यह कथा हारिद्वार के प्रसिद्ध हर की पूजा पर की जा रही है, जिसमें हरि नाम का जिक्र किया गया है और हरि के गुणों की महिमा गाई गई है। इस गाने में भगवान की पूजा की जाती है और उनके गुणों की स्तुति की गई है। इस गाने में भगवान की आरती की जाती है और उनके भक्तों को उनके द्वार पर स्वागत करने की विनती की गई है। इस गाने में भगवान के गुणों की महिमा का वर्णन किया गया है और उनकी पूजा के लिए वंदना किया गया है। इस गाने में भगवान की पूजा की जाती है और उनके भक्तों को उनके गुणों की स्तुति की गई है।

यह कथा हारिद्वार के प्रसिद्ध हर की पूजा पर की जा रही है, जिसमें हरि नाम का जिक्र किया गया है और हरि के गुणों की महिमा गाई गई है। इस गाने में भगवान की पूजा की जाती है और उनके गुणों की स्तुति की गई है। इस गाने में भगवान की आरती की जाती है और उनके भक्तों को उनके द्वार पर स्वागत करने की विनती की गई है। इस गाने में भगवान के गुणों की महिमा का वर्णन किया गया है और उनकी पूजा के लिए वंदना किया गया है। इस गाने में भगवान की पूजा की जाती है और उनके भक्तों को उनके गुणों की स्तुति की गई है।

पूर्ण वीडियो प्रतिलेख

0:05 वाला हरि नाम यही हरि धाम यही हरि हरि नाम यही हरि धाम यही जग के मंगल की

0:14 आरती पापियों को पाप से है तारती श्री

0:20 भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है

0:28 तारती पावन पुनीत पापों को मिटाने वाला

0:34 हरि दर्श कराने वाला ये शांति गीत पावन पुनीत पापों को मिटाने वाला हरि दर्श

0:44 कराने वाला ये सुख करनी ये दुख हरनी ये

0:49 सुख करनी ये दुख हरनी श्री मधुसूदन की आरती पापियों को पाप से है तारती श्री भाग

0:59 भत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती ये मधुर

1:08 बोल सतपंथ खोल सनमार्ग दिखाने वाला है बिगड़ी को बनाने वाला है ये मधुर बोल सद

1:18 पंत कोल बिगड़ी को बनाने वाला पापों को मिटाने वाला श्री राम यही घनश्याम यही

1:27 श्री राम यही घनश्याम यही श्री राम यही घनश्याम यही श्री राम यही घनश्याम यही

1:36 प्रभु की महिमा की आरती पापियों को पाप से है तारती श्री

1:43 भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती करपूर

1:52 गौरम करुणावतारं संसार सारम भुजगेंद्र हारम सदा वसंतम हृदयार विंद भव भवानी सहित

2:01 नमा त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्व बंधु

2:08 त्वमेव त्वमेव सर्व मम देव देव तुव सर्वम मम देव

2:15 देवव सर्व देव

2:23 देव देवा मंत्र पुष्पांजलि नाना सुगंध पुण यथा कालोद

2:31 भवानी च पुष्पांजलि रमया दत्तो ग्रहण

2:38 परमेश्वर सुमन सुगंधित सुमन स सुमन

2:44 सुगंधि अपार पुष्पांजलि अर्पण करें बांकी बिहारी

2:51 करो स्वीकार मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि नमः बोलिए बांके बिहारी सरकार की

3:02 [संगीत]

3:14 जय आप सभी भक्त जो खड़े हुए हैं अन्यत्र जगह भी आप लोग खड़े हुए हैं साइड में भी

3:20 खड़े हुए हैं आप सभी से निवेदन है कि आसन पर आकर विराजमान हो और बड़ी श्रद्धा बड़े

3:27 भाव से जो है भन की अमृतम इस दिव्य वेला का आप सभी लाभ

3:33 उठावे भगवान की हम सभी के ऊपर विशेष अहित की कृपा हुई

3:41 है इस कृपा के भगवान ने हमें पात्र बनाया है तो आप सभी इस कृपा में आनंदित हो इस

3:49 कृपा में सराबोर होएगा इस दिव्य सभा में विराजमान होकर के

3:55 भगवान की परम मंगलमय कथा श्रवण कर अपने जीवन को करता करें क्योंकि भगवान की कृपा

4:02 से ही ऐसे सौभाग्य ऐसे शुभ अवसर हमें प्राप्त होते हैं भाग्य दन बहु जन्म समर

4:08 जितेन सत्संग मम चलते पुरुषो यदा बड़े जन्म जन्मांतर के भाग्यं का हमारा उदय हुआ

4:17 पूर्वजों की विशेष महती कृपा हुई हम सभी के ऊपर तब ऐसा सौभाग्य ऐसा शुभ अवसर हम

4:23 सभी भक्तों को प्राप्त हुआ है इस अवसर को ऐसे ही आप ना जाने दें

4:30 [संगीत] इस सुंदर अवसर में आप सभी त प्रोत होते

4:36 हुए अपने जीवन को कृतार्थ करें आइए हम और आप सभी श्रद्धेया वसुधा श्री जी की सुंदर

4:45 दिव्य अमृतम वाणी को श्रवण करने हेतु उनकी दिव्य वाणी की ओर चलते हैं जय श्री राधे

4:51 जय श्री श्याम बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की

4:58 जय श राधे [संगीत]

5:04 राधे श्री राधे राधे श्री राधे हरे

5:13 कृष्णा श राधे

5:19 राधे राधे राधे हरि

5:27 बोल गिर रहा है बोल बाल कृष्ण

5:33 लाल की

5:40 [संगीत] जय माइक

5:48 ले

5:55 [संगीत] आ [संगीत]

6:11 श्री

6:17 गणेशा [संगीत]

6:24 नमः श्री

6:35 सरस्वत [संगीत]

6:41 नमः

6:47 श्री राधा कृष्ण चरण कमले

6:55 भयो नमः

7:02 [संगीत] श्री सीताराम

7:09 भ्यम [संगीत]

7:16 नमः श्री वेद

7:26 पुरुष नमः [संगीत]

7:35 श्री मात पित चरण कमले

7:40 [संगीत] भयो

7:46 [संगीत] नमः

7:52 ओम नमः [संगीत]

7:58 परमहंसा स्वाद चरण कमल चन

8:05 [संगीत] मकरंद भक्त जन

8:14 मानस [संगीत]

8:19 निवासा श्री राम [संगीत]

8:28 चंद्राय [संगीत]

8:34 नारायणम

8:39 [संगीत] नमस्कृत्य नरम चव

8:48 [संगीत] नरोत्तम देवम सरस्वति

8:56 व्यास ततो ज मुद [संगीत]

9:07 रहे श्री सच्चिदानंद

9:12 [संगीत] रूपाय विश्वत

9:19 पत दिहे

9:24 तवे ता पत्र विना

9:31 साय श्री कृष्णाय वयम

9:40 नमः सब द्वार को छोड़कर

9:46 मैं आई तेरे

9:53 द्वार हे वृष भानु जो की लाडली

10:00 जरा मेरी ओर

10:06 [संगीत] निहार श्री राधे मेरो मात

10:12 [संगीत] है पिता मेरे

10:22 घनश्याम इन दनन के चरणन

10:28 में मेरा [संगीत] बारंबार

10:33 [संगीत] प्रणाम बोलिए श्रीमद भागवत

10:39 महापुराण की जय श्री व्यास जी महाराज की

10:45 जय शी सुखदेव जी भगवान की जय जय जय

10:51 श्री

10:58 राधे [संगीत]

11:10 परम मंगलमय परात्पर [संगीत]

11:15 अखिलेश्वर अकारण करणा वनालय भक्त वंशा कल्प

11:23 तरु तत विनत पीतांबर धारी हमारे श्री बालकृष्ण लाल की वांगम प्रति

11:30 श्रीमद भागवत महापुराण के चरणों में कोट सा वंदन [संगीत]

11:36 प्रणाम कथा के प्रथम रसक श्री हनुमंत लाल जी महाराज के चरणों में कोट स वंदन

11:42 प्रणाम बाबा भोलेनाथ मां पार्वती के चरणों में कोटि कोटि वंदन

11:51 प्रणाम व्यास मंच

11:56 के नीचे उपस्थित सभी हरिभक्त कथा के

12:03 रसिक आप सभी को प्रेम भरा राधे

12:08 राधे जैसा कि आप सभी अवगत है कि श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा में आज

12:18 तृतीय दिवस [संगीत] की ज्ञान गंगा में हम आप सभी डुबकी लगाने

12:25 के लिए उपस्थित हुए हैं आज की कथा में प्रवेश से पूर्व कुछ क्षण भगवन नाम

12:33 संकीर्तन करेंगे [संगीत]

12:38 तत्पश्चात आज की कथा में हम आप सभी प्रवेश

12:45 करेंगे कथा से पूर्व भगवन नाम संकीर्तन

12:50 किया जाता है और कथा के बाद एक बार

12:55 कथा विश्राम से पूर्व एक बार भगवन नाम संकीर्तन किया जाता

13:03 है जिसका बहुत ही ज्यादा महात्म है जिस महातम को आज मैं बताऊंगी और निवेदन यही

13:10 करूंगी कि अगर कीर्तन हो रहा है तो इस कीर्तन में आप भी कीर्तन का गायन

13:19 करें और अपने जीवन को धन्य बनाए

13:27 आइए जय जय श्री

13:39 राधे जय जय श्री

13:48 राधे जय जय श्री [संगीत]

13:55 श्यामा जय जय श्री श्याम [संगीत]

14:02 जय जय श्री राधे जय जय श्री

14:10 [संगीत] राधे जय जय श्री

14:19 श्यामा जय जय श्री

14:24 श्यामा जय जय श्री राधे

14:31 जय जय श्री राधे जय जय श्री

14:42 श्यामा जय जय श्री

14:47 श्यामा जय जय श्री

14:53 राधे जय जय श्री राधे

15:00 जय जय श्री [संगीत] श्यामा जय जय श्री

15:09 [संगीत] श्यामा

15:15 [संगीत]

15:27 ज [संगीत]

15:41 [संगीत]

15:57 जय जय श्री [संगीत] राधे जय जय श्री

16:07 राधे जय जय श्री

16:13 श्यामा जय जय श्री [संगीत]

16:18 श्यामा जय जय श्री राधे जय राधे राधे जय जय श्री

16:27 राधे जय राधे जय जय श्री

16:35 श्यामा जय जय श्री [संगीत]

16:40 श्यामा जय जय श्री राधे जय राधे राधे जय जय श्री

16:49 राधे जय राधे जय जय श्री

16:55 [संगीत] श्यामा जय जय श्री [संगीत]

17:02 श्यामा जय जय श्री [संगीत]

17:07 राधे जय जय श्री राधे जय

17:13 राधे जय जय श्री

17:18 श्यामा जय जय श्री

17:23 श्यामा वृंदावन सोवन नहीं

17:29 नंद ग्राम सो ग्राम बंसीवट स वट

17:39 नहीं श्री राधे कृष्ण को

17:45 ना वृंदावन सोवन

17:50 नहीं नंदगांव [संगीत]

17:57 सोगा नहीं श्री राधे कृष्ण

18:06 सुना जय जय श्री राधे जय राधे राधे जय जय श्री

18:14 राधे जय राधे राधे जय जय श्री

18:20 [प्रशंसा] श्यामा जय जय श्री

18:27 श्यामा जय जय श्री

18:32 राधे जय जय श्री

18:37 राधे जय जय श्री [संगीत]

18:42 श्यामा जय जय श्री [संगीत] श्यामा जय जय श्री

18:50 राधे जय राधे राधे जय जय श्री

18:55 राधे जय राधे राधे जय जय श्री

19:02 श्यामा जय जय श्री श्यामा जय जय श्री

19:10 राधे जय राधे राधे जय जय श्री

19:16 राधे राधे राधे जय जय श्री

19:23 श्यामा जय जय श्री श्यामा

19:29 [संगीत]

20:03 हरी [संगीत]

20:11 बोल रा

20:17 [संगीत]

20:26 राधे भक्त भगवान से हम

20:32 तुम्हारे थे प्रभु जी हम

20:37 तुम्हारे हैं हम तुम्हारे ही

20:45 रहेंगे ओ मेरे

20:50 प्रियतम हम तुम्हारे थे प्रभु जी हम

20:57 तुम्हा रे हैं हम तुम्हारे ही

21:05 रंगे ओ मेरे

21:11 प्रियतम हम तुम्हारे थे प्रभु जी हम

21:18 तुम्हारे हैं हम तुम्हारे ही

21:27 रहेंगे रे प्रियतम हम तुम्हारे थे प्रभु जी हम

21:38 तुम्हारे हैं हम तुम्हारे ही

21:46 रहेंगे ओ मेरे प्रिय तुम हमारे थे प्रभु जी तुम

21:59 हो हे राधे तुम हमारे ही

22:05 रहो ओ मेरे प्रियतम जय जय श्री

22:13 राधे जय राधे राधे जय जय श्री राधे जय राधे राधे जय जय श्री

22:24 श्यामा जय जय श्री श्यामा एकदम लंबे लंबे हाथ श्री राधे ज

22:33 राधे जय जय श्री राधे जय जय श्री

22:42 राधे जय जय श्री श्यामा जय जय श्री

22:51 राधे जय जय श्री राधे जय राधे राधे जय जय

22:57 श्री श्यामा जय जय श्री

23:03 श्यामा जय जय श्री राधे जय जय श्री

23:11 राधे जय जय श्री श्यामा जय जय श्री

23:19 श्यामा हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे

23:28 हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे

23:34 हरे हरे रामा हरे रामा रामा

23:39 रामारा हरे हरे हरे रामा हरे रामा रामा

23:46 रामा हरे हरे हरे कृष्णा कष्णा हरे कृष्णा

23:52 कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे कृमा

23:57 हरे रामा रामा रामा हरे हरे हरे कृष्णा

24:04 हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे

24:10 रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे हरे रामा

24:17 हरे रामा रामा रामा हरे हरे हरे रामा हरे

24:24 रामा रामा रामा हरे हरे हरे रामा रामा हरे

24:30 हरे रामा रामा हरे हरे बोल बाल कृष्ण लाल की जय श्री कृष्ण

24:40 चंद्र भगवान की [संगीत]

