भजन: क्या भरोसा है इस ज़िंदगी का
(प्रस्तावना / शुरुआत)
क्या भरोसा है इस ज़िंदगी का?
साथ देती नहीं है किसी का…
(ध्यान केंद्रित पंक्तियाँ)
साँस रुक जाएगी चलते-चलते,
क्षमा बुझ जाएगी जलते-जलते,
दम निकल जाएगा रोशनी का…
साथ देता नहीं है कोई किसी का।
(जीवन की सच्चाई)
दुनिया है ये हकीकत पुरानी,
चलते-रुकना है इसकी रवानी।
हर्ज पूरा करो ज़िंदगी का,
फर्ज पूरा करो बंदगी का।
(मृत्यु का सत्य)
हम रहें ना, मोहब्बत रहेगी,
दास्तां अपनी दुनिया कहेगी।
नाम रह जाएगा आदमी का,
बाकी सब यहीं रह जाएगा।
(ईश्वर से विमुखता पर कटाक्ष)
भागदौड़ में भगवान को भुला दिया,
परिवार के बोझ में राम को त्याग दिया।
जो सच्चा धन है — राम रूपी,
उसे न जुटाया, न अपनाया।
(पाप और पुण्य की समझ)
जो पाप से कमाया — अकेले भोगना होगा।
जो पुण्य से कमाया — सब मिलकर भोगेंगे।
पाप में कोई साथ नहीं देता,
पुण्य में सब भागीदार बनते हैं।
(सूक्ति पंक्तियाँ)
तूने जो कमाया है —
वो दूसरा ही खाएगा,
खाली हाथ आया है —
खाली हाथ जाएगा।
(साँसें और रिश्ते)
जब तक साँसें हैं, तब तक रिश्ते हैं,
साँस रुकते ही… टूट जाएगा सब बंधन।
(अंतिम सत्य)
मरहम लगाया सबको,
पर मरने के बाद कोई साथ नहीं आएगा।
जो भजन करेगा — राम नाम ले के मरेगा,
वो अमर नाम दुनिया में कर जाएगा।
कीर्तन भाग:
भजन करो जवानी में, बुढ़ापा किसने देखा है?
कीर्तन करो जवानी में, बुढ़ापा किसने देखा है!
(तालियों के साथ जोरदार गान)
(व्यंग्यात्मक भक्ति स्वर)
बुढ़ापे में आंखें नहीं दिखेंगी,
कान सुनाई नहीं देंगे,
हाथ ताली बजाने में लाचार हो जाएंगे —
तब भजन कैसे करोगे?
(नसीहत भरी गुहार)
इसलिए अभी करो भजन,
जवानी में कर लो दर्शन,
क्योंकि मृत्यु —
बिन मुहूर्त ही चली आएगी…
समापन पंक्तियाँ (प्रवचन शैली में):
“तेरी डोली जब निकाली जाएगी,
बिन मुहूर्त ही उठा ली जाएगी।
तूने जो कमाया है, वो दूसरा ही खाएगा,
खाली हाथ आया है, खाली हाथ जाएगा…