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जब मौत की घड़ी सामने हो, यमदूत सामने हो – इस विचार के पीछे एक गहरी आध्यात्मिकता छिपी है, जो हमें जीवन के नश्वरता और मृत्यु की अपरिहार्यता के बारे में सोचने को मजबूर करती है। जीवन और मृत्यु एक चक्र का हिस्सा हैं, और इस चक्र को समझना, स्वीकार करना और उससे जुड़े भावनात्मक अनुभवों को आत्मसात करना, भारतीय आध्यात्मिकता में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

जब मृत्यु का सामना होता है, तब हम जीवन के सभी मोह-माया से मुक्त होने की सोचते हैं। वह क्षण जब यमदूत हमारे सामने खड़े होते हैं, तब हम यह समझते हैं कि जीवन के सभी सुख-दुख, सफलता-असफलता, और व्यक्तिगत संघर्ष केवल इस संसार के खेल हैं।

मृत्यु के समय ईश्वर का स्मरण

मृत्यु के समय भगवान का नाम लेना हमारी भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। भजन में कहा गया है, “तब नाम हो तुम्हारा, जय हो तब नाम हो तुम्हारा।” इस विचार का महत्व यह है कि जब जीवन समाप्त होने को हो, तब ईश्वर का स्मरण करना, उनके नाम का जाप करना आत्मा को शांति और मोक्ष की ओर ले जाता है।

यह हमें बताता है कि जीवन के अंतिम क्षणों में केवल ईश्वर ही हमारे साथी होते हैं। हमारे कर्म, अच्छे या बुरे, हमारे साथ होते हैं और उनके आधार पर हमारा भविष्य निर्धारित होता है। भगवान का नाम लेने से हमें शांति मिलती है और आत्मा को नई दिशा मिलती है।

आत्मभाव और संसार के मोह-माया

“वह आत्म भाव भर दो भगवान, आत्मा में आत्म भाव भर दो भगवान” – इस पंक्ति का आशय यह है कि भगवान से प्रार्थना की जा रही है कि वह हमारे भीतर उस आत्मभाव को भर दें जो हमें संसार के मोह-माया से मुक्त कर सके। संसार में रहकर हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक दायित्वों में उलझ जाते हैं, लेकिन अंत में हमें यह समझना होता है कि यह सब अस्थायी है।

संसार में रहते हुए हमें यह जानने की आवश्यकता है कि असली सच्चाई आत्मा में ही बसी है, और ईश्वर का ध्यान ही हमें उस सच्चाई से जोड़ सकता है। आत्मा में भगवान का वास हो, यही सच्चा आत्मभाव है, और यही हमें संसार के बंधनों से मुक्त कर सकता है।

मृत्यु और धर्म का महत्व

भजन के माध्यम से यह भी संदेश दिया गया है कि इस जीवन के बाद केवल हमारा नाम ही रह जाता है। “नाम रह जाएगा आदमी का, क्या भरोसा है इस जिंदगी का।” यह पंक्तियाँ हमें यह सिखाती हैं कि मृत्यु के बाद संसार में हमारी पहचान हमारे कर्मों और नाम से ही रह जाती है। चाहे हम अच्छे कर्म करें या बुरे, उनका प्रभाव हमारे जाने के बाद भी बना रहता है। इसलिए जीवन में धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

नाम की महिमा और कर्मों का फल

सुखदेव जी द्वारा परीक्षित जी को दी गई शिक्षा के अनुसार, इस संसार में नाम और कर्मों का अपना महत्व होता है। “नाम का अपना एक अलग महत्व होता है” – इसका तात्पर्य यह है कि हमारे कर्मों से जुड़ा हमारा नाम ही हमारी पहचान बनेगा। जो अच्छे कर्म करते हैं, उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है, जबकि जो बुरे कर्म करते हैं, उनका नाम निंदा के साथ। यह संदेश हमें इस बात का आभास कराता है कि जीवन में सच्चाई और धर्म का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है।

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