24:51 जय श्री राधा रानी की परम

25:01 अनुकंपा उनकी अनन्य कृपा हम आप सभी पर

25:07 प्राप्त हुई है जो उनके

25:13 प्रियतम श्री प्रियालाल जी की कथा को श्रवण पान करने के

25:21 लिए यहां पर हम आप सभी उपस्थित हुए हैं

25:27 [संगीत] और इतनी ठंड में जहां पर सभी लोग अपने

25:35 अपने घरों में रजाई गद्दा ओढ के पड़े हुए हैं आप सभी यहां आए हैं तो कुछ तो प्रेरणा

25:43 दी ही होगी भगवान ने तभी पांडाल में आकर कथा श्रवण पान कर रहे

25:52 हैं जैसा कि आप सब अवगत है

25:59 पूर्व की कथाओं में हमने महत्तम की कथा श्रवण पान

26:05 करी उसके बाद हम आप सभी ने प्रथम स्कंद में प्रवेश

26:12 किया जिसमें भागवत को किसने लिखा भागवत

26:21 के लिखने के बाद किनको उत्तराधिकारी बनाया गया

26:28 महाभारत के कुछ प्रसंगों का आप हम सभी ने श्रवण पान

26:36 किया जिसमें कुंती महारानी ने भगवान श्री कृष्ण

26:43 से सिर्फ दुख इसलिए मांगा कि जब सुख आता

26:49 है जीवन में तो भगवान की भक्ति कम हो पाती

26:55 है क्योंकि हम लोग यत्र तत्र अन्यत्र के कार्यों में इतना

27:00 ज्यादा बिजी हो जाते हैं कि भगवान कम याद आ जाते हैं या फिर ये कहिए

27:09 कि व्यक्ति के पास जब धन आ जाता है ना तो वो ज्यादा प्रैक्टिकल हो जाता है आजकल एक

27:15 वर्ड चला है कि मैं तो बहुत प्रैक्टिकल हूं और मैं इन सब चीजों में ज्यादा बिलीव नहीं करता

27:21 हूं लेकिन हमारे यहां लोग प्रैक्टिकल होते जा

27:27 रहे हैं और वही 17वी शताब्दी के

27:33 बाद जो विदेशी लोग आए और जिन लोगों ने हमारे ग्रंथों वेदों पुराणों को पढ़ा जाना

27:41 समझा तो उन्होंने नए नए आविष्कार कर दिए और

27:51 उसका बताया कि हमने आविष्कार किया है खैर अब उन चीजों प प्रकाश पड़ रहा है

28:00 आप भी कहीं ना कहीं मोबाइल के माध्यम से देखने को पाते होंगे कि यह आविष्कार चाहे

28:07 वो गुरुत्वाकर्षण का हो चाहे सर्जरी का हो या फिर और भी वो हमारे भारत के ऋषि

28:14 मुनियों ने बहुत पूर्व में करके लिख के छोड़ दिया

28:20 था तो हम आप सभी प्रैक्टिकल हो गए हैं विदेशी बातों को अपनाते जा रहे

28:25 हैं और विदेश के लोग भी प्रैक्टिकल है पर यहां आक

28:31 वो चीजों को देखते हैं जानते हैं और फिर वह अपने नाम से कह देते कि हमने आविष्कार

28:36 किया है हमारा [संगीत]

28:43 सनातन कितना पुराना है यह जो कथा आप श्रवण पान कर रहे हैं

28:50 य कितनी पुरानी है पहले तो पता नहीं चलता था क्योंकि

28:57 लोगों के मुख से केवल सुनने को मिलता था लेकिन अब ऐसे यंत्र आ गए हैं जिन यंत्रों

29:05 के द्वारा अगर कोई चीज निकल रही है खुदाई में और पाई जा रही है तो उसका जांच हो रहा

29:11 है तो पाया जा रहा है कि कोई चीज 5000 वर्ष पुरानी है अभी तो शंकर जी की एक

29:18 मूर्ति निकली है शायद स्वर्ण की है जो 28

29:23 हज या करोड़ साल पुराना है ऐसा कुछ आप सभी भी मोबाइल में अगर सर्च करेंगे तो मिल

29:29 जाएगा तो हमारा सनातन कितना पुराना है और भी अगर सर्च करेंगे जानकारी करेंगे

29:40 तो पूरे विश्व

29:45 में जिस चीज के बारे में पहले लोग कहा करते थे कि पृथ्वी चपटी है हमारा भागवत और

29:53 तो मैं दूसरे का नहीं कहूंगी लेकिन भागवत में बा र होता है जिसम कहा जाता है कि

29:59 भगवान सूकर ने पृथ्वी गोल है जिसको अपने दो दांत निकले उसके ऊपर रखा था और

30:06 आपके इधर आसपास में कहीं पर उनका मंदिर भी पाया जाता है मैं इससे पहले आपके क्षेत्र

30:12 में आई थी 2019 में कथा करने वो लेकर गए थे वहां पर सूकर भगवान का वहां पर मंदिर

30:20 है जहां पर उन्होंने लिया हुआ है पृथ्वी को अपने दोनों दातों के

30:25 ऊपर तो तब बताया गया था कि पृथ्वी गोल है और 17वी या 18वीं शताब्दी में शायद

30:33 गैलीलियो ने कहा कि पृथ्वी गोल है तो उसको फांसी पर चढ़ा दिया गया था और हमारे यहां

30:41 तो उस सब्जेक्ट का नाम ही रखा गया भूगोल तो बस इतना मैं विशेष कथा में कभी

30:50 बाहर की बातें नहीं करती हूं दो दिन से कर भी रही हूं तो आप सुन भी रहे हैं मैं विशेष बाहर की बातें करना ही नहीं पसंद

30:57 करती क्योंकि भागवत जी में 18000 श्लोक है और इतना प्रसंग है अंदर का भागवत जी का कि

31:03 बाहर का कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है लेकिन फिर भी क्योंकि

31:09 सनातन को धीरे धीरे लोग भूलते जा रहे हैं

31:14 और भगवान की भक्ति करती आ रही हूं और अपने धर्म का प्रचार करना मेरा मुख्य कर्तव्य

31:21 सबसे पहले कि मैं अपने धर्म का प्रचार करूं

31:28 तो इसलिए थोड़ा बहुत कि जो हमारा सनातन

31:33 है वो कभी भी किसी से द्वेष रखना नहीं सिखाता यह कभी नहीं कहता कि आओ तुम मेरे

31:40 धर्म के बन जाओ हो तो बने रहो कहीं और कोई

31:45 और धर्म अच्छा लग रहा है तो जाओ बनो लेकिन किसी को मारो मत किसी को परेशान मत

31:55 करो और एक प्रश्न आया था कि लहसुन प्याज खाना चाहिए कि नहीं

32:03 आपके यहां ही किसी ने बोला था और अभी आधा घंटा पहले की बात है मंच पर आने से

32:10 पहले और मैं हमेशा बताया करती हूं कि लसुन प्याज अगर आपने कंठी माला धारण की हुई है

32:17 गुरुजी कहते हैं कि लसुन प्याज नहीं खाना [संगीत]

32:22 चाहिए प्रयास कीजिए कि ना खाइए और इसके

32:27 कारण क्या है क्यों नहीं खाना चाहिए तो कारण यह है कि जब समुद्र मंथन हुआ उसमें

32:36 से अमृत निकला तो देवी देवताओं को भी अमृत मिलना

32:41 था और राक्षसों को मिलना था क्योंकि दोनों ने समुद्र मंथन किया

32:47 था लेकिन अगर राक्षस अमृत पान कर लेते तो

32:53 महाराज फिर व अमर हो जाते फिर तो आतताई

32:58 जाते तो भगवान मोहिनी अवतार लेकर राक्षसों को मोहित कर लेते हैं और

33:07 देवी देवताओं को अमृत पान करवाने लगते हैं तब राहु और केतु जो है उसी देवी देवताओं

33:13 की लाइन में जाकर बैठ जाते हैं और जब व अमृत का घूंट गले तक उनका पहुंच जाता है

33:19 भगवान को पता चलता है वो राहु और केतु दोनों का सरधर से अलग कर देते हैं जो अमृत

33:26 मुख होते हुए गले तक गया था वह अंदर पेट में ना जाकर वह कट करर गले से धरती पर आ

33:33 गया एक बना लसुन और एक बूंद बना प्याज राहु केतु के

33:39 द्वारा क्योंकि वह राक्षस के मुख के अंदर

33:44 से पृथ्वी पर आया और फिर उसकी औषधिया बनती है और औषधि बहुत उपयोग भी

33:50 है वो वैसे तो अमृत का गुण लेकर अपने अंदर समाहित की हुई है

33:57 लेकिन क्योंकि राक्षस ने उसको ग्रहण किया था इसलिए भगवान को भोग नहीं

34:04 लगता तो और उस वो तामसी भोजन भी है थोड़ा सा तमस उसको खाने से उत्पन्न होता है आजकल

34:13 तो हर भोजन तामसी हो गया है तो लहसुन प्याज को क्यों इतना परेशान किया जाए कि

34:19 भाई इसमें ही तमस है हर व्यक्ति में तामस है हर अन्य हर चीज में

34:28 इससे परे मेरा मानना है औषधीय उपयोग में अगर आप लेना चाहते हैं लीजिए कोई पाप नहीं

34:33 लगता है आपकी मर्जी है लेकिन भगवान को भोग मत लगाइए और एक बात मेरा मानना है कि

34:41 लहसुन प्याज खाना है खाइए लेकिन किसी का धन हड़प कर मत

34:50 खाइए किसी का पैसा उधार लेकर कहिए भैया हम पैसा कब लिए थे हम तो जानते नहीं आप कौन

34:57 इस प्रकार से मत कीजिए किसी का अधिकार मत छीन

35:03 लीजिए किसी का पेंशन मत खा जाइए एक तरफ तो आप भगवान की बहुत पूजा कर

35:09 रहे हैं और एक तरफ आप किसी को परेशान कर रहे हैं प्रताड़ित

35:15 कर रहे हैं पीड़ित कर रहे हैं मुझे लगता है कि पीड़ित ना करके आप लसुन प्याज खाइए

35:21 तो वो ज्यादा बेहतर है तो भगवान को भोग नहीं लगता और कंठी जो

35:28 धारण कर लेते हैं उनको गुरु जी यही बताते हैं कि नहीं खाना चाहिए आज की कथा में हम

35:36 लोग आगे बढ़ते हैं जिसमें हम लोगों ने कल श्रवण पान किया था कि भीष्म पितामह जी जो

35:42 है उन्होंने भगवान के अंत समय में दर्शन

35:48 किए और उसके बाद भगवान के धाम उनका जाना

35:55 हुआ इधर उत्तरा जो गर्भवती थी उन्होंने एक बालक को जन्म

36:04 दिया और कहते हैं कि जब वह बालक जन्म लेता है तो जन्म लेते ही आंखों से वह चारी ओर

36:11 निहारता है चारों ओ देखने का प्रयास करता है इधर व्यास जी महाराज सुखदेव जी महाराज

36:17 को कथा श्रवण पान करवा रहे हैं व व्यास जी महाराज और इधर सुखदेव जी

36:24 महाराज परीक्षित जी महाराज को श्रवण पान करवा रहे हैं वो मुस्कुरा रहे हैं कि

36:34 परीक्षित ये बालक किसी और को नहीं निहार रहा है यह

36:39 निहार रहा है कि वो कौन कहां है जो मुझे गर्भ में जाकर बचाया

36:44 था वो जो गर्भ में आकर मेरी पीड़ा को शांत किया था जो मैं इतना जल रहा था गर्भ में

36:51 मैं परेशान था वहां पर मुझे जो शांति प्रदान किया था वो कहां है वो चारों

36:57 ओर देखते कोई गोद में ले लेता तो उसको बहुत अच्छे से निहारते और उसके बाद समझ

37:04 जाते कि यह वो व्यक्ति नहीं तो रोना चालू कर [संगीत]

37:12 देते श्री कृष्णचंद्र भगवान को जब पता चलता

37:18 है नामकरण संस्कार के समय भगवान श्री कृष्ण द्वारिका से आते

37:25 हैं और जब भगवान श्री कृष्ण अपनी गोद में उस

37:33 उत्तरा के बालक को लेते हैं महाराज तो वह

37:39 जो बालक था उसकी नजरें रुक जाती वह पहचान जाता है कि है यह वही पुरुष जिसने आकर

37:46 गर्भ में मेरी रक्षा [संगीत]

37:52 की श्री कृष्ण जी आशीर्वाद देते उनको और उस बालक का नाम रखा जाता है

38:01 विष्णु रात विष्णु रात कि जिन विष्णु भगवान ने रात्रि में

38:08 जाकर गर्भ में जिसकी रक्षा की हो उसका नाम विष्णु रा लेकिन क्योंकि वह बालक जन्म से ही

38:17 परीक्षण कर रहा था तो उसका नाम परीक्षित रख दिया गया और

38:23 परीक्षित नाम से व काफी आ

38:29 जाने धीरे धीरे परीक्षित जी बड़े होने लगे पुनः हमारे श्री कृष्ण

38:37 जी द्वारिका गए द्वारिका जाकर अपने माता पिता को प्रणाम करते हैं नमन करते

38:46 हैं और एक बात हमें हमेशा सीखना चाहिए कि

38:52 अभिवादनशीलस्य नृत्य विध अपि सेवन कि हमें

38:58 अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए जो अपने घर के बड़े बुजुर्ग

39:06 हैं उनकी सेवा करनी चाहिए आप चाहे कितने भी पढ़े लिखे

39:13 हो आपके बड़े बुजुर्गों के पास आपसे कई गुना ज्यादा अनुभव

39:19 है और यह क्या होता है ना 16 1 साल की उम्र में जब कोई कह रहा होता है तो नहीं

39:25 समझ में आता जब खुद व्यक्ति या तो उतना पढ़ लिख ले चीजों को जान ले इतनी दुनिया

39:31 देख [संगीत] ले तब समझ में आता है कि हमारे जो बड़े

39:38 बुजुर्ग या संत जन कहा करते थे कि चाहे कितना भी पढ़ लीजिए आप किताब का

39:45 ज्ञान पढ़े हैं ना दुनिया में रहना कैसे है दुनिया में

39:50 उठना कैसे है बैठना कैसे है व्यवहारिकता कैसे निभाना है यह हमारे बड़े बुजुर्गों

