हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। इस एकादशी का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।

अपरा एकादशी का महत्व

अपरा एकादशी का नामकरण इस तथ्य से हुआ है कि यह हमें अपार पुण्य और आशीर्वाद देती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसके अतिरिक्त, यह एकादशी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।

अपरा एकादशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है कि एक राज्य में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही पापी और अधर्मी था। वज्रध्वज ने अपने बड़े भाई महीध्वज की हत्या कर दी और उसका शव जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। राजा महीध्वज की आत्मा प्रेत रूप में उस पेड़ पर रहने लगी और बड़ा उत्पात मचाने लगी।

धौम्य ऋषि एक दिन उस रास्ते से गुजरे और उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से प्रेतात्मा को पहचान लिया। ऋषि ने उस प्रेतात्मा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए अपरा एकादशी का व्रत किया। विधि-विधान से व्रत करने के बाद उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि इस व्रत का पुण्य प्रेतात्मा को मिल जाए। भगवान विष्णु की कृपा से प्रेतात्मा को मुक्ति मिल गई और वह बैकुंठ धाम को चला गया।

पूजन विधि

अपरा एकादशी के दिन श्रीहरि की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को केसर, चंदन, फूल, तुलसी की माला, पीले वस्त्र, और फल चढ़ाए जाते हैं। भगवान विष्णु को खीर या दूध से बने पकवान का भोग लगाकर पूजा की जाती है। धूप और दीप जलाकर विष्णु गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है। मंत्र जप के बाद भगवान की धूप, दीप और कपूर से आरती की जाती है और चरणामृत और प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

व्रत का महत्व

अपरा एकादशी व्रत को संपूर्ण विधि-विधान के साथ रखने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत व्यक्ति को अपार पुण्य और भगवान विष्णु की कृपा प्रदान करता है। इसलिए, इस दिन श्रद्धालु व्रत रहकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी कथा सुनते हैं।