जीवन एक अमूल्य उपहार है जो भगवान ने हमें दिया है, लेकिन इसे सही दिशा में जीने का अर्थ समझना शायद सबसे कठिन कार्य है। अक्सर लोग अपने परिवार और संसार की दौड़धूप में पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं, और जब समय हाथ से निकल जाता है या वृद्धावस्था आ जाती है, तब समझ आता है कि जीवन का उद्देश्य केवल सांसारिक सुखों में उलझना नहीं था।

भगवान ने गर्भ में जीव को जो वचन दिलाया था—धर्म, पुण्य और भजन का जीवन जीने का—वह सब संसार में आकर भुला दिया जाता है। जब तक जीवन है, तब तक धर्म, सेवा और सत्कर्म करना ही मानव योनि का सबसे बड़ा कर्तव्य है। अंत में यही सत्य है कि इस संसार में कोई स्थायी नहीं है, लेकिन राम का नाम और पुण्य कर्म अमर रहते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमें जीवन का सर्वोत्तम प्राप्त हो, तो हमें धर्म, दान और भजन की राह पकड़नी होगी।

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