भगवान राम और हनुमान की कथा भारतीय संस्कृति और धार्मिक साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। रामायण की कथाएं और भगवान राम तथा हनुमान के बीच की घटनाएं हमारे जीवन में नैतिकता, भक्ति और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक हैं। इस लेख में हम उन महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे जिनमें राम और हनुमान की लड़ाई, हनुमान जी की मृत्यु और उनके द्वारा भगवान राम से मांगी गई वरदानों की बात की जाएगी।

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भगवान राम और हनुमान की लड़ाई क्यों हुई थी?

भगवान राम और हनुमान के बीच लड़ाई की कथा बेहद रोमांचक और शिक्षाप्रद है। यह कथा तुलसीदास जी की “रामचरितमानस” में विस्तार से नहीं है, लेकिन कुछ पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, यह घटना भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद की है, जब हनुमान जी अयोध्या में भगवान राम के पास रहे।

एक समय की बात है कि जब भगवान राम ने हनुमान से एक विशेष कार्य करने के लिए कहा। हनुमान ने इस कार्य को करने में थोड़ी देरी कर दी, और इस कारण भगवान राम ने क्रोध में आकर अपने धनुष से एक बाण छोड़ने का निश्चय किया। हनुमान जी ने भगवान राम का बाण सहन कर लिया, लेकिन वह भगवान राम की आज्ञा का पालन करने में तत्पर थे।

इस घटना से एक महत्वपूर्ण सीख यह मिलती है कि भले ही भगवान राम और हनुमान के बीच एक अस्थायी विवाद हुआ हो, लेकिन हनुमान की भक्ति और उनकी सेवा का भाव अटल था। उन्होंने भगवान राम की भक्ति में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं रखा और अपना समर्पण पूरी तरह बनाए रखा।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि रिश्तों में कभी-कभी मतभेद हो सकते हैं, लेकिन भक्ति, समर्पण और कर्तव्य का पालन इन मतभेदों को हल करने का मार्ग है। भगवान राम और हनुमान की यह लड़ाई अंततः भगवान की परीक्षा थी, जिसमें हनुमान ने अपनी अडिग भक्ति का प्रमाण दिया।

भगवान राम की मृत्यु के बाद हनुमान का क्या हुआ था?

भगवान राम की मृत्यु के बाद, अयोध्या के राजकाज का भार उनके पुत्र कुश और लव को सौंप दिया गया। हनुमान जी, जो भगवान राम के अनन्य भक्त थे, राम की मृत्यु के बाद भी राम के आदर्शों और उनकी शिक्षाओं का पालन करते रहे।

पुराणों के अनुसार, भगवान राम के मृत्यु के बाद हनुमान जी ने पृथ्वी पर रहने का निश्चय किया और अपने प्रभु राम के नाम का जाप करते रहे। हनुमान ने भगवान राम से अमरता का वरदान मांगा था, और इस वरदान के कारण वे आज भी जीवित माने जाते हैं। उन्हें पृथ्वी पर राम के दूत के रूप में माना जाता है और आज भी उनकी उपस्थिति की मान्यता विभिन्न धार्मिक गतिविधियों और त्योहारों में देखी जा सकती है।

हनुमान जी ने अपनी पूरी ज़िंदगी भगवान राम की सेवा और उनके सिद्धांतों के पालन में समर्पित कर दी। वे रामायण के अंत में भी भगवान राम के प्रिय सेवक बने रहे और संसार में धर्म की स्थापना और रक्षा के लिए सक्रिय रहे।

हनुमान ने राम से क्या मांगा था?

हनुमान जी का जीवन भगवान राम की भक्ति में समर्पित था। रामायण और अन्य पुराणों में बताया गया है कि हनुमान ने भगवान राम से केवल एक ही वरदान मांगा था कि उन्हें राम की भक्ति और सेवा का अवसर सदा मिलता रहे। यह वरदान हनुमान की निःस्वार्थ भक्ति और समर्पण को दर्शाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान राम ने हनुमान से कुछ मांगने के लिए कहा, तो हनुमान जी ने राम से निवेदन किया कि वे उन्हें हमेशा राम का नाम जपने और उनकी सेवा करने का अधिकार दें। इसके अलावा, हनुमान ने अमरता का वरदान भी मांगा, ताकि वे हमेशा भगवान राम के नाम का प्रचार कर सकें और धर्म की रक्षा कर सकें। इस प्रकार, हनुमान जी को अमरता का वरदान मिला, और वे आज भी धरती पर जीवित माने जाते हैं।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति में किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत इच्छाओं का स्थान नहीं होता। हनुमान ने अपने जीवन को पूरी तरह भगवान राम की सेवा में अर्पित कर दिया और यही कारण है कि वे आज भी अजेय माने जाते हैं।

हनुमान की मृत्यु कैसे हुई थी?

हनुमान जी की मृत्यु की कोई स्पष्ट कथा नहीं मिलती है, क्योंकि उन्हें अमर माना जाता है। भगवान राम ने हनुमान को अमरता का वरदान दिया था, जिसके अनुसार हनुमान सदा के लिए जीवित रहेंगे और इस धरती पर धर्म और सत्य की रक्षा के लिए कार्य करते रहेंगे।

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पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, हनुमान जी आज भी जीवित हैं और वे उन भक्तों की सहायता करते हैं जो सच्चे हृदय से भगवान राम का स्मरण और भक्ति करते हैं। कई स्थानों पर हनुमान जी की उपस्थिति की मान्यता है और कहा जाता है कि वे आज भी गुप्त रूप से संसार में विचरण करते हैं।

इस प्रकार, हनुमान की मृत्यु की कोई कथा नहीं है क्योंकि वे भगवान राम के वरदान से अमर माने जाते हैं। वे हमेशा राम के दूत के रूप में इस धरती पर कार्यरत रहते हैं और उनके भक्तों की सहायता करते हैं।