39:56 को पता है हमारे परिवार को पता है और परिवार को बच्चों को संस्कार जरूर देना

40:04 चाहिए कि आपसे अगर कोई बड़ा है तो उनके चरण स्पर्श कीजिए उनको नमन वंदन प्रणाम

40:12 कीजिए मैंने तो कई बार देखा है [संगीत] कि हम लोग कथावते हैं

40:21 तो लोग राम राम तक नहीं करते अच्छा मिलने आए

40:26 ऐसा नहीं मिलने नहीं आएंगे आएंगे और देवी जी बताइए कैसी है आप यह नहीं कि आते ही

40:33 पहले राम राम बोले अच्छा आज तो कोई आई हुई थी मैंने कहा आपके क य प्रथा नहीं है क्या

40:39 कि आपके कहा राम राम बोला जाता हो या राधे राधे बोला जाता हो व समझी ही

40:44 नहीं चली गई तो कम से कम अगर

40:52 जाइए तो चरण स्पर्श

40:58 कीजिए अगर उतना भाव नहीं बन पा रहा है कोई बात नहीं भाई अपने आप को बड़ा मान रहे हैं

41:05 कोई बात नहीं कम से कम हाथ जोड़कर राधे राधे तो कर ही सकते हैं आपका भी भला होगा

41:11 सामने वाले का भी भला होगा तो कल भी मैंने बोला था आज पुनः बोल

41:19 रही हूं और यह संस्कार ना बाल बच्चों में माता-पिता डालते हैं अगर आप खुद ही नमस्ते

41:26 प्रणाम नहीं कर रहे हो राधे राधे नहीं कर रहे हो तो आपके साथ दो चार बच्चे आए वो क्या सीखेंगे उनको भी वही लगेगा कि जब

41:33 मेरी मम्मी प्रणाम नहीं कर रही है मैं क्यों करूंगी प्रणाम तो कम से कम आपके जब कोई साधु संत

41:41 आए तो प्रणाम करना सीखिए क्योंकि साधु कभी यह नहीं कहेगा तुम्हारा भला ना हो अगर

41:49 प्रणाम करोगे तो आशीर्वाद ही देगा कि खुश

41:55 रहो करो जीवन में आगे बढ़ो तो कम से कम प्रणाम

42:01 करना सीखिए मैं तीन दिन से आई हूं मैंने तीन दिन में एक भी धन नहीं देखा लोग मतलब

42:06 ऐसे गाड़ी से जाती हूं तब करते हैं ऐसा नहीं है हाथ जोड़ लेते हैं लेकिन जैसे कभी

42:11 आ जाते हैं लोग मिलने मलने तो उनके मुह से राम राम तक नहीं निकल रहा है मैं बड़ी

42:17 आश्चर्य में हूं मैं पहली जगह ऐसी आई हूं जहां पर अवध के इतने पास में है आप मतलब

42:22 मेरी बातों का बुरा ना मानिए मतलब मैं छोटी भी हूं उम्र में

42:29 काफी लेकिन कम से कम राम राम करना सीखिए नहीं तो मैं कथा करके चली जाऊंगी

42:37 फिर अगले कोई कथावाचक आएंगे तो यही कहेंगे कि देवी जी ने राम राम करना भी नहीं

42:43 सिखाए राम नाम सत्य है वाला राम राम नहीं राम राम नमस्कार

42:51 प्रणाम आप भी करिए आप अपने बच्चों में भी संस्कार डालिए

42:57 आगे की कथा में क्या हमारी दिनचर्या होनी चाहिए अभी मैं वह भी बताने वाली

43:04 हूं श्री परीक्षित जी महाराज धीरे धीरे बड़े होने लगे अर्जुन जी

43:11 जो है व कृष्ण जी के साथ द्वारिका में निवास कर रहे

43:19 हैं बहुत समय जब बीत गया तो एक बार हमारे

43:25 श्री अर्जुन जी जो हैं वो बड़ी दुखी होकर मुख पर

43:33 मलीन इस प्रकार से व द्वारिका से निकलते हैं इधर जो युधिष्ठिर जी है उनको स्वप्न

43:42 में बहुत बुरे बुरे स्वप्न आ रहे हैं वह अपने यहां पर पुरोहितों को बुलाकर

43:50 पूछ रहे हैं कि यह ऐसे स्वप्न मुझे क्यों देखने को मिल रहे हैं ऐसा क्या कारण है

43:56 कि मुझे इस प्रकार का स्वप्न देखने को मिल रहा है हर पुरोहित अपने अपने अनुसार बता रहे हैं कि महाराज इस प्रकार से ऐसा ऐसा

44:03 हुआ होगा कोई बात नहीं आप चिंता मत कीजिए हम अनुष्ठान कर देंगे पूजा पाठ कर देंगे

44:08 अन्यत्र प्रकार की बातें तभी वहां पर श्री अर्जुन जी महाराज का आना हुआ अर्जुन जी को

44:16 देखकर आंखों से अधारा बह रही है युधिष्ठिर जी ने पूछा कि क्या बात है

44:25 रो क्यों रहे [संगीत] आप य अचानक कैसे आ

44:31 गए आपके मस्तक पर ये चिंता की रेखाएं क्यों है सिसकियां भर रही थी अर्जुन जी की और व

44:40 कुछ बोल नहीं पा रहे थे कुछ समय तक तो वो अपनी सिसकियों को रोकने का प्रयास करते

44:47 हैं और अंत में कुछ थोड़ा सा बोलते हैं कि हमारे श्री

44:54 कृष्ण युधिष्ठिर जी कहते हैं कि जो तुम्हारे चेहरे का भाव है यह भाव केवल तब होता है

45:03 जब आपसे कोई ब्राह्मण का अपमान हो गया हो अगम्य स्त्री

45:11 का गमन कर लिया हो या फिर किसी के साथ आपने अन्याय कर दिया

45:19 हो बताइए आपसे क्या हो गया है अर्जुन जी

45:28 कहते हैं कि हमारे जो प्रियतम हमारे जो कृष्ण है वो अब हमें छोड़कर चले

45:35 गए अब वो इस धरा धाम पर नहीं है वह इस धरा धाम को छोड़कर अपने धाम चले

45:44 गए पांचों पांडव स्तब्ध कि जिनके सहारे उन्होंने पूरा जीवन

45:52 व्यतीत किया आज वो कृष्ण नहीं रहे आज व कृष्ण चले

45:58 गए इधर जो कुंती महारानी थी वही श्रवण पान

46:04 कर रही थी यह सारी बातो जैसे ही उन्होंने सुना वे धड़ाम से धरातल पर गिर गई और हे

46:14 कृष्ण हे कृष्ण कहते हुए भगवान के धाम को चली

46:20 गई जिस प्रकार से राजा दशरथ हे राम हे राम हे राम करते

46:26 हुए अपने शरीर को त्याग दिए थे ठीक उसी प्रकार आज यहां पर कुंती महारानी हे कृष्ण

46:34 हे कृष्ण कहते हुए अपने शरीर को त्याग कर भगवान के धाम को चली गई उन्होंने पहले ही

46:42 भगवान से यह आशीर्वाद प्राप्त किया था कि प्रभु जिस वक्त जिस पल जिस क्षण में आप इस

46:49 धरती पर ना रहो मैं भी इस धरती को छोड़

46:54 दू आज जब जाना कि कृष्ण इस धरती से चले गए

47:01 हैं उन्होंने अपने प्राण त्याग दि पांचों पांडव रो रो करर बुरा हाल माता

47:11 कुंती का संस्कार किया छोटे से बालक जो परीक्षित

47:18 थे उनको बड़े ही दुखी मन से राज्याभिषेक

47:24 करवाया श्री परीक्षित जी महाराज कहते हैं कि मैं तो बहुत छोटा हूं मैं राज्य पाट

47:30 नहीं संभाल पाऊंगा मेरे बस की बात नहीं है यह सब

47:36 करना युधिष्ठिर जी ने कहा केवल तीन बातें याद रखना कि अगर कोई शरण में आ जाए तो उसको

47:45 कभी भी चाहे वो कितना भी बड़ा शत्रु हो उसको कभी मारना

47:51 मत हमेशा न्याय करना

47:56 और संतों का सम्मान

48:02 करना यह उपदेश देकर पांचों पांडव जो है वो हिमालय की ओर आगे बढ़

48:12 चले पांचों पांडवों में से चार पांडव जिसमें अर्जुन

48:21 जी भीमसेन जी नकुल और सहदेव उन सब रास्ते

48:27 में ही शरीर उनका शांत हो जाता है द्रौपदी जीव का शरीर शांत हो जाता है द्रौपदी जी

48:34 को बड़ा अभिमान था कि वह बहुत सुंदर है इसलिए कहते हैं कि अभिमान नहीं होना

48:43 चाहिए व्यक्ति में भगवान अभिमानी व्यक्ति को भी स्वीकार नहीं

48:49 करते नकुल और सहदेव एक को गणित की बहुत

48:54 अच्छा ज्ञान और एक को घुड़सवारी बहुत अच्छी आती थी उस

49:00 बात का भी उन्हें बड़ा अभिमान था हमसे अच्छा कोई नहीं भीमसेन जी अत्यधिक खाते थे और जरूरत

49:10 से ज्यादा कोई भी चीज हानिकारक होता

49:16 है अर्जुन जी उन्हें ऐसा लगता था कि मुझसे बढ़िया

49:22 धनुर्धर इस विश्व में कोई नहीं है जबक वो सखा थे भगवान श्री कृष्ण के लेकिन

49:31 अभिमान वो भी स्वर्ग नहीं गए इधर यमराज जी जो है व परीक्षा लेने के

49:38 लिए श्री युधिष्ठिर जी का उनके साथ साथ चलने लगे पीछे कुत्ते के रूप

49:45 में युधिष्ठिर जी आगे आगे और वह कुत्ता साथ में चल रहा

49:50 है कहते युधिष्ठिर जी पूरे जीवन में केवल एक बार झूठ बोलते हैं और उस कारण से उनको एक

49:58 मिनट के लिए नरक जाना पड़ता है झूठ क्या था अश्वत्थामा मारा गया नरोवा

50:06 कुंजर भगवान ने कहा था कि इतना बोलना कि अश्वथामा मारा

50:12 ग केवल इतना ही बोलना था लेकिन युधिष्ठिर जी ने अपना दिमाग लगा दिया क्या दिमाग

50:19 लगाया नरो व कुंजर मुझे पता नहीं तो भैया आप कैसे पता नहीं आपको तो

50:26 पता है कौन मारा गया तो इसलिए उनको भी एक मिनट के लिए नरक

50:34 जाना पड़ा अब आप लोग मन में विचार कर लो कितनी देर के लिए जाना

50:41 पड़े तो कल ही मैंने बताया था कि धर्म दूसर

50:46 सत्य समाना आगम निगम पुराण बखाना कि सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है क्यों अगर आप

50:54 सत्य बोलोगे तो गलत काम नहीं करोगे और गलत काम करोगे और असत्य बोल दोगे

51:03 तो बच जाओगे आजकल तो लोग मर्डर कर देते हैं और कोर्ट में जाकर अपने आपको को प्रूव करते

51:08 हैं मैंने यह काम नहीं किया और प्रू कर ले जाते हैं भाई आप यहां बच जाओगे ना वहां

51:15 नहीं बचोगे वहां चित्रगुप्त जी सब लिख रहे हैं

51:20 अब आप कहोगे चित्रगुप्त जी कैसे लिख रहे हैं आप बताओ तो हमारे क्या आपके क्या सीसीटीवी

51:27 कैमरा होता है ना तो वहां पर सीसीटीवी कैमरे में गुप्त

51:33 चित्र बन जाता है है ना जब कहीं पर कुछ हो जाता है या अगर

51:39 हमारे घर मकान कहीं पर लगा होता है तो हम कहते हैं कि हां सीसीटीवी कैमरा खोलते हो उसमें आ गया

51:44 होगा आपको तो याद नहीं था ना वो गुप्त रूप से आपका वीडियोग्राफी कर रहा था वही है

51:51 चित्र गुप्त ऐसे मनुष्य या देवता जो गुप्त

51:58 रूप से आपका आपके कर्मों का फोटो खींचते रहते हैं और जब आपकी मृत्यु हो जाती है तो वह

52:07 सारा आपका जो चिट्टा होता है अच्छा बड़ा बढ़िया वो सब खोलकर आपके सामने रख देते कक

52:14 वो गुप्त रूप से आपका चित्र खींच रहे थे

52:20 तो युधिष्ठिर जी महाराज जैसे ही स्वर्ग में प्रवेश करने लगते हैं तो कुत्ता जो है

52:26 व भी प्रवेश करने लगता है तो वहा पर कहते हैं कि नहीं नहीं य कुत्ता नहीं जा सकता जी कहते हैं कि यह मेरा साथ ही रहा

52:33 है मैं इसको छोड़कर नहीं जा सकती बारबार कहने पर भी नहीं माने तो

52:40 उन्होने कहा नहीं भले ही मैं स्वर्ग ना जाऊ लेकिन इसको तो लिए बिना नहीं जाऊ वो

52:45 कुत्ता कोई और नहीं स्वयं यमराज जी थे बड़े प्रसन्न हुए

52:52 और उसके बाद श्री युधिष्ठिर जी जो है वो स्वर्ग जाते हैं इधर हमारे श्री परीक्षित

52:58 जी महाराज धीरे धीरे बड़े हुए युवावस्था को प्राप्त किया और उन्होने

53:04 बड़ा सुंदर राज्य को संभाला अन्याय नहीं करते न्याय से राज्य

53:10 का पालन करते ब्राह्मणों का सम्मान करते संतों का सम्मान करते और इतने बड़े राजा

53:16 होने के बावजूद वो जंगलों में जो संतो ऋषियों के आश्रम

53:22 में जाकर सेवा करके आते हैं और सेवा करने जाते तो अगर राजा वेश में

53:29 जाते तो कोई सेवा नहीं करने देता तो वेश बदल कर जाते कि कोई मुझे सेवा करने दे कोई

