आज जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला जरूर सुनें, यह आपके जीवन को खुशियों से भर देगा।

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी मथुरा 2024 | मथुरा और वृंदावन Live | Janmashtami

कृष्ण की माखन चोरी से दही हांडी तक: एक अनूठी परंपरा की कहानी

दही हांडी महोत्सव भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की शरारतों और उनकी माखन चोरी की घटनाओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण और जीवंत उत्सव है। इस त्योहार का आयोजन खासकर महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के अवसर पर होता है। दही हांडी की परंपरा का मूल भगवान कृष्ण की उन कहानियों में है, जब वे अपने ग्वाल बालों के साथ मिलकर गांव के घरों से माखन और दही चुराते थे। गांववाले अपनी खाद्य सामग्री को बचाने के लिए इन हांडियों को ऊंचाई पर बांध देते थे, जिसे कृष्ण और उनके साथी मानव पिरामिड बनाकर तोड़ते थे।

दही हांडी का आयोजन अब एक बड़े और रोमांचक सार्वजनिक समारोह के रूप में होता है, जहां ‘गोविंदाओं’ की टीमें ऊंचाई पर बंधी हांडी को तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाती हैं। इस महोत्सव में संगीत, नृत्य और रंगीन परिधानों के साथ उत्सव का माहौल बनता है। इसके अलावा, दही हांडी की तैयारी और आयोजन के तरीके भी इस परंपरा की महत्ता को बढ़ाते हैं, जो भगवान कृष्ण के प्रति भक्तों के प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है।

जन्माष्टमी पर 56 भोग और माखन-मिश्री का धार्मिक महत्व और तैयारी की विधि

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर 56 भोग और माखन-मिश्री का विशेष महत्व होता है। 56 भोग, जिन्हें ‘छप्पन भोग’ भी कहा जाता है, भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करने का एक अद्वितीय तरीका है। यह परंपरा उस समय की है जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। माखन-मिश्री का भोग भी श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रिय है, क्योंकि वे बाल्यकाल में गोपियों के घरों से माखन चुराते थे।

भोग तैयार करते समय शुद्धता और भक्ति का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। 56 भोग में विभिन्न मिठाई, फल, मेवे, और पकवान शामिल होते हैं, जबकि माखन-मिश्री ताजा मक्खन और मिश्री से बनाई जाती है। इन भोगों की पूजा और अर्पण से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जन्माष्टमी पर इस विधि से भगवान कृष्ण को प्रसन्न कर, उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

श्री बांके बिहारी के दुर्लभ दर्शन: जन्माष्टमी की दिव्य अनुभूति

मंदिरों में आयोजित होने वाले विशेष कार्यक्रम:
जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। रात्रि 12 बजे, जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, उस समय विशेष आरती और पूजा का आयोजन होता है। इस समय भक्त भगवान कृष्ण के भक्ति गीत गाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके दर्शन करते हैं। मथुरा और वृंदावन में इस दिन का उत्सव और भी भव्य होता है, जहाँ पर रासलीला और झांकियों का विशेष आयोजन किया जाता है।

मंदिर दर्शन के समय ध्यान रखने योग्य बातें:

  1. शुद्धता और स्वच्छता: मंदिर में प्रवेश करने से पहले स्वयं को स्वच्छ रखें। मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखें और वहाँ फैली किसी भी गंदगी को हटाएं।
  2. विनम्रता और शांति: मंदिर में प्रवेश करते समय शांत और विनम्र रहें। अनावश्यक शोरगुल से बचें, और भगवान की पूजा करते समय ध्यानमग्न रहें।
  3. भीड़ प्रबंधन: जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में भीड़ अधिक होती है, इसलिए बच्चों और वृद्धों का विशेष ध्यान रखें। भीड़ के दौरान धैर्य बनाए रखें और एक-दूसरे को धक्का-मुक्की से बचें।
  4. भक्ति सामग्री: भगवान कृष्ण के लिए बांसुरी, माखन-मिश्री, इत्र, और नए वस्त्र लेकर जाएं। इन वस्त्रों को मंदिर में अर्पित करें और भगवान की कृपा प्राप्त करें।
  5. आरती और भजन में भागीदारी: मंदिर में होने वाली आरती और भजन-कीर्तन में सक्रिय रूप से भाग लें। यह भगवान की भक्ति का अद्वितीय तरीका है और आपको आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
  6. समय पर पहुँचें: यदि आप विशेष पूजा या आरती में भाग लेना चाहते हैं, तो समय पर मंदिर पहुंचें ताकि आप सभी कार्यक्रमों का हिस्सा बन सकें।
  7. सामान की देखभाल: मंदिर में भीड़ के कारण, अपने सामान का ध्यान रखें। अपनी जेबें सुरक्षित रखें और कीमती वस्त्रों को सुरक्षित स्थान पर रखें।
  8. भंडारा और प्रसाद ग्रहण: मंदिर में आयोजित भंडारा और प्रसाद ग्रहण करें। यह धार्मिक आयोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे बहुत ही श्रद्धा और भक्ति से लेना चाहिए।

