्रक्रिया को मान्यता दी जाती है, लेकिन क्या यह सामाजिक मान्यता धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है? हमारे पूर्वजों के समय में तलाक की कोई परंपरा नहीं थी। रिश्तों को निभाने की शिक्षा दी जाती थी, उन्हें तोड़ने की नहीं।

आजकल लोग रिश्तों को निभाना नहीं जानते, उन्हें मजाक समझते हैं। तलाक के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन यदि विवाह के पहले ही जीवन साथी का अच्छे से चयन किया जाए, तो तलाक की नौबत ही नहीं आएगी।

विवाह: एक अटूट बंधन

राम और सीता का उदाहरण लें। सीता को वनवास दिया गया, लेकिन उन्हें तलाक नहीं माना गया। आज भी राम और सीता की पूजा एक साथ होती है, क्योंकि वे एक अटूट बंधन में बंधे हैं।

विवाह को केवल एक सामाजिक अनुबंध के रूप में देखना गलत है। यह एक आध्यात्मिक बंधन है, जिसे ईश्वर के न्याय में कोई भी अदालत तोड़ नहीं सकती। तलाक केवल समाज के बनाए नियमों के तहत ही सही हो सकता है, लेकिन ईश्वर के न्याय में इसका कोई स्थान नहीं है।

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