53:35 मुझे सेवा करने से ना रोके इसलिए वह कभी साधु का वेश बना लेते कभी साधारण पुरुष का

53:42 स्त्री का रूप बनाकर वहां जाते और साफ सफाई आदि सेवा करके आते संतो का यह

53:52 भाव श्री परीक्षित जी महाराज [संगीत] का समय आने पर विवाह होता

53:59 है रावती नामक कन्या के साथ और उनके चार

54:04 पुत्र होते हैं [संगीत] जन्मेजय जब परीक्षित जी महाराज के आधा

54:12 उम्र बीत गया तो एक बार उनके मन में भाव उठा कि चल

54:19 के देख के आते हैं कि मेरे दादा पर दादाओ ने जो खजाना इकट्ठा किया है उसमें क्या

54:24 क्या रखा हुआ है वहां गए उन्होंने देखा बड़ी सारी वहां

54:31 पर आभूषण स्वर्ण चांदी हीरे मोती बहुत सारे

54:37 रखे हुए थे बहुत सारे मुकुट रखे हुए थे तो उनमें से एक मुकुट जो दूर से बड़ा चमक रहा

54:43 बड़ा सुंदर लग रहा था उन्होने दूर से देखा कि मुकुट बहुत

54:49 सुंदर लग रहा है तो पास गए और दासी से कहवा करर उसको साफ करवाकर हाथों में तो

54:55 बड़ा सुंदर लग रहा था तो उन्होंने मन में विचार किया कि इसको आज धारण करते हैं कैसा

55:00 लगेगा मेरे ऊपर तो उन्होंने उस मुकुट को अपने सर पर

55:07 धारण किया अच्छा वो मुकुट कोई

55:12 साधारण मनुष्य का मुकुट नहीं था वो मुकुट था जरा संग का जरा संग एक राक्षस

55:19 था और राक्षस तो धन कमाए तो है नहीं वो तो राक्षस है तो लूटेगा

55:25 अन्याय करके पाप करके धन इकट्ठा करके उस मुकुट को बनाया होगा और जैसे ही उस मुकुट को धारण किया आज

55:34 जीवन में पहली बार श्री परीक्षित जी का मन में विचार हुआ

55:41 कि वन में जाकर शिकार करते हैं पहली बार जीव हत्या के बारे में

55:48 सोचा वन में जा ही रहे थे कि रास्ते में उन्होंने देखा कि एक गैया मैया

55:56 रुदन कर रही है उसके सामने बैल खड़ा है

56:01 जिसके तीन पाव नहीं है केवल एक पांव बचा हुआ है और बहुत घबराए हुए हैं डरे हुए हैं और

56:10 एक दूसरे से बातें कर रहे हैं बैल समझा रहा है गैया मैया को गैया मैया बैल को समझा रही

56:18 है इधर परीक्षित जी जो है इस भाव को जब वहा देखते तो बड़ी दया आ जाती है

56:25 कि मेरे राज्य में ऐसा कैसे [संगीत]

56:33 हुआ वह गैया मैया और बैल के पास आगे बढ़ ही रहे थे कि तभी उन्होंने देखा एक काला

56:40 भयंकर शरीर वाला व्यक्ति आता है और जो बैल का एक पांव जो बचा हुआ था उसको भी मारने

56:47 के लिए प्रयत्न करता है नंगी तलवार निकालता है और मारने के लिए आगे बढ़ता है

56:53 तब तक परीक्षित जी वहां पर आ जाते हैं और जैसे ही वह

56:58 व्यक्ति जो बैल को मारने वाला था वोह देखता है कि परीक्षित जी महाराज आ गए हैं

57:04 वो रुक जाता है और परीक्षित जी महाराज का शरण ग्रहण कर लेता

57:10 है परीक्षित जी महाराज क्रोध से भर जाते हैं और कहते हैं आज मैं तुझे छोडूंगा नहीं

57:16 वो साष्टांग दत प्रणाम करता है कि मुझ दास को माफ करिएगा मुझसे गलती हो गई मैं

57:21 दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा क्योंकि शरण में आ गया था और शरण

57:26 में आए हुए व्यक्ति को कभी भी परीक्षित जी महाराज मारते नहीं

57:32 थे तो परीक्षित जी ने पूछा तुम कौन हो

57:38 तो उस काले भयंकर शरीर वाले व्यक्ति ने बोला कि महाराज मैं कलयुग

57:47 हूं और कलयुग को पता था कि मैं अगर परीक्षित जी महाराज के शरण में जाऊंगा तो

57:53 परीक्षित जी महाराज मुझे मारेंगे नहीं परीक्षित जी महाराज ने सुना कलयुग

58:00 उन्होंने कहा तुम यहां क्या कर रहे हो मेरे राज्य में तुम्हारा क्या काम है तुम यहां आए

58:07 कैसे कलयुग क्षमा प्रार्थना करने लगा कि प्रभु भगवान श्री कृष्ण के जाने के बाद

58:13 मेरा युग चल रहा है लेकिन आपके प्रभाव के कारण मैं अपने युग में अपने लिए स्थान तक

58:21 नहीं ढूंढ पा रहा हूं मेरे पास एक सुंदर स्थान तक नहीं मैं कहा जाऊ मैं इधर से उधर

58:28 भटक रहा हूं मुझे कोई रहने के लिए एक स्थान दे दीजिए एक सुंदर सा स्थान जहां

58:34 में जाकर रह सक परीक्षित जी ने कहा नहीं नहीं मेरे

58:39 राज्य में तुम्हारा कोई स्थान नहीं मैं तुम्हें कहीं रहने नहीं दे सकता बारबार

58:44 निवेदन करने लगा परीक्षित जी महाराज को दया आ जाती है और वो कहते हैं ठीक

58:49 है त पानम स्त्री सुना जहां पर स्त्रियों का गमन होता हो जहां पर मदिरा पान होता हो

58:58 जहां पर अत्याचार होता वहां जाकर र अब कलयुग ने कहा जी महाराज फिर मन में

59:05 विचार करता है कि कहीं पर परीक्षित जी महाराज के राज्य में कहीं

59:11 पर स्त्री का अगम्य स्त्री का गमन नहीं होता कहीं पर मदिरा पान नहीं होता कहीं पर

59:18 अन्याय अत्याचार नहीं होता मैं कहां जाकर रहूंगा ऐसा तो कोई स्थान ही नहीं है

59:26 तो कलयुग कहता है प्रभु आपने जो इतने सारे स्थान दि सारे ही गंदे स्थान है मधुरा य

59:33 में लोग मधुरा पान करके एक दूसरे को गाली देते हैं गंदी जगह

59:38 है तो आपको एक सुंदर स्थान दे दीजिए कोई एक अच्छा स्थान दे

59:45 दीजिए तो परीक्षित जी मन के मन में भाव आया उन्होने कहा जाओ तुम्हारा स्वर्ण में

59:50 वास हो और कलयुग का सोने में वास हो

59:58 गया अब जैसे ही कहा जाओ सोने में वास हो कलयुग बड़ा प्रसन्न हो गया और वहां से

1:00:05 जाकर दूर जाकर एक छोटा सा रूप बनाकर परीक्षित जी महाराज का जो व मुकुट था वह

1:00:12 सोने का था उस मुकुट में आकर बैठ गया परीक्षित जी ने गाय और बैल दोनों को

1:00:20 आश्वासन दिया कि आप चिंतित ना होइए मैं जब तक जिंदा हूं आपको कोई परेशान नहीं करेगा

1:00:27 आप बताइए कि आपका तीनों पैर किसने काट [संगीत]

1:00:36 दिया बैल ने

1:00:41 कहा कि ये युग का प्रभाव है पवित्रता दया दान

1:00:51 धर्म आजकल ना कली काल में दया तो है लोगों में थोड़ा थोड़ा लेकिन

1:00:58 पवित्रता नहीं पवित्रता नहीं है का मैं एक भाव

1:01:04 बताती हूं एक बार हमारे श्री कृष्ण चंद्र ठाकुर जी महाराज भागवत के बहुत ही सुंदर

1:01:09 वक्ता है तो वह अमेरिका गए हुए थे कथा करने के लिए तो

1:01:19 भोजन लगा तो भोजन जब लगा भोजन करने के लिए तो सब एक साथ बैठे पहला बात तो हमारे यहां

1:01:28 ऐसा भाव है कि पहले गुरु को भोजन करवा दो बाद में जो परिवार है वो खा लेगा ठीक है

1:01:33 कोई बात नहीं मॉडर्न जमाना हो गया सब साथ में खाओ तो गुरुजी जब बैठे सब बैठ गए तो

1:01:39 गुरु जीी भी भोजन कर रहे हैं वो सब भोजन कर रहे हैं ठीक है अब गुरु जी को उसी चम्मच से परोस रहे हैं

1:01:48 अच्छा चम्मच से परोस रहे वो ठीक है जिस हाथ से खा रहे उसी हाथ से ु ले रहे अपनी

1:01:55 थाली में और गुरु जी को कम पड़ रहा है तो उनको भी उसी झूठे हाथ से चम्मच लेकर गुरु जी को हाथ आगे बढ़ा दिया यह क्या पवित्रता

1:02:04 है स्वक्षता है लेकिन पवित्रता नहीं आप उसी आसन पर

1:02:10 बैठकर पूजा कर रहे हो उसी आसन पर सारे कर्म कर रहे हो तो वो पवित्रता

1:02:18 नहीं पवित्रता का ध्यान दीजिए आजकल हम लोग साफ सफाई का बड़ा ध्यान देते

1:02:23 हैं अब मुझे आप लोग का नहीं पता आप लोग तो खैर अवध क्षेत्र के हैं आप लोग ध्यान देते

1:02:29 होंगे लेकिन शुद्धता पवित्रता बहुत आवश्यक है हम

1:02:35 स्वक्षता देखते हैं कि हा साफ है कि नहीं झाड़ू लगा है कि नहीं

1:02:42 तो परीक्षित जी महाराज ने कहा कि कोई बात नहीं आप चिंता मत कीजिए जब तक मैं जीवित

1:02:47 हूं आपको कोई कष्ट नहीं होगा और श्री परीक्षित जी जो है आश्वासन देकर आगे बढ़ते

1:02:53 हैं एक संत की कुटिया में जाते हैं श्री समक ऋषि जी के आश्रम में जब गए

1:03:00 तो उन्होने देखा समक ऋषि जी ध्यान में बैठे हुए अब जब ध्यान में बैठे हुए हैं तो

1:03:06 कुछ देर इंतजार किया कुछ देर इंतजार करने के बाद उनके सर पर क्योंकि कलयुग सोने के

1:03:12 रूप में बैठा हुआ था उनका मति भ्रमित हो गया मन में विचार आया कि महाराज पहले जब

1:03:17 मैं आया करता था मेरा बड़ा बढ़िया आओ भगत स्वागत करते

1:03:22 थे मैं राजा हूं लेकिन आज मैं आया हूं तो ये कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरा स्वागत ना करना पड़े इसलिए आंख बंद करके ध्यान करने

1:03:30 का नाटक कर रहे हैं नाटक कर रहे हैं यह मन में विचार आ रहा है कलयुग जैसे ही सर पे आता

1:03:37 है इतना भ्रमित कर देता है बुद्धि को कि आपको भी समझ में नहीं आता कि ये बुद्धि आई

1:03:44 तो आई कैसे अब परीक्षित जी महाराज मन में बार-बार यही सोच रहे कहीं ऐसा तो नहीं और

1:03:51 अच्छा एक दो घंटे तीन घंटे चार घंटे इतने देर से ये कर रहे हैं

1:03:56 ध्यान तो उन्होंने मन में विचार किया कि यह शायद पक्का नाटक कर रहे हैं मैं ऐसा

1:04:01 करता हूं कि मैं सबक सिखाता हूं उन्होंने क्या किया वह आसपास देखा

1:04:10 और कई बार आवाज लगाया कि महाराज जी मैं आया हुआ हूं मेरा स्वागत

1:04:15 कीजिए परीक्षित जी की आवाज लगाने पर समक ऋषि ने सुना नहीं ध्यान में व्यक्ति शरीर

1:04:22 को त्याग देता है लगभग ध्यान में जब डूब जाते हो

1:04:27 [संगीत] तो कई बार आवाज लगाया नहीं सुना तो परीक्षित जी बड़े क्रोधित हो गए क्योंकि

1:04:34 कलिकाल सर पर बैठा हुआ है ना तो वहा पर मरा हुआ सर्प होता उसको ले जाकर समक ऋषि

1:04:40 जी के गले में डाल देते हैं और वापस चले जाते आश्रम में अब जब आश्रम में

1:04:48 गए अपने वहा घर चले गए मुकुट को

1:04:53 उतारा जैसे ही मुकुट को उतारा मतलब कलिकाल जो है सर से उतर गया और जैसे ही कलयुग सर

1:05:01 से उतरा उनको समझ में आ गया कि मैं जो करके आया हूं बहुत गलत काम करके आया हूं ऐसा

1:05:08 मुझे नहीं करना चाहिए ऐसा जो मैं करके आया हूं वो बहुत

1:05:14 ज्यादा गलत आज परीक्षित जी अपने मन में गलानी भाव

1:05:20 से भर जा रहे हैं इधर समक ऋषि जी के जो पुत्र है शिंगी ऋषि

1:05:27 जी वह जल में स्नान कर रहे थे और एक शिष्य ने आकर बताया कि आपके पिताजी के गले में

1:05:34 श्री परीक्षित जी आए हुए थे उन्होंने मरा हुआ साप डाल दिया उनको बहुत क्रोध हुआ कि

1:05:39 मेरे पिताजी का अपमान किया है हाथ में जल लिया उस युवा संत ने और क्रोध से भरकर

1:05:47 उन्हें श्राप दे दिया कि जाओ जिस मरे हुए सांप को तुमने मेरे पिताजी

1:05:53 के गले में डाला है उसी सर्प का पूर्वज

1:05:59 तक्षक ताप आकर आज से सातव दिन आपको डसेगा और आपकी मृत्यु हो

1:06:06 जाएगी वापस आकर समक ऋषि जी के सामने बैठकर वो रुदन करने लगी समक ऋषि जी ध्यान से

1:06:14 उठते हैं और देखते हैं कि यह क्या हो रहा है उन्होंने पूछा रो क्यों रहे हो ऋषियों ने संतो ने आसपास जो शिष्य थे उन्होंने