जन्माष्टमी पर व्रत क्यों रखते हैं

हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण की पूजा को सभी संकटों से मुक्ति और सुख-समृद्धि का वरदान देने वाली माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म इसी दिन हुआ था, इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत व्यक्ति को अकाल मृत्यु और पाप कर्मों से बचाते हुए मोक्ष की प्राप्ति कराता है। जन्माष्टमी का व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है, क्योंकि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने इसी पावन तिथि पर पृथ्वी पर जन्म लिया था। इस दिन स्त्री-पुरुष रात बारह बजे तक व्रत रखते हैं। व्रत के साथ-साथ इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। हजारों अश्वमेध यज्ञ, सहस्रों राजसूय यज्ञ, दान तीर्थ और व्रत से प्राप्त होने वाले पुण्य का फल कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को करने से प्राप्त होता है।

कृष्ण जन्माष्टमी: बच्चों के लिए मजेदार और शिक्षाप्रद कहानियाँ

श्री कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी का उत्सव है, जो हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, भगवान कृष्ण की बचपन की कहानियाँ और उनकी अद्भुत लीलाएँ सुनाना बच्चों के लिए बहुत रोचक और शिक्षाप्रद हो सकता है। आइए, जानें कुछ खास कहानियाँ जो इस जन्माष्टमी पर बच्चों को सुनाना चाहिए:

1. कन्हैया की माखन चोरी

कहानी: एक बार की बात है, मथुरा में एक प्यारे से छोटे बच्चे, कन्हैया ने अपनी माखन चोरि की आदत से सभी को चौंका दिया। श्री कृष्ण ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर बर्तन में रखे हुए माखन को चुराने का बड़ा मजा लिया। एक दिन, यशोदा माता ने कन्हैया को रंगे हाथ पकड़ लिया जब वह माखन चुरा रहे थे। माता यशोदा ने कन्हैया को समझाया और उनसे वादा लिया कि वह अब माखन नहीं चुराएंगे। यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि छोटी-मोटी गलती के बावजूद प्यार और समझ से सब कुछ ठीक हो सकता है।

2. गोपाल का राक्षस वध

कहानी: एक बार मथुरा के जंगल में एक बहुत बड़ा राक्षस रहा करता था, जो गांववालों को बहुत परेशान करता था। भगवान कृष्ण ने गोपाल के रूप में आकर इस राक्षस को हराया। गोपाल ने अपनी चतुराई और साहस से राक्षस को हराकर गांववासियों को राहत दिलाई। इस कहानी से बच्चों को यह सिखने को मिलता है कि भले ही कोई समस्या बड़ी क्यों न हो, सही सोच और साहस से उसे हल किया जा सकता है।

3. नंदनी का बांसुरी का जादू

कहानी: भगवान कृष्ण की बांसुरी का जादू बहुत प्रसिद्ध है। एक बार, श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाकर पूरे गांव को मोहित कर दिया। जब वह बांसुरी बजाते थे, तो उनके सुरों से सभी जीवों का दिल छू जाता था। बच्चों को यह कहानी बताकर आप उन्हें यह सिखा सकते हैं कि कला और संगीत का जादू कितना शक्तिशाली हो सकता है और यह सभी को जोड़ने का एक सुंदर तरीका है।

4. माखन-छोरी का मजेदार खेल

कहानी: भगवान कृष्ण और उनके दोस्तों ने एक दिन माखन-छोरी का खेल खेला। कृष्ण जी और उनके दोस्तों ने मिलकर माखन के बर्तन को लुका दिया और फिर खोज-बीन कर उसे ढूंढा। इस खेल में उन्होंने अपने मित्रों को भी शामिल किया और सब मिलकर खूब मस्ती की। बच्चों को यह कहानी सुनाकर आप उन्हें यह सिखा सकते हैं कि दोस्तों के साथ मिलकर खेलना और मस्ती करना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

