ध्यान और मानसिक शांति के लिए भारतीय संस्कृति में मंत्र जप का विशेष महत्व है। इसमें कई मंत्र हैं जो विभिन्न देवी-देवताओं की प्रार्थना के लिए किए जाते हैं, लेकिन गायत्री मंत्र को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। गायत्री मंत्र का जप करने से शरीर, मन और आत्मा की सम्पूर्ण शुद्धि होती है। यह मंत्र ऋषि विश्वामित्र द्वारा ऋग्वेद से उद्धृत हुआ है और देवी सरस्वती को स्तुति के लिए कहा जाता है।

गायत्री मंत्र का जप करने से मन, वाणी, और कर्म सभी कुछ शुद्ध हो जाता है। यह एक श्रेष्ठ मंत्र है जो हमें दिव्यता की ओर ले जाता है और हमें सुख, शांति, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करता है। इसलिए, गायत्री मंत्र का नियमित जप करके हम अपने मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक विकास में सफल हो सकते हैं।

गायत्री मंत्र lyrics in hindi

ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥

Gayatri mantra lyrics in English

Om Bhur Bhuvaḥ Swaḥ
Tat Savitur Vareṇyaṃ
Bhargo Devasya Dhīmahi
Dhiyo Yo Naḥ Prachodayāt

गायत्री मंत्र का महत्व:

  • गायत्री मंत्र का जप करने से मनुष्य की आत्मा की ऊर्जा बढ़ती है और उसे आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होती है।
  • इस मंत्र का जप करने से मानसिक चिंताओं से छुटकारा मिलता है और मन शांत होता है।
  • गायत्री मंत्र का जप करने से विचारशक्ति और ब्रह्मचर्य की भावना बढ़ती है।
  • यह मंत्र सुख, शांति, संतोष, सफलता और उच्च स्तर की उच्चता की प्राप्ति का मार्ग प्रदर्शित करता है।
  • गायत्री मंत्र का जप करने से शरीर की रोग-रहिति होती है और उसमें प्राण-शक्ति का संचार होता है।
  • इस मंत्र के जप से व्यक्ति का व्यक्तित्व और सोचने की क्षमता में सुधार होता है।
  • गायत्री मंत्र का जप करने से भगवान् की कृपा प्राप्त होती है और उसे अद्वितीय सुख-शांति का अनुभव होता है।

गायत्री मंत्र का जप कैसे करें:

  • सुबह-सुबह नित्य काल में उठकर गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।
  • मंत्र का उच्चारण साफ ध्वनि में और ध्यानपूर्वक करना चाहिए।
  • जप के समय मन को शांत रखना चाहिए और ध्यान लगाना चाहिए।
  • मंत्र का जप करने से पहले अपनी आसन को सुधारें और शरीर को शांत रखें।
  • मंत्र के जप के बाद एक शुद्ध और धार्मिक जीवन जीने का संकल्प लें।

निष्काम भाव से जप: गायत्री मंत्र का जप निष्काम भाव से करना चाहिए। इसका मतलब है कि इसे किसी अपेक्षा या इच्छा के साथ न करें, बल्कि निःस्वार्थ भाव से भगवान् की उपासना करें। यह न केवल आपको मानसिक शांति देगा, बल्कि आपकी आत्मा के विकास में भी सहायक होगा।