1:06:21 बताया कि शिंगी ऋषि जी ने शाप दे दिया है परीक्षित जी को समक ऋषि ने कहा हे पुत्र

1:06:29 ये तुमने क्या किया ऐसा

1:06:35 राजा आज के बाद परीक्षित जी महाराज के बाद कोई नहीं होने वाला ये तुमने कितना बड़ा

1:06:43 अन्याय कर दिया कितना गलत किया है तुमने अब क्योंकि श्राप दे दिया था श्राप

1:06:49 को खत्म नहीं किया जा सकता था तो सम ऋषि जी ने तुरंत एक शिष्य को भेजा कि जाओ

1:06:55 परीक्षित जी महाराज को यह बता कर आओ कि आज से सात दिनों के बाद उनकी मृत्यु निश्चित

1:07:01 है वो जाए और अपने मोक्ष का कुछ उपाय कर ले कुछ साधन

1:07:07 कर ले श्री परीक्षित जी को जब यह बात पता चलती है वो बड़े प्रसन्न हो जाते हैं शायद

1:07:14 हम और आप होते तो क्रोधित हो जाते श्राप दे दिया मैं मर जाऊंगा बड़े प्रसन्न हो गए

1:07:20 और जाकर रावती अपनी पत्नी को कहा कि हे य जानती

1:07:25 हो मैं पहला इस दुनिया का पहला इंसान हूं

1:07:31 पहला व्यक्ति हूं जिसको पता है कि मृत्यु कब होगी नहीं तो इस संसार में कोई भी नहीं

1:07:36 है जिसको पता हो कि उसकी मृत्यु कब होगी लोग ऑक्सीजन का चेंबर बना लेते हैं

1:07:44 ऑक्सीजन का जार बना लेते हैं एक एक दिन में 5050 टेबलेट खाते हैं कि मैं अमर हो

1:07:51 जाऊ लेकिन अमर नहीं होते यहां पर आज ज परीक्षित जी को पता चला कि

1:07:57 सातव दिन मेरी मृत्यु हो जाएगी बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने बड़ा धूम धान से जो उनके पुत्र थे जन्मेजय का राज्याभिषेक

1:08:04 करवाया और उसके बाद एक साधारण वस्त्र पहनकर वन की ओर चले गए गंगा नदी के किनारे

1:08:11 जाकर बैठ गए जब ऋषियों को संतों को मुनियों को जब यह पता चला कि परीक्षित जी

1:08:17 महाराज को श्राप लगा है सभी दूर दूर से परीक्षित जी महाराज की सहायता के लिए आने

1:08:22 लग ना जब आपके समाज में कोई अच्छा व्यक्ति कोई बहुत अच्छा व्यक्ति अगर किसी चिंता

1:08:30 में किसी परेशानी में किसी पीड़ा में पड़ जाता है तो आप उसके पास जाते हो कि शायद

1:08:36 मैं कुछ मदद कर पाऊ जाते हो ना तो परीक्षित जी महाराज के पास भी सभी लोग दूर

1:08:43 दूर से इकट्ठा होने लगे क्योंकि परीक्षित जी बहुत ही ज्यादा लोगों की सेवा कर किया

1:08:48 करते थे लोगों की मदद किया करते थे न्याय प्रिय राजा थ संतो की सेवा किया करते थे

1:08:53 दर दूर से संत आ रहे हैं हजारों की संख्या में लोग उनके पास बैठे हुए हैं कोई यम

1:09:01 नियम प्राणायाम बता रहा है कोई कह रहा है यह पाठ कर लीजिए कोई कह रहा वो पाठ कर लीजिए लेकिन परीक्षित जी को समझ नहीं आ

1:09:08 रहा कि मैं क्या करूं जिससे मोक्ष प्राप्त हो और परीक्षित जी महाराज कोई साधारण

1:09:14 मनुष्य तो है नहीं जिसको भगवान ने गर्भ में जाकर रक्षा की हो वो साधारण कैसे हो

1:09:20 सकता है और अगर वो असाधारण है तो भगवान ने जाकर

1:09:26 गर्भ में रक्षा की आज क्या इस धरा धाम पर इतना बड़ा विपत्ति में पड़ गया है भगवान

1:09:31 उसकी रक्षा नहीं करेंग भगवान ने उनकी रक्षा के लिए उनके मोक्ष की प्राप्ति के

1:09:36 लिए श्री सुखदेव जी महाराज जिनको गर्भ में जाकर कहा था कि माया तुम्हें स्पर्श भी

1:09:42 नहीं करेगी उनको [संगीत] भेजा श्री सुखदेव जी महाराज का आगमन हुआ

1:09:50 सभी संतों ने इशारा किया जाओ महाराज के चरणों में साष्टांग नवत प्रणाम

1:09:59 करो श्री सुखदेव जी के चरणों में जाकर परीक्षित जी साष्टांग द प्रणाम करते हैं

1:10:04 संतो ने इशारा किया कि यही है जो तुम्हारा तुम्ह मोक्ष प्राप्त करवा सकते यही है जो

1:10:11 तुम्ह जीते जी भगवान की प्राप्ति करवा सकते हैं और

1:10:17 जल्दी श्री परीक्षित जी व्यास जी को साष्टांग प्रणाम करते

1:10:25 हैं अपने उस सभा में उनको बुलाते हैं उच्च आसन प्रदान करते

1:10:33 हैं और उच्च आसन प्रदान करने के बाद कहते हैं कि जब भी आपके जीवन में संत

1:10:41 का आना हो ना तो कभी भी उनसे यह ना कहिए कि मेरा दुकान कैसे

1:10:47 चलेगा मेरा व्यापार कैसा चलेगा कभी ना कहिए क्योंकि दुकान कैसा चलेगा यह आप

1:10:54 दुनिया में रहते हो आपको पता है कैसे चलेगा और बाकी कुंडली उंड दिवा ही लेते

1:11:00 हैं आप लोग कि क्या कारोबार करना होगा जिसमें हम

1:11:06 आगे बढ़ पाएंगे अच्छा चलेगा है ना कुंडली दिवा लेते हैं बाकी

1:11:11 कुंडली से बहुत सारी चीज पता चल जाती है कि हा यह कर सकते हैं यह कर सकते हैं इस क्षेत्र में हम जाए

1:11:17 या विद्या ग्रहण करने का योग है कि नहीं है बहुत सारी चीज तो आप कुंडली के माध्यम

1:11:23 सेय सब जो ज्योतिषाचार्य लोग होते हैं जैसे आज भी हमारे क्या माता जी आई हुई

1:11:29 थी हमारे भैया से कुंडली दिवाने के लिए और उन्होंने कुंडली बनवाया है तो कुंडली

1:11:36 ज्योतिषाचार्य लोगों का काम है लेकिन जब संत आए आपके पास जीवन में तो आप उनसे यह

1:11:42 ना कहिए कि व्यापार कैसे चलेगा हमारा धंधा पानी कैसा चलेगा हम अमीर कैसे बनेंगे

1:11:48 हमारा दुकान कैसे चले ये मत पूछिए उनसे यह पूछिए भगवान कैसे मिलेंगे

1:11:54 ठाकुर जी कैसे प्राप्त हो क्योंकि आपका काम धंधा व्यापार आप दूसरों के देख देख

1:12:00 देखकर अनुभव प्राप्त करके आप अपना कर लेंगे लेकिन भगवान कैसे प्राप्त होंगे यह

1:12:07 आपको गुरु बनाए बताएगा और यहां पर कितने लोग है जिन्होंने गुरु बनाया है अपने जीवन

1:12:13 में जिनके गुरु है हाथ खड़े करिए अब देखा देखी मत खड़ा कर लीजिए कि

1:12:20 हमारे पड़ोसी खड़ा कर रहे हैं तो हम भी खड़ा कर लेंगे य टाफी बिस्किट नहीं बट रहा है कि भैया हमारे पड़ोसी खड़ा किए हम भी

1:12:28 खड़ा कर अच्छा जिनके गुरु नहीं है व गुरु दीक्षा जरूर

1:12:33 लीजिए क्योंकि कहते हैं कि जब तक आप गुरु दीक्षा नहीं लेते हैं तब तक आपका इस

1:12:40 पृथ्वी पर जन्म ही नहीं माना जाता है गुरु दीक्षा लीजिए और गुरु मंत्र का जाप कीजिए

1:12:46 क्योंकि हमारे जीवन का परम उद्देश्य मैंने पहले दूसरे दिन ही बताया था कि श्री कृष्ण

1:12:52 चंद्र भगवान की प्राप्ति करना [संगीत] है तो इस प्रकार से जब हमारे श्री

1:12:59 परीक्षित जी के समक्ष श्री सुखदेव जी बैठते हैं तो यह नहीं कहते कि प्रभु मेरी

1:13:07 मृत्यु सात दिनों में होने वाली मेरे मोक्ष का उपाय बताइए उन्होंने एक बार भी नहीं कहा उन्होने कहा

1:13:17 वरियाने सते

1:13:22 प्रश्न कृतोलो

1:13:27 हितम दपा आत्म वित समता पं

1:13:37 सा शोत व्या सुया

1:13:45 परा हे सुखदेव जी महाराज मेरे आत्म कल्याण की लोगों के आत्म कल्याण की बात बताईए कि

1:13:54 जन कल्याण की हमें बात बताई कि इस पृथ्वी पर जिस भी व्यक्ति की

1:14:00 मृत्यु सात दिवसों में होने वाली हो उसको क्या करना चाहिए और इस संसार में हर

1:14:09 व्यक्ति की मृत्यु सात दिवसों में ही होती है हर व्यक्ति की मृत्यु सात दिवसों में

1:14:18 होती और एक बात और अब आप मन में विचार कर रहे होग उस समय भी सात दिवस चलते थे

1:14:25 क्योंकि यह सब तो 17वी अवी शताब्दी में ये संडे मंडे ट्यूसडे वेडनेसडे सब बनाया गया

1:14:32 है ना उस टाइम चलते थे हां चलते थे ऐसा हमारे शास्त्रों में हमारे वेदों में

1:14:38 हमारे पुराणों में ऐसा वर्णन है बस यह था कि पहले रविवार के दिन छुट्टी नहीं होती

1:14:45 थी हां ये अंग्रेज आए और उन्होंने छुट्टी का प्रधान बता दिया छुट्टी हमारे क्या जो

1:14:53 चंद्रमा की कलाए होती है उसके अनुसार की जाती थी आज भी गांव में किसान संडे मंडे

1:15:00 को छुट्टी नहीं मनाते हैं वो किस दिन चंद्रमा की कौन सी कला काम करती है उस

1:15:06 चंद्रमा का प्रभाव हमारे शरीर पर होता है और उस प्रभाव के कारण हमारा शरीर किसी दिन

1:15:12 बहुत ज्यादा कार्य करने के लिए होता है और किसी दिन आप बहुत ज्यादा स्वस्थ

1:15:20 होते हो जैसे संडे के दिन आप बहुत ज्यादा आराम करते रेस्ट करते हो सब कुछ करते हो लेकिन मंडे को आपको आपको जाने का मन नहीं

1:15:28 करता आपको काम प क्यों क्योंकि वो ग्रह नक्षत्रों का चंद्रमा का सूर्य का सबका

1:15:35 प्रभाव हमारे शरीर पर होता है आप कितना भी आराम कर लीजिए संडे को आप मंडे को फ्रेश

1:15:41 फील नहीं करें तोव चंद्रमा की कलाए और अन्य अन्य जो

1:15:48 चीजें होती थी उसके अनुसार हमारे य छुट्टी होती थी आज भी गांव के किसान लोग जिस प्रकार से छुट्टी मनाते हैं आप उनसे पूछ

1:15:55 लेंगे वो बता देंगे किस प्रकार से छुट्टी होती

1:16:00 तो सात दिवसों में ही हर व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है कौन से सात दिवस

1:16:08 सोमवार मंगलवार बुधवार बृहस्पतिवार शुक्रवार शनिवार और रविवार हर व्यक्ति इही

1:16:16 सात दिनों मरेगा ऐसा नहीं किसी के लिए आठवा दिन

1:16:22 बनेगा तो जिस भी व्यक्ति की मृत्यु इन सात दिवसों में होने वाली हो उसको क्या करना

1:16:29 चाहिए श्री सुखदेव जी [संगीत] महाराज कहते हैं

1:16:36 कि तस्मा भारत सर्वा

1:16:43 मा भगवानी

1:16:48 स्वरो हरि शोत व्यस कीर्ति

1:17:00 तव्य स्तव [संगीत]

1:17:06 ताय कि जिस भी व्यक्ति की मृत्यु सात दिवसों में होने वाली हो उस व्यक्ति

1:17:13 को भगवान की कथा सतव्य से कथा सुननी चाहिए

1:17:20 स्तव्य से कथा का स्मरण कर

1:17:25 चाहिए उसका मनन करना चाहिए और ध्यान करना

1:17:32 चाहिए भगवान की कथा को पहले सुनिए पता है

1:17:38 शोता उत्तम श्रोता वह होता है जो कान से सुनकर हृदय में उतारे उत्तम श्रोता वो

1:17:44 नहीं कि एक कान से सुनक दूसरे कान से निकाल दे नहीं तो फिर तो वो टाइम पास हो गया ना

1:17:51 कि एक कान से सुना दूसरे कान से निकाल दे यहां पर एक भी ऐसी बात नहीं होगी जो आपके

1:17:56 जीवन में धारण करने योग्य नहीं हो हर बात यहां पर वही होगी जो आपके जीवन में आपको

1:18:03 धारण करना चाहिए तो भगवान की कथा श्रवण करना चाहिए

1:18:09 स्मरण करना चाहिए और ध्यान करना चाहिए ध्यान स्मरण किस प्रकार

1:18:17 से बड़ा सुंदर कहा है कि स्वास शवास पर कृष्ण

1:18:24 जी वृथा स्वास जनि

1:18:30 खो ना जाने या स्वास

1:18:35 की आवन होय ना हो कि हर शवास पर भगवान

1:18:43 सच्चिदानंद का नाम स्मरण कीजिए क्योंकि हमें नहीं पता है ना कि

1:18:50 अगला शवास हम लेंगे या नहीं लेंगे अगली बार हम शवास लेंगे या नहीं ले पाएंगे