5. कृष्ण और कालिया नाग

कहानी: भगवान कृष्ण ने अपनी अद्भुत शक्ति से कालिया नाग को हराया। कालिया नाग बहुत ही ज़हरीला था और यमुनाजी में रहने के कारण उसे सभी से डर था। भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी सी उम्र में ही कालिया नाग को हराकर गांववासियों को सुरक्षित किया। यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि भले ही हम छोटे हों, लेकिन हमें अपने साहस और सही इरादों से बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करना चाहिए।

6. धरणी पर मूसलधार बारिश

कहानी: भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गांववासियों को गोवर्धन की बारिश से बचाया। जब इन्द्रदेव ने गुस्से में आकर मूसलधार बारिश की, तो कृष्ण जी ने अपनी शक्ति से गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांववासियों को सुरक्षित किया। यह कहानी बच्चों को यह सिखाती है कि संकट के समय सही निर्णय और साहस से हमें मुश्किलों का सामना करना चाहिए।

7. कृष्ण और पूतना

कहानी: पूतना नाम की राक्षसी ने भगवान कृष्ण को मारने की कोशिश की, लेकिन कृष्ण जी ने उसे अपनी शक्ति से पराजित कर दिया। पूतना ने भगवान कृष्ण को दूध पिलाने का प्रयास किया, लेकिन कृष्ण जी ने उसकी सच्चाई को जानकर उसे मात दे दी। यह कहानी बच्चों को यह सिखाती है कि किसी भी बुरे व्यक्ति को उसके कर्मों का फल मिलता है, और सच्चाई की हमेशा जीत होती है।

8. कृष्ण और बकरी की कथा

कहानी: भगवान कृष्ण ने एक बार एक बकरी को अपने मित्र बनाया। बकरी ने भगवान कृष्ण के साथ खेला और उन्हें बहुत प्यार किया। इस बकरी की कहानी से बच्चों को यह सिखाया जाता है कि प्रेम और मित्रता किसी भी जीव के साथ हो सकती है और इसे निभाना हमेशा अच्छा होता है।

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कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं। आज का दिन नंद के लाला, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है। इस विशेष दिन को कैसे मनाया जाए, और क्या-क्या करना चाहिए, आइए जानें।

सुबह की शुरुआत: जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सबसे पहले सूर्य भगवान को जल अर्पित करें और प्रार्थना करें कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव पर हमें भक्ति, प्रेम और समर्पण की भावना से परिपूर्ण करें।

भगवान का स्नान और श्रृंगार: नहा-धोकर भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और शहद) से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान का सुंदर श्रृंगार करें। उनके लिए नए वस्त्र, आभूषण और पुष्पों से सजाएं। भगवान के मंदिर को भी सजाएं और दीये जलाएं। ठाकुर जी को इत्र से मालिश करें और घर में बने स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाएं।

मंत्र जाप और भक्ति: आज के दिन ज्यादा से ज्यादा समय भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र जाप में बिताएं। “श्री कृष्ण शरणं मम” का जाप करें और प्रार्थना करें कि “हे श्रीकृष्ण, हम आपकी शरण में हैं, हे प्रभु हम आपके हैं।” इस प्रकार, भगवान के ध्यान में मग्न होकर दिन बिताएं।

सद्कार्य और सेवा: जन्माष्टमी के दिन हमें अच्छे कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए। हो सके तो किसी जरूरतमंद की मदद करें, भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाने का संकल्प लें। इस दिन की गई सेवा का फल भगवान श्रीकृष्ण स्वयं देखेंगे और उसका आशीर्वाद देंगे।

रात्रि का पूजन: जैसे-जैसे दिन ढलता है और रात आती है, भगवान का विधिपूर्वक पूजन करें। रात के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय आरती करें और “भय प्रकट गोपाला, परम दयाला” जैसे भजनों के साथ भगवान की स्तुति करें।

कीर्तन और भजन: पूरे दिन भगवान के कीर्तन और भजनों में मग्न रहें। “श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा” जैसे भजनों के साथ भगवान की महिमा का गुणगान करें। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का यह पावन पर्व मनाएं और अपने जीवन को उनकी भक्ति में समर्पित करें।

आखिरी विचार: आज के दिन देवता भी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होते हैं। वे भगवान को पुष्पों की वर्षा करते हैं, और हमें भी अपने मन रूपी पुष्प को भगवान के श्रीचरणों में अर्पित करना चाहिए। जन्माष्टमी का यह दिन भगवान के प्रेम और भक्ति में डूबने का है। आइए, हम सब मिलकर इस पावन पर्व को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाएं।

जय श्री कृष्ण!