
सावन में अन्नदान का महत्व: अंतिम सोमवार से पहले जानें ये गूढ़ रहस्य। श्री अनिरुद्धाचार्य जी द्वारा
एक बार एक घने जंगल में एक सुंदर सा घोंसला बनाने वाली चिड़िया और उसका परिवार सुखी जीवन बिता रहे थे। चिड़िया का परिवार उसके पति और छोटे-छोटे बच्चों से मिलकर बना था, और वे सभी अपने घोंसले में आनंदपूर्वक रहते थे। एक दिन, एक निर्दयी शिकारी उस जंगल में आ पहुँचा। वह शिकारी भूखा और ठिठुरता हुआ था, लेकिन उसे जंगल में शिकार के लिए कोई पक्षी नहीं मिला।
शिकारी जंगल में रास्ता भटक गया और संयोगवश उसी पेड़ के नीचे जा बैठा जहाँ चिड़िया का घोंसला था। शिकारी ने आग जलाने की कोशिश की, पर बारिश के कारण लकड़ियाँ गीली हो गईं और आग नहीं जल पाई। ठंड से काँपते शिकारी को देख चिड़िया ने अपने पति से कहा, “देखो, यह भूखा और ठिठुरता हुआ यहाँ आया है। हमें इसकी मदद करनी चाहिए।”
चिड़िया ने अपना घोंसला कुतरकर नीचे गिरा दिया, जिससे शिकारी ने आग जलाई और अपनी ठंड दूर की। लेकिन शिकारी अभी भी भूखा था और कोई शिकार न मिलने के कारण वह चिड़िया की ओर देखने लगा। चिड़िया ने यह देखते हुए अपने पति से कहा, “यह हमारा अतिथि है और भूखा है, हमें इसे भोजन देना चाहिए।”
चिड़िया ने अपने पति और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी दी और खुद आग में कूदकर शिकारी का भोजन बन गई। उसके बलिदान के बाद भी शिकारी की भूख नहीं मिटी, तो चिड़िया के बच्चे और उसका पति भी एक-एक करके आग में कूद गए। शिकारी ने पूरा परिवार खा लिया, और तब जाकर उसकी भूख मिट पाई।
लेकिन इस अद्भुत बलिदान के बाद, चमत्कारिक रूप से एक दिव्य विमान आया, जो चिड़िया, उसके पति, और बच्चों को देवताओं के रूप में बैकुंठ ले गया। शिकारी यह देखकर चकित रह गया और विमान लाने वाले पार्षद ने उसे बताया कि चिड़िया ने अतिथि का धर्म निभाया था, और इसके फलस्वरूप वह अब भगवान के धाम जा रही है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी को भोजन कराना सबसे श्रेष्ठ दान है। चाहे वह पक्षी हो, जानवर हो, या इंसान, सबका पेट भरना सनातन धर्म की महानता को दर्शाता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हुए हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहना चाहिए। अन्नदान, सबसे श्रेष्ठ दान है, और इससे भगवान अवश्य प्रसन्न होते हैं।
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