शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है

शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं। शरद पूर्णिमा पर, माना जाता है कि चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं के साथ चमकता है और आसमान से अमृत की वर्षा करता है। यह भी माना जाता है कि इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु भक्तों को समृद्धि का आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं।

शरद पूर्णिमा पर, चांद निकलने पर शुद्ध गाय के घी के कई मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। खीर को छोटे कटोरे में रखें, उन्हें छलनी से ढक दें और उन्हें चांदनी में छोड़ दें। शरद पूर्णिमा रात के दौरान, “विष्णु सहस्रनाम” का पाठ करें, “श्री सूक्तम” का जाप करें और “मधुराष्टकम” और “कनकधारा स्तोत्रम” का भी पाठ करें। भगवान गणेश की आरती करके पूजा शुरू करें। शरद पूर्णिमा की अगली सुबह स्नान करके देवी लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। फिर इसे परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद के रूप में बांटें।

शरद पूर्णिमा की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक

साहूकार की दो पुत्रियां थी मां लक्ष्मी

और श्री हरि की इसी कृपा को प्राप्त करने

के लिए साहू की दोनों बेटियां भी हर

पूर्णिमा का व्रत किया करती इन दोनों

बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत

पूरे विधि विधान से पूरा करती और वहीं

छोटी बेटी तो व्रत करती लेकिन नियमों को

आडंबर समझकर उन्हें अनदेखा करते ती विवाह

योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों

बेटियों का विवाह कर दिया अब बड़ी बेटी के

घर पे स्वस्थ संतान का जन्म हुआ संतान का

जन्म छोटी बेटी के घर भी हुआ लेकिन उसकी

संतान ने पैदा होते ही दम तोड़ दिया

दो-तीन बार ऐसा होने के बाद उसने एक

ब्राह्मण को बुलाकर अपनी व्यथा कही और कहा

कि हर बार मेरी संतान दम तोड़ देती है ऐसा

क्यों है और इसका क्या उपाय है उसकी सारी

बात सुनकर ब्राह्मण ने उससे कुछ प्रश्न

किए और उससे कहा तुम पूर्णिमा का व्रत

अधूरा करती हो इस कारण तुम्हारा व्रत फलित

नहीं होता और तुम्हारे अधूरे व्रत का दोष

तुम्हें लगता है ब्राह्मण की बात सुनकर

छोटी बेटी ने पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि

विधान से करने का निर्णय किया लेकिन

पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को

जन्म दिया और जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु

हो गई इस पर उसने अपने बेटे के शव को एक

पट्टे पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा ढक

दिया कि किसी को पता ना चले फिर उसने अपनी

बड़ी बहन को अपने घर बुलाया और बैठने के

लिए वही पट्टा दे दिया जैसे ही व उस पट्टे

पर बैठने लगी उसके लहंगे की किनारी उस

बच्चे को छू गई और वह जीवित होकर तुरंत

रोने लगा इस पर बड़ी बहन पहले तो डर गई और

फिर छोटी बहन पर क्रोधित होकर उसे डांटने

लगी क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का

दोष और कलंक लगाना चाहती थी मेरे बैठने से

अगर यह बच्चा मर जाता तो इस पर छोटी बहन

ने उत्तर दिया यह बच्चा तो मरा हुआ ही था

दीदी तुम्हारे तप और प्रकाश के कारण यह

जीवित हो गया पूर्णिमा के दिन जो तुम व्रत

किया करती हो उस कारण तुम दिव्य तेज से

परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो अब मैं भी

तुम्हारी तरह यह व्रत और पूजन किया करूंगी

उसके बाद उसने भी पूर्णिमा का व्रत पूरे

विधि विधान से किया और इस व्रत के महत्व

और फल का पूरे नगर में प्रचार किया जिस

प्रकार मा लक्ष्मी और श्री हरि ने साहूकार

की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण कर उसे

सौभाग्य प्रदान किया वैसे ही हम पर भी

कृपा करना