1:18:58 तो

1:19:04 [संगीत] हर स्वास में भगवान का नाम लीजिए और मैं

1:19:12 हमेशा कहती हूं कि कर से कर्म कर विधि नाना मन राख

1:19:18 जहा कृपा कि अपने हा से अपने शरीर से अन्य

1:19:25 अन्य कार्य कीजिए लेकिन अपने मन से अपने मन को श्री प्रियालाल जी के चरणों

1:19:32 में समर्पित कर दीजिए अब जैसे ही श्री सुखदेव जी ने कहा

1:19:39 कि कि प्रभु आपने कहा कि भगवान की पूजा करो भगवान की भक्ति करो भगवान की कथा सुनो

1:19:47 भगवान का मनन करो सब कुछ ठीक है आपने कहा भगवान के चरणों में मन को चढ़ा

1:19:55 दो यह कैसे संभव है क्योंकि मन तो स्थिर नहीं है

1:20:01 ना हम बैठे भले यहां पर है लेकिन हो सकता है कि मन हमारा दिल्ली कलकाता बनारस मुंबई

1:20:07 कहीं पर भी टहल रहा हो क्योंकि मन की गति इतनी तेज है कि शरीर से कहीं भी आप बैठे

1:20:14 रहो मन कहीं और घूमता रहता है तो मन को साधने का क्या साधन है मन को

1:20:21 कैसे साधे शी सुखदेव जी मुस्कुराए और उन्होंने

1:20:27 कहा कि मन को साधने का उपाय यह है कि आप

1:20:32 अपने जीवन जो दिनचर्या है उसको

1:20:38 सुधार हमारी दिनचर्या आजकल बिगड़ी हुई है हमारी दिनचर्या ही सही नहीं

1:20:43 है कहते हैं कि जता स्वन जित

1:20:51 स्वास जित संगो जित

1:20:58 इंद्रिया स्थलो भगवत

1:21:04 रूपे मन संधार

1:21:13 दिया क्या जिता स्वन भगवान की भक्ति अगर करनी है ना तो एक आसन पर पहले बैठना सीखिए

1:21:22 आजकल व्यक्ति एक आसन पर एक दो घंटे तो बहुत दूर की बात आधा एक

1:21:28 घंटा भी नहीं बैठ पाते और बड़े आश्चर्य से आकर पूछते हैं व्यास जी आप चार घंटा एक स्थिति में कैसे

1:21:35 बैठ लेते हो सबसे पहली भक्ति तो यही है ना जिता

1:21:41 स्वन जित स्वासो आसन पर विजय प्राप्त कीजिए जित स्वासो अपनी स्वास पर विजय

1:21:47 प्राप्त कीजिए जित संगो

1:21:53 संगति ऐसी रखिए जो आपको भगवान की भक्ति में ले जाए

1:21:59 आपको पव में ना ले जाए आपको गलत स्थान पर ना ले जाए आपको अगर यात्रा भी करना है तो

1:22:08 ऐसे लोगों की संगति कीजिए जो आपको धार्मिक स्थन पर ले जाए अयोध्या ले

1:22:14 जाए कासी ले जाए बनारस ले [संगीत] जाए ऐसी दोस्ती मत रखिए जो आपको

1:22:23 गलत स्थान पर ले जाए जित संगो जितेंद्रिय अपने इंद्रियों

1:22:31 पर विजय प्राप्त कीजिए इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का

1:22:37 सबसे मुख्य साधन जैसा कि मैंने पहले कहा कि आपको दिनचर्या सुधारने पड़ेगी सुबह

1:22:46 सुबह उठते ही जब आपके नेत्र

1:22:51 खुले आसन पर से धरती पर पांव रखने से पूर्व अपने हाथों को ऐसे करके और हाथों के

1:23:00 दर्शन करके पाठ कीजिए क्या कग्र वस्ते

1:23:06 लक्ष्मी कर्म

1:23:11 सरस्वती कर मूले त

1:23:16 गोविंदम प्रभाते कर दर्शन

1:23:23 कि हमारे कर कमलों में भगवान विष्णु मां लक्ष्मी मां सरस्वती विराजमान है मैं उनको

1:23:30 देखकर उनको प्रणाम कर लू और उसके बाद अपना दिन प्रारंभ करू हमारे यहां शास्त्रों में

1:23:37 लिखा हुआ है कि अपने बिस्तर से पैर नीचे रखने से

1:23:44 पूर्व मंत्र जाप करके पृथ्वी मैया को प्रणाम करके समुद्र वसने

1:23:49 देवी पाद समय की उनके पैरों को छूकर उनसे क्षमा

1:23:55 याचना करना चाहिए कि हे पृथ्वी मैया मैं दिन भर आपके ऊपर हर प्रकार की क्रियाकलाप

1:24:01 करता हूं अच्छा बुरा मेरा और मेरे मेरा और कोई साधन नहीं है मैं यही

1:24:09 बस मैं पृथ्वी पर ही चल सकता हूं उठ सकता हूं बैठ सकता हूं इसलिए आपको प्रणाम करता

1:24:15 हूं क्षमा करता हूं कि कोई भूल चूक होती हो तो माफ [संगीत] कीजिएगा उसके बाद उठिए तो आपके घर जितने

1:24:22 भी बड़े बुजुर्ग हो जितने भी बड़े बुजुर्ग हो सबको जाकर प्रणाम कीजिए अब ये नहीं कि

1:24:28 एक दिन प्रणाम कर लिया हो गया एक दिन भोजन कर लिया हो गया क्या नहीं हुआ ना प्रतिदिन

1:24:34 जब जब आपके गुरु मिले आपके बुजुर्ग मिले दिन भर में एक बार यह नहीं कि दिन भर में

1:24:40 10 बार मिल रहे हैं तो प्रणाम कर रहे हैं एक बार जरूर कीजिए सुबह उठिए सबसे पहले

1:24:45 आपके दादा जी दादी जी चाचा चाची मम्मी पापा जो भी लोग है जाकर उनको प्रणाम कीजिए

1:24:53 क्योंकि 24 घंटों में एक बार मुख पर सरस्वती होती है एक दिन प्रणाम कीजिए हो

1:25:00 सकता है आशीर्वाद ना मिले दो दिन कीजिए तीन दिन कीजिए लगातार अगर 10 दिन करेंगे और सालों तक करेंगे वह कह रहे हैं

1:25:10 कि सुखी रहो तो हो सकता है कि उस समय सरस्वती विराजमान हो बिना मन के कहे हो तो

1:25:17 भी आप सुखी तो रहेंगे जीवन में अपने बड़ बुजुर्गों का आशीर्वाद लीजिए

1:25:24 संतों का ऋषियों का आशीर्वाद लीजिए जो आपसे ज्ञान में बड़ा हो आशीर्वाद

1:25:31 लीजिए क्या पता किस रूप में भगवान आकर हमारे सामने खड़े हो सबसे विनम्र भाव से

1:25:39 रही उसके बाद आजकल मैंने तो कहा कि कग्र वस्ती

1:25:45 लक्ष्मी कर्मद सरस्वती कर मूले तो गोविंदम प्रभाते कर दर्शन कर दर्शन नहीं करते लोग

1:25:51 कप दर्शन करते उठते ही उनको चाय चाहिए प्रभाते कप दर्शन

1:25:56 उनको उठते ही चाय पीना यह नहीं पहले उठ जाए एक तो सुबह उठते ही ना जाने कितनी बार

1:26:05 लोगों ने बताया है कि चाय पीना सबसे सेहत के लिए

1:26:13 हानिकारक लेकिन फिर भी हम चाय पीते हैं बहुत गलत है आप भगवान की पूजा कीजिए

1:26:22 सबसे पहले उठिए अपने जो नित्य कर्म है उन सबसे निवृत होकर 10 मिनट के लिए दो मिनट

1:26:27 के लिए चार मिनट के लिए जितना आपसे बन पड़े मैं कहती हूं 10 मिनट चार मिनट दो मिनट कुछ मत कीजिए आप एक क्षण का भी अगर

1:26:35 भगवान का ध्यान कीजिए नेत्र बंद करते ही ऐसा भाव होना चाहिए कि मेरे समक्ष साक्षात

1:26:42 परम ब्रह्म खड़े हैं और मैं हूं उसके अलावा पूरी संसार में कोई भी नहीं है कम

1:26:48 से कम अपने मन को इतना साध लेना चाहिए

1:26:54 तो लोग कहते हैं देवी जी हम नेत्र बंद करते तो हमें दुनिया के सारे प्रपंच याद आते हैं भगवान नहीं आते नेत्र के सामने

1:27:00 क्यों आएंगे उतना साधन तो करना पड़ेगा ना उतना साधना करना पड़ेगा अगर मैं लगभग आप

1:27:08 जो इधर से बैठे हुए हैं सबसे उम्र में बहुत कम हूं बहुत छोटी हूं अगर मैंने साध

1:27:14 लिया है तो आप क्यों नहीं साध सकते ध्रुव जो पांच वर्ष के थे उन्होंने

1:27:20 साध लिया आप और हम क्यों नहीं साध सकते खटवांग राजा जिन्होंने एक घड़ी में एक

1:27:26 घड़ी में भगवान को प्राप्त कर लिया हमारे पास तो पूरा जीवन बचा हुआ है

1:27:32 हम और आप क्यों नहीं भगवान को प्राप्त कर सकते पूरी भागवत कथा का सार मैं आपको बता दूं अंत में जो सातवे दिन अंतिम श्लोक

1:27:41 पढ़ा जाएगा उसमें यही बताया जाएगा कि भगवान के नाम का जाप

1:27:46 करो नाम संकीर्तन यस्य सर्व पाप प्रणास कि भगवान के नाम का जाप

1:27:54 करो तो भगवान का नाम अगर आप एक क्षण भी ले रहे हो पूरे दिन में तो आपके और भगवान के

1:28:01 मध्य में कोई नहीं होना चाहिए कोई बेटा नहीं कोई बेटी नहीं कोई परिवार नहीं कोई समाज नहीं कोई कारोबार नहीं केवल आप और

1:28:09 परमात्मा और एक बात बता दूं जब आप पूर्णतया भगवान के ऊपर समर्पित हो जाते हो

1:28:14 ना पूर्णत भगवान के ऊपर छोड़ देते हो अपना सर्वस्व भगवान आपको संभाल लेते हैं

1:28:22 लेकिन जहां पर भी आपके मन में संशय रहता है ना

1:28:28 कि मैं कर रहा हूं या मैं यह चीज कर लू तो वह संशय आपका पूरा काम बिगाड़ देता है जिस

1:28:36 प्रकार से आपने सब्जी बहुत बढ़िया बनाई हो नमक अगर तेज हो जाए तो भी गड़बड़ है नमक

1:28:41 अगर कम हो जाए तो भी गड़बड़ है तो वैसा ही संशय होता है संशय मत कीजिए अगर आप संशय

1:28:50 करेंगे भगवान की कृपा प्राप्त होती है कि नहीं तो फिर कहेंगे बेटा तू संशय कर ले

1:28:56 मैं तो बाद में आकर मिलूंगा तेरे से क्योंकि जब दुखी होगे जब कुछ नहीं दिखेगा तब परमात्मा दिखेगा तब आप यह नहीं सोचते

1:29:04 भगवान क्या करेगा तब आपको लगता है कि हां भगवान ही जो करेंगे सो

1:29:10 करेंगे तो अपना दिनचर्या सुधार

1:29:16 आगे श्री परीक्षित जी को सृष्टि की रचना के

1:29:22 बारे में श्री सुखदेव जी ने बताया कि सृष्टि की रचना कैसे

1:29:29 हुई कि जब सिर्फ केवल परम ब्रह्म थे यहां पर जल

1:29:36 तर छल यहां पर कोई भी नहीं था कुछ भी नहीं था य ना जल

1:29:44 था ना थल था ना वायु थी ना अग्नि थी कुछ भी नहीं था तब यहां पर केवल परम ब्रह्म थे

1:29:53 परम ब्रह्म ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी की को प्रगट

1:29:58 करवाया उसके बाद शंकर जी को ब्रह्मा जी ने इस पूरी सृष्टि की रचना करी शंकर जी को

1:30:05 संघार का देवता बनाया और

1:30:10 स्वयं इस सृष्टि में समय समय पर आते हैं

1:30:16 और व्यक्ति को जीवन कैसे जीना चाहिए वो सिखा कर जाते हैं

1:30:25 श्री परीक्षित जी को जब बहुत सारी कथाएं सुनाई तो परीक्षित जी महाराज कहते हैं कि

1:30:33 प्रभु आपने कहा कि भगवान की जो भी दर्शन करना चाहे भगवान

1:30:39 उसको दर्शन देते हैं तो क्या भगवान जाति देखकर दर्शन देते

1:30:48 हैं यह ऊंची जाति का है यह ब्राह्मण है या यह शूद्र है शूद्र के यहां नहीं जाऊंगा

1:30:56 यह ब्राह्मण है मैं ब्राह्मण के घर में

1:31:02 जाऊंगा भगवान यह कभी नहीं देखते यह सुखदेव जी ने जब कहा तो परीक्षित

1:31:09 जी ने कहा क्या कोई ऐसा उदाहरण है जिससे हमें यह समझ में आए कि

1:31:15 भगवान जाति का भेदभाव करते हैं कि नहीं श्री सुखदेव जी मुस्कुराए उन्होंने

1:31:22 महाभारत का प्रसंग के बारे में बताया कि जब महाभारत का युद्ध नहीं हुआ था उससे

1:31:30 पूर्व जब महाभारत के युद्ध के बारे में बातचीत हो रही थी तो श्री विदुर जी महाराज

1:31:37 श्री विदुर जी सभा में बैठे हुए थे धृतराष्ट्र के और कहते

1:31:43 [संगीत] हैं कि प्रभु छोटा मुंह बड़ी बात

1:31:53 मैं कुछ कहना चाहता हूं धृतराष्ट्र जी ने कहा हां जी बताइए तो विदुर जी ने

1:32:01 [संगीत] कहा कि क्या पांचों पांडव

1:32:07 हमारे परिवार के नहीं है राष्ट्र जी ने कहा हां परिवार से

1:32:12 हैं तो उन्होंने कहा कि क्या उनका अधिकार नहीं बनता है जो वो मांग रहे हैं उन्होंने

1:32:20 कहा हां अधिकार बनता है तो उन्होंने कहा फिर क्यों नहीं दे रहे हैं आगे उन्होंने कहा कि जहां जिस राष्ट्र

1:32:27 का अगर एक राज्य खराब हो तो उस राज्य को राष्ट्र

1:32:34 से निकाल दिया जाता है और अगर एक राज्य का एक नगर खराब हो तो उस नगर को निकाल दिया

1:32:40 जाता है जिससे पूरा नगर बदनाम ना हो और एक नगर में अगर

1:32:47 एक परिवार की वजह से कोई संकट आ रहा होता है नगर की बदनामी हो रही होती तो उस घर को

1:32:55 उस समाज से नि निष्कासित कर दिया जाता है और अगर एक परिवार में एक व्यक्ति खराब हो

1:33:02 जाता है तो उसको परिवार वाले परिवार से निकाल देते हैं धृतराष्ट्र जी कहते हैं कि

1:33:08 तुम इतना घुमा क्यों रहे हो सीधे-सीधे बोलो कहना क्या चाहते हो बोले महाराज मैं

1:33:13 बस इतना कहना चाहता हूं कि जो दुर्योधन कर रहे हैं वो सही नहीं

1:33:18 है यह महाभारत का युद्ध जो होने जा रहा है यह सही नहीं है यह नहीं होना चाहिए

1:33:25 धृतराष्ट्र जी ने तो कुछ नहीं कहा पीछे से दुर्योधन आ रहा था उसने सब सुन

1:33:30 लिया कहता विदुर कि तू जिस थाली में खाता

1:33:35 है उसे थाली में छेद करता है त खाता हमारा है और नाम गुणगान पांडवों का कर रहा है और

1:33:45 सभा से उस विदुर जी को निष्कासित कर दिया श्री विदुर जी महाराज क्या करते हैं अपना

1:33:51 गांडीव लेकर जाते हैं और चौखट पर ले जाकर रख देते हैं अर्थात उन्होंने यह दर्शाया

1:33:58 कि ना मैं कौरवों की तरफ से लडूंगा युद्ध ना मैं पांडवों की तरफ से लडूंगा क्योंकि दोनों मेरे अपने जन

1:34:06 है और वहां से चले जाते हैं भक्ति करना प्रारंभ कर देते

1:34:15 हैं वहां [संगीत] पर भक्ति करना प्रारंभ करते हैं धर्म

1:34:22 पत्नी के साथ कदली वन में रहकर केले के वन में रहकर भगवान की भक्ति करते हैं जिस

1:34:29 प्रकार से मीरा जी ने अपना सर्वस्व छोड़कर वृंदावन आकर गली गली में भटक कर भगवान के

1:34:37 नाम का जाप करती थी भगवान के नाम का चिंतन करती

1:34:43 थी और कहती [संगीत]

1:34:50 थी पायो जी मैंने राम रतन धन

1:34:58 पायो पायो जी मैंने राम रतन धन पायो पायो

1:35:07 जी मैंने राम रतन धन पायो पायो जी

1:35:15 मैंने राम रतन धन पायो पायो जी मे राम रतन धन पायो पायो जी

1:35:28 मेरे राम रतन धन

1:35:35 पायो वस्तु अमोलक दी मेरे

1:35:42 सतगुरु वस्तु अमोलक द मेरे

1:35:48 सतगुरु वस्तु अमो मलक द मेरे

1:35:55 सतगुरु वस्तु अमोलक द मेरे

1:36:01 सतगुरु कृपा कर अपना पायो जी मैंने राम रतन धन पायो पायो

1:36:13 जी मैंने राम रतन धन पायो पायो जी

1:36:20 मैंने मम रतन धन [संगीत]

1:36:28 पायो दोनों हाथ उठकर तालियों की सेवा देती जय [संगीत]

1:36:50 हो [संगीत]

1:36:59 जन्म जन्म की पूजी

1:37:05 पाई जन्म जन्म की पूंजी

1:37:11 पाई जनम जन्म की पूंजी

1:37:17 पाए जन्म जन्म की पूंजी

1:37:23 पाई जग में सभी को वायु पायो जी मैंने राम

1:37:31 रतन धन पायो पायो जी मैंने राम रतन धन

1:37:39 पायो पायो जी मैंने राम रतन धन

1:37:46 [संगीत] पायो

1:37:52 [संगीत]

1:38:01 [संगीत]

1:38:15 यह धन जो मीरा ने पाया है वो कैसा धन है जो खर्चा करने से कभी खर्चा नहीं होने

1:38:24 वाला जो कोई चोर चोरी नहीं कर सकता जो कोई अग्नि उसे जला नहीं सकती क्या

1:38:33 कहते हैं खर्च ना खूटे चोर ना

1:38:39 लूटे र्च ना फूटे चोर ना

1:38:45 लूटे खर्च ना झूटे चोर ना

1:38:51 लूटे खर्च ना फूटे चोर ना

1:38:58 लूटे दिन दिन बढ़त सयो पायो जी मेरी राम

1:39:05 रतन धन पायो पायो जी मेरे राम रतन धन पायो

1:39:13 पायो जी मेरी राम रतन धन पायो पायो जी

1:39:20 मेरी राम रमन धन [संगीत]

1:39:50 पायो

1:39:57 मीरा के प्रभु गिरधर नागर मीरा के प्रभु गिरधर

1:40:07 नागर मीरा के प्रभु गिरधर

1:40:13 नागर मीरा के प्रभु गिरधर

1:40:19 नागर परस जस गायो पायो जी मैंने राम रतन

1:40:27 धन पायो पायो जी मैंने राम रतन धन पायो

1:40:34 पायो जी मैंने राम रतन धन पायो पायो यो

1:40:40 जीी मेरी राम रतन धन पायो पायो भी मैंने

1:40:47 राम रतन धन कृष्ण कृष्णा

1:40:54 कृष्णा कृष्णा कृष्णा

1:41:00 कृष्णा कृष्णा कृष्णा

1:41:06 कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा

1:41:16 कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा

1:41:22 कृष्णा हरे कृष्णा हरे

1:41:27 कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे

1:41:33 ह हरे कृष्णा हरे

1:41:38 कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा

1:41:49 कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे कृष्णा हरे

1:41:59 कृष्णा हरे रामा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे

1:42:09 कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे बोलो बाल कृष्ण लाल की जय इतना मतलब

1:42:21 स्वस्त सा जयकारा कृष्ण जी सामने खड़े हैं फिर भी कल हमारे लाला आने वाले हैं ऐसे

1:42:27 तैयारी कर रहे हो उनको लाने की थोड़ा जोर से जयकारा एकादशी का व्रत मेरा है प्रभु

1:42:34 आप लोगों का नहीं व्रत तो मेरा है ना आप लोग क्यों इतना मतलब मुरझाए हुए

1:42:40 हो जोर से जयकारा लगाओ बोल बाले कृष्ण लाल

1:42:47 की थोड़ा और जोर से राधा गोविंद

1:42:52 भगवान की

1:42:58 आइए जिस प्रकार से हमारी मीरा जी ने हमारे

1:43:04 श्री कृष्ण का जस गाया गली गली में

1:43:10 घूमकर ठीक उसी प्रकार हमारे श्री विदुर जी

1:43:15 महाराज वन में जाकर कदली वन में भगवान के नाम का कीर्तन करते हैं

1:43:22 अपनी विदु रानी जी के संग [संगीत]

1:43:28 में कीर्तन करते हुए बहुत साल जब बीत गए एक दिन विदुर जी विदुरा जी के पास आए और

1:43:37 उन्होंने बताया कि अरी बुधरानी सुनती हो हस्तिनापुर को दुल्हन की भाती सजाया जा

1:43:43 रहा है विरानी जी कहती क्यों बोले हमारे सरकार

1:43:48 आ रहे हैं हमारा कृष्ण आ रहा है विरानी जी ने कहा यह तो बड़ा अच्छी

1:43:56 बहुत ही सुंदर बात है लेकिन समस्या इस बात की है कि पहले तो

1:44:06 आप राज्यसभा में थे तब दर्शन बड़ा सुलभ था अब तो इतनी भीड़ में भगवान के दर्शन कैसे

1:44:15 होंगे तो विदुर जी ने कहा कोई बात नहीं हम प्रयत्न करेंगे उस भीड़ में भगवान के

1:44:22 दर्शन करने का अगर हम दर्शन ना भी कर पाए तो कोई बात नहीं भगवान को अगर एक ड़ी नजर

1:44:29 से हमारे ऊपर नजर पड़ गई तो हमारा उद्धार हो जाएगा हमारा कल्याण हो जाएगा इधर दुर्योधन जो है हस्तिनापुर को

1:44:37 दुल्हन की भाति सजा रहा है खूब सुंदर सजा रहा

1:44:42 है क्यों सजा रहा है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर आ रहे हैं और जब

1:44:50 भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर आ रहे हैं तो

1:44:57 [संगीत] क्योंकि भगवान जब आ रहे हैं

1:45:02 तो सकनी जो है वह चाहता है कि भगवान श्री कृष्ण को दुर्योधन अपनी तरफ कर ले उलझा

1:45:13 ले लोकल भावन चीजों को दिखाकर इसलिए पूरे हस्तिनापुर को सजा रहा है

1:45:21 एकदम सुंदर कि जब कृष्ण आएंगे तो उनसे मीठी मठी

1:45:27 बातें करके यह साज सज्जा दिखाकर भगवान को अपनी ओर कर

1:45:33 लेंगे खूब सुंदर सजाया खूब लड़िया लगाई खूब फूल बिछाए रास्ते में खूब नगाड़े बजाए

1:45:41 जब भगवान हसनापुर में प्रवेश करते हैं दोनों ओर से अटार हों पर महिलाएं खड़ी है

1:45:50 सुंदर वेशभूषा में और ऊपर से पुष्प वर्षा कर रही है दोनों ओर स्त्रियां खड़ी हैं

1:45:59 भगवान के स्वागत में आरती की थाली घुमाई जा रही है बहुत ही भव्य सुंदर स्वागत किया

1:46:11 गया भगवान जब राजमहल के द्वार पर आए वहां पर आरती उतारी

1:46:19 गई और अंदर राज महल में ले जाकर उच्च आसन प्रदान किया गया राज पाठ की बातें करने

1:46:27 लगे जब बहुत सारी बातें हुई उनमें से एक बात श्री कृष्ण ने कहा कि दुर्योधन मैं

1:46:34 कुछ पूछ रहा हूं तुम उन प्रश्नों के उत्तर देना

1:46:43 केवल प्रभु ने कहा कि दुर्योधन क्या तुम मानते हो कि पांडव तुम्हारे भाई

1:46:49 हैं दुर्योधन ने कहा मैं मानता

1:46:54 हूं अच्छा यहां पर कितने लोगों को यह भ्रम है यह महाभारत का युद्ध द्रौपदी के कारण

1:47:03 हुआ कितने लोगों को लगता है कि महाभारत का युद्ध द्रौपदी के कारण हु हाथ खड़े

1:47:08 करिए आपको लगता है और जिनको लगता है हाथ खड़े करिए अच्छा किसी को नहीं लगता आपको भी

1:47:16 लगता है और दो चार लोग खड़ा करो नहीं तो फिर मैं नहीं बताऊंगी क्यों लगता है

1:47:23 अच्छा महाभारत का युद्ध द्रौपदी ने कहा था कि अंधे का पुत्र

1:47:33 अंधा यही बात लगती इसीलिए महाभारत का युद्ध हो गया आप विचार

1:47:40 करो कि भाभी लगती थी दुर्योधन की और भाभी और देवर का हमेशा

1:47:49 से विनोद का संबंध रहा है मजाक का संबंध रहा है और आप बताओ कि क्या द्रौपदी जो

1:47:58 इतनी तेजवान थी जो इतनी बुद्धिमान थी जिसका मित्र श्री कृष्ण था क्या वो ऐसा कह

1:48:04 सकती है पर हम क्या करते हैं ना कभी शास्त्र उठाकर नहीं पढ़ते किसी ने कहा द्रौपदी ने

1:48:12 कहा था अंधे का पुत्र अंधा और उसके बाद एक सीरियल बन गया उसमें कहा था अंधे का

1:48:19 पुत्र अंधा मतलब हां यही [संगीत]

1:48:26 कारण ये इस कथा का प्रसंग नहीं बाहर का है लेकिन फिर भी मैं बता रही हूं संक्षेप में

1:48:34 बताऊंगी महाभारत द्रौपदी के कारण नहीं हुआ था महाभारत कहते हैं कि जो धृतराष्ट्र थे

1:48:43 क्योंकि दोनों नेत्रों से वो दिखता नहीं था उनको और युवराज थे विवाह

1:48:51 होना जरूरी था और विवाह हो नहीं पा रहा

1:48:57 था और भीष्म पितामह ने यह प्रण ले रखा था कि मैं हस्तिनापुर का राज्य पाठ विधि

1:49:06 विधान से चलवा हंगा मैं ही मैं जो है किसी भी प्रकार की क्ति किसी भी प्रकार की

1:49:12 समस्या अगर आएगी तो मैं उसका निवारण करूंगा यह भीष्म पितामह का संकल्प था य आप

1:49:17 सभी इस बात से अवगत है अब जब धृतराष्ट्र जी का विवाह नहीं हो रहा

1:49:23 था तो सब जगह जाते अनुरोध करते निवेदन करते कि हमारे युवराज से विवाह कीजिए कोई भी अपनी

1:49:32 पुत्री देना नहीं चाहता तो जो भीष्म

1:49:39 पितामास टाइम

1:49:47 का गांधार प्रदेश था वहां जाकर गांधार बहुत

1:49:53 छोटा सा राज्य था बहुत छोटा वहां जाकर उनके राजा को कहते हैं कि

1:49:59 मेरे पुत्र धृतराष्ट्र के साथ आपकी पुत्री का विवाह होगा उन्होंने अनुरोध नहीं किया

1:50:07 कि मैं अपनी मैं अपने पुत्र का विवाह आपकी पुत्री के साथ करवाना चाहता हूं नहीं कहा

1:50:12 इन्होंने घोषणा कर दी अब क्योंकि छोटा सा नगर इतने बड़े योद्धा आकर कह दिया कि भैया

1:50:21 आपको विवाह करना पड़ेगा व कुछ कर नहीं सकते थे उन्होंने कहा ठीक है अब विवाह

1:50:26 करना पड़ा आंखों पर पट्टी बांध ली गांधारी

1:50:32 ने ठीक है विवाह हो गया जब विवाह हो

1:50:38 गया और विवाह के कुछ समय के

1:50:44 बाद यह लोग गए वहां पर हस्तिनापुर से

1:50:50 गए वहां पर क्योंकि बहुत बड़ा राज्य नहीं था बहुत विकसित राज्य नहीं था वहां पर

1:50:55 इतनी व्यवस्थाएं नहीं थी तो जब व्यवस्थाएं नहीं हुई तो जो भीष्म पितामह थे उनको बुरा

1:51:02 लग गया उनको अच्छा नहीं [संगीत]

1:51:08 लगा तो जो भीष्म पितामह उनको क्रोध आ गया और गांधारी जो थी व मंगली

1:51:16 थी मंगली तो आप लोग सब समझते हैं गांधारी जो थी वो मंगली

1:51:21 थी यह बात जब बाद में पता [संगीत]

1:51:27 चली भीम भीष्म पितामह को बहुत क्रोधी थी व बोले उनको पहले बताना चाहिए तो क्रोध से

1:51:33 भरकर उन्होंने क्या किया जितने भी गांधार के राज्य के लोग थे परिवार के लोग

1:51:39 थे उनको स सम्मान बुलाया हस्तिनापुर कि हम आप लोगों का स्वागत करना चाहते हैं नमन

1:51:46 करना चाहते हैं वंदन प्रणाम करना चाहते हैं हम आपको बुलाकर सत्कार करना चाहते हैं

1:51:52 जब सभी गंधार के लोग आए सबको जेल में डाल दिया इतना क्रोधित हो

1:51:58 गए सबको जेल में डाल दिया और सबको जेल में डालकर एक मुट्ठी

1:52:04 चावल भेज देते यह शास्त्र की बात है अपने मन से नहीं बोल रही और इसीलिए मैं बारबार

1:52:10 कहती हूं कि अगर कोई चीज सुन लो ना और बताया जा रहा है उसको प्रयास करो कि कहां

1:52:17 से यह बोला जा रहा है और वहां पर अगर समय हो तो जाकर

1:52:24 देखो तो वहां पर उन्होंने बुलाया और एक मुट्ठी चावल जो है एक

1:52:31 मुट्ठी पका हुआ चावल कच्चा नहीं भात उसको

1:52:37 भेजते कारागार में इसी में सब लोग खा लो अब कुछ दिन तो उन्होंने खाया लेकिन जान गए

1:52:45 कि इससे होगा कुछ नहीं अब हम लोगों को कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे जो मेन लोग हो उनको

1:52:51 खिलाया जाए और व बच जाए तो सबने त्याग किया भोजन का कुछ भोजन

1:52:57 नहीं कोई पानी नहीं कुछ नहीं उन्होंने क्या किया जो राजा गांधार थे उनके

1:53:06 पुत्र सकुनी युवराज था ना उसको देना प्रारंभ कर

1:53:12 दिया अब सकनी क्योंकि राज था देश को राज्य को आगे बढ़ाने वाला तो उसको देते रहे धीरे

1:53:18 धीरे करके एक एक करके मरते गए एक दिन सब खत्म हो गए केवल बचे राजा गांधार और

1:53:26 सकुनी गांधार जो राजा थे उनकी हालत बहुत जरजर हो गई थी बहुत भूखे प्यासे कितने दिन

1:53:34 तक जीवित रहेगा तो उन्होंने कहा कि अपने पुत्र को कि तुम मेरे पास आओ

1:53:42 क्योंकि वो थोड़ा बहुत कुछ खा रहा था थोड़ी शक्ति थी बोले तू मेरे पास आ सकनी

1:53:48 उनके पास जाता है और अपने पूरे शरीर की शक्ति लगाकर

1:53:54 राजा जो है वह सकुनी के एक पांव के घुटने

1:54:00 पर मारते जिससे उसका घुटना टूट जाता है पूरे शरीर का पूरा ताकत लगाकर

1:54:09 और मारते हैं पीड़ा होने लगती है तो कहता पिताजी आपने क्या किया तो बोले रुक अभी

1:54:16 मैं तुझे कुछ बताता हूं तो एक मैं क्यों अब मरने वाला हूं तू मुझे एक वचन दे मेरा

1:54:23 पुत्र होने के नाते कि तू हमारे जो यह समाज का के साथ

1:54:30 इतना गलत हुआ इसका बदला लेगा तो सकनी ने कहा महाराज वो सब तो ठीक

1:54:38 है आपने मारा क्यों मुझे मेरा पैर तोड़ दिया आपने उन्होंने कहा तेरा पैर इसलिए तोड़ा

1:54:45 कि तू इतना अयास है तू इतना नाला लायक है कि तू जैसे ही

1:54:51 मेरे मरने के बाद तू अकेला बचेगा तुझे यहां कारागार से निकाल दिया जाएगा बाहर और

1:54:57 तू बाहर जाकर मुदरा पान करने लगेगा स्त्री गमन करने लगेगा तोत सब कुछ भूल जाएगा और

1:55:02 तू जीवन भर आज के बाद लड़ाएगा तो तुझे जीवन भर जब जब चलेगा याद रहेगा कि तुझे

1:55:09 मेरे लिए अपने समाज के लिए अपनी बहन के लिए बदला लेना सकनी ने कहा मेरे अंदर इतनी क्षमता

1:55:17 कहां है मैं कैसे बदला लू तो उन्होंने कहा कि जब मैं मर

1:55:24 जाऊं तो मुझे जलाना मत जो मेरी हड्डियां है उनको निकालकर पासा

1:55:32 बनाना वह तेरे लिए सबसे बड़ा वरदान है तू पासे पर जो अंक कहेगा वही अंक आएगा त ऐसे

1:55:42 घुमा के जो भी पासा फेंके वही

1:55:47 आएगा राजा के मरने के बाद यह कारण है कि महाभारत का युद्ध हुआ वो

1:55:52 धीरे धीरे बच्चों को दुर्योधन को इसलिए मैं कहती हूं कि अपनी संगत अच्छी रखिए इसी

1:55:58 महाभारत के युद्ध में दुर्योधन की संगति सकुनी से थी अर्जुन की संगत कृष्ण

1:56:06 से थी अर्जुन की पूरा जीवन सृष्टि समाज परिवार सब बदल गया

1:56:14 यहां 100 स भाइयों वाला दुर्योधन सब नष्ट हो गए सब खत्म हो

1:56:23 गए यह अपने मन से भ्रांति हटाइए यह जो लोगों ने भ्रांति कर रखी है ना कि हां हां

1:56:29 सीता का हरण हुआ इसलिए राम और रावण का महायुद्ध

1:56:35 हुआ द्रौपदी के कारण महाभारत की रचना हो गई यह भ्रांतियां

1:56:41 है पीछे का इतिहास बहुत बड़ा बहुत विस्तृत है जिसको जानिए समझिए और मन में अगर कोई

1:56:50 भी प्रश्न हुआ करे तो मैं दिन भर कमरे में ही रहती हूं आप भिजवा सकते हैं लिखकर

1:56:59 इस प्रकार से विदुर जी इधर उचक उचक कर भगवान श्री कृष्ण को

1:57:08 देखने का प्रयास करते हैं किसी प्रकार देख पाते हैं भगवान की नजर विदुर जी से जब

1:57:15 मिलती है तो विदुर जी को नजरों ही नजरों से इशारा कर दिया कि विदुर जी तैयारी करके रखना मैं आऊंगा आपके घर विदुर जी यहां

1:57:23 राज्यसभा में बैठे बोले यह तो टेढ़ा है आ भी सकता है दौड़े दौड़े घर इधर पहुंचे

1:57:29 सारी व्यवस्थाएं करने में लग गए इधर विदुरा जी को कहा सारी व्यवस्थाएं कीजिए

1:57:35 [प्रशंसा] और खुद जाकर दुनिया में जाकर

1:57:42 उन्होंने सामान लाना प्रारंभ किया कुछ दूध दही माखन मिश्री ले

1:57:48 आए मार्केट जाकर इधर कृष्ण जी बातचीत कर

1:57:53 रहे थे दुर्योधन से कि यह बताओ कि क्या पांडव तुम्हारे भाई है उसने कहा हां भाई

1:58:00 है कृष्ण ने कहा कि यह बताओ कि क्या आधा

1:58:05 हिस्सा हमारा मतलब तुम्हारा और आधा हिसा उनका बनता है उसने कहा हा बनता है कृष्ण

1:58:13 ने कहा कि वो ज्यादा नहीं मांग रहे बस पांच गांव मांग रहे हैं तुम ऐसा

1:58:21 करो कि पांच गांव उनको दे दो दुर्योधन क्रोध से

1:58:28 भर जाता है और कहता है कि आप प्रभु पांच गांव की बात करते हो पांच गांव तो बहुत

1:58:36 दूर की बात है पांच गांव तो बहुत बड़ी बात है एक सुई की

1:58:42 नोक की बराबर भी मैं भूमि पांचों पांडवों को नहीं देने वाला बिना युद्ध के श्री

1:58:48 कृष्ण चंद्र भगवान बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं क्रोध से भरकर कहते

1:58:54 हैं कि रे मूर्ख दुर्योधन तुझे इतना भी ज्ञान नहीं है कि एक शांति दूत से किस

1:59:00 प्रकार से बात करना चाहिए एक शांति दूत से किस तरह से बात

1:59:06 करना चाहिए दुर्योधन का हाथ पकड़ लेते हैं

1:59:13 धृतराष्ट्र जी और दुर्योधन क्षमा प्रार्थना करने लगता है हे प्रभु क्षमा की

1:59:20 हमें माफ कीजिएगा मैं तो बचपन से ही उद्दंड रहा हूं

1:59:28 मेरा स्वभाव ही उद्दंड वाला है मैं तो बोलते बोलते ज्यादा बोल जाता हूं मेरी

1:59:34 गलतियों पर ध्यान ना दीजिए और यह होती रहेंगी राज्य पाठ की बातें मेरी माता जी

1:59:39 ने आपके लिए गांधारी ने आपके लिए 56 भोग बनाए हैं आप वो अपने हाथों से बनाया है

1:59:46 उन्होंने आप चलकर उस भोग को पहले ग्रहण कीजिए बाद में राज्य पाठ की

1:59:52 बातें करें भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि भोजन केवल दो अवस्था में की जाती है एक

1:59:59 खाने वाले के पेट में इतना भूख हो कि उसको कुछ ना दिख रहा हो जो मिले वह खा

2:00:06 ले और दूसरा खिलाने वाले के हृदय में इतना भाव हो कि पेट में भूख ना हो तब भी सामने

2:00:13 वाला जिसको भूख ना लगाओ वह भी तब भी भोजन कर ले

2:00:21 भगवान श्री कृष्ण ने कहा ना तो तुम्हारे हृदय में इतना भाव है और ना ही मेरे पेट

2:00:26 में भूख है मुझे भोजन नहीं [संगीत]

2:00:31 करना श्री कृष्ण चंद्र भगवान कहते हैं कि मैं

2:00:37 तो विदुर जी के यहां जाने वाला हूं भोजन करने के लिए विदुर जी ने मुझे पहले ही निमंत्रण भेजा

2:00:43 है दुर्योधन कहता है महाराज जिसके खुद के खाने का ठिकाना ना हो व आपको भोजन क्या

2:00:51 करवाएगा भगवान श्री कृष्ण कहते हैं मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वो मुझे

2:00:56 क्या खिलाएंगे मैं तो बस भाव का भूखा हूं कहते हैं भाव का भूखा हूं मैं भाव ही एक

2:01:06 सार है जो भाव से

2:01:12 भजता मुझे वाक भव से बेड़ा पार

2:01:21 जो भाव से श्रद्धा से प्रेम से मुझे बुलाता है मैं उसके समक्ष जरूर जाता हूं

2:01:27 मैं भोग जरूर ग्रहण करता हूं और भगवान श्री कृष्ण नंगे

2:01:32 पांव विदुर जी के घर की ओर निकल जाते हैं जिस प्रकार से एक भक्त भगवान के मंदिर की

2:01:39 ओर नंगे पांव निकलता है ठीक उसी प्रकार आज भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त से मिलने के

2:01:45 लिए नंगे पांव आगे बढ़ते हैं और आइए मीठी तालियों के [संगीत]

2:01:58 साथ सबसे [संगीत] ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:02:09 ऊंची प्रेम सगाई सबसे [संगीत]

2:02:15 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:02:22 ऊंची प्रेम

2:02:28 सदई दुर्योधन की मेवा

2:02:35 त्यागी दुर्योधन के मीवा

2:02:41 त्याग साग ब दूर घर [संगीत]

2:02:47 खाई विदुर घर खाई सबसे

2:02:56 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:03:02 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:03:08 ऊंची प्रेम [संगीत]

2:03:17 सगाई [संगीत]

2:03:25 [संगीत]

2:03:32 कन्हैया लाल की जय [संगीत]

2:03:37 [प्रशंसा] [संगीत]

2:03:47 हो झूठे फल सबरी के

2:03:53 खाए झूठे फल सबरी के

2:03:59 खाए झूठे फल सबरी के

2:04:05 खाए झूठे फल सब रीके

2:04:11 खाए बहु विध स्वाद [संगीत]

2:04:17 बताए स्वाद बताई सबसे

2:04:25 ऊंची प्रेम सगाई सबसे [संगीत]

2:04:31 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:04:37 ऊंची प्रेम [संगीत]

2:04:46 सगाई दोनों हाथ उठा तालियो की सेवा देते जय

2:05:00 [संगीत]

2:05:17 हो राजस यज्ञ युधिष्ठिर

2:05:23 कीना राजस यज्ञ युधिष्ठिर

2:05:29 कीना राजस यज्ञ युधिष्ठिर

2:05:34 कीना राज सु यज्ञ युधिष्ठिर

2:05:40 कीना ता में जूठे उठाई

2:05:47 सबसे प्रेम सकाई सबसे

2:05:54 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:06:00 ऊंची प्रेम