हरतालिका तीज, विशेष रूप से उत्तर भारत में सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। इस व्रत का उद्देश्य पति की लंबी आयु और सुखमय जीवन की प्राप्ति के साथ-साथ कुंवारी कन्याओं के लिए योग्य वर की प्राप्ति है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पावन मिलन की कथा से जुड़ा हुआ है। आइए, विस्तार से समझते हैं कि हरतालिका तीज का क्या महत्व है, इस दिन क्या-क्या किया जाता है, और इसकी कथा क्या है।

हरतालिका तीज का अर्थ और महत्व:

हरतालिका तीज का अर्थ दो शब्दों “हरित” और “तालिका” से मिलकर बना है। “हरित” का अर्थ होता है “हरण करना” और “तालिका” का अर्थ होता है “सखी”। इसका तात्पर्य यह है कि जब माता पार्वती की सखियों ने उनका हरण कर लिया और उन्हें भगवान विष्णु के साथ विवाह करने से बचाने के लिए जंगल में ले गईं, तभी से इस व्रत को “हरतालिका तीज” के नाम से जाना जाता है।

यह व्रत विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है जो अपने पति की दीर्घायु और समृद्धि की कामना करती हैं। साथ ही, कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को करती हैं ताकि उन्हें अच्छा और योग्य जीवनसाथी प्राप्त हो सके। इस व्रत को करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका आशीर्वाद जीवन में सुख-समृद्धि और शांति लाता है।

हरतालिका तीज में क्या-क्या किया जाता है?

व्रत का पालन:

हरतालिका तीज व्रत को करने के लिए महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान कर लेती हैं और शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं। यह व्रत निर्जला व्रत होता है, यानी इस दिन जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है। महिलाएं दिनभर बिना अन्न और जल के रहती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। इस व्रत को अत्यंत कठिन माना जाता है, लेकिन यह मान्यता है कि जो महिलाएं इसे श्रद्धा और भक्ति से करती हैं, उन्हें जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पूजन विधि:

हरतालिका तीज के दिन महिलाएं शिव-पार्वती और नंदी जी की प्रतिमाओं की पूजा करती हैं। इस पूजा के लिए मिट्टी या बालू की सहायता से भगवान शिव, माता पार्वती और नंदी जी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। इन प्रतिमाओं का चार प्रहर (दिन और रात के चार भाग) में पूजन किया जाता है। पूजा के समय भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, और अन्य सुगंधित पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही, माता पार्वती को श्रृंगार सामग्री जैसे चूड़ियां, सिंदूर, और कुमकुम अर्पित किया जाता है।

रात्रि जागरण:

हरतालिका तीज की पूजा रात्रि भर चलती है, इसलिए इस दिन रात्रि जागरण करना आवश्यक होता है। महिलाएं पूरी रात जागकर भगवान शिव और माता पार्वती के भजन-कीर्तन करती हैं और उनकी आराधना में समय बिताती हैं। रात्रि जागरण का उद्देश्य यह होता है कि भक्त अपनी पूरी श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न कर सकें।

कथा का श्रवण:

इस व्रत की पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब हरतालिका तीज की कथा का श्रवण किया जाए। व्रत करने वाली महिलाएं एक साथ बैठकर इस पवित्र कथा को सुनती हैं। कथा के बिना व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है, इसलिए यह कथा सुनना आवश्यक होता है।

हरतालिका तीज की कथा:

कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। माता पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और इसलिए उन्होंने यह संकल्प लिया कि वे भगवान शिव को ही अपना पति बनाएंगी।

माता पार्वती ने हिमालय पर्वत पर कठिन तपस्या की। उनकी इस तपस्या को देखकर उनके पिता, हिमालय, चिंतित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु के साथ उनकी शादी तय कर दी। जब माता पार्वती को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने अपनी कुछ सखियों की मदद से वहां से पलायन किया और जंगल में जाकर भगवान शिव की आराधना करने लगीं।

माता पार्वती ने निर्जन जंगल में बिना अन्न-जल ग्रहण किए कठोर तपस्या की। उनकी इस भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

इस कथा के आधार पर ही हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में माता पार्वती के भक्ति, समर्पण, और पति के प्रति उनके प्रेम को दर्शाया जाता है।

व्रत की विशेषताएं:

  • निर्जला व्रत: इस व्रत में महिलाएं दिनभर बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहती हैं। व्रत को पूर्ण करने के लिए उन्हें रात्रि जागरण भी करना पड़ता है।
  • पूजा की विधि: इस दिन शिव-पार्वती की मूर्तियों की पूजा की जाती है। मिट्टी से बनी इन मूर्तियों का विशेष महत्व होता है और उन्हें चार प्रहर में पूजा जाता है।
  • कथा का महत्व: हरतालिका तीज की कथा सुनना आवश्यक होता है, क्योंकि बिना कथा श्रवण किए व्रत का फल प्राप्त नहीं होता।
  • सामूहिक पूजा: हरतालिका तीज का व्रत सामान्यत: सामूहिक रूप से किया जाता है, जहां सभी महिलाएं एक साथ बैठकर पूजा करती हैं और कथा का श्रवण करती हैं।

हरतालिका तीज का आधुनिक संदर्भ:

आज के समय में भी हरतालिका तीज का व्रत महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह व्रत न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह महिलाओं को अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण को और भी मजबूत बनाने का अवसर देता है। इसके अलावा, यह व्रत महिलाओं के लिए सामाजिक मेलजोल का भी एक माध्यम बनता है, जहां वे एक-दूसरे के साथ समय बिताती हैं और अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त करती हैं।

हरतालिका तीज व्रत में किए जाने वाले इन सभी अनुष्ठानों का उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करना है। इस व्रत को धारण करने वाली महिलाएं जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए भगवान शिव और माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं।