जब भरत जी चित्रकूट में भगवान राम से मिलने पहुंचे, उन्हें राजा बनने का प्रस्ताव मिला — माँ कैकेयी और गुरु वशिष्ठ दोनों ने आग्रह किया।
लेकिन भरत जी ने जो जवाब दिया, वो आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रेम और त्याग की परिभाषा बन गया।

उन्होंने कहा:
“यदि मैं राजा बन गया, तो ये पृथ्वी रसातल में चली जाएगी… क्योंकि इस धरती को रावण-कुंभकर्ण से नहीं, मुझ जैसे भाइयों से उम्मीद है।”

भरत ने माँ से प्रेम नहीं किया, सत्ता से प्रेम नहीं किया…
केवल और केवल राम से प्रेम किया।

उनका प्रेम — एकनिष्ठ, निर्विवाद और निःस्वार्थ था।
आज हम सबके प्रेम में बँटवारा है… भरत के प्रेम में समर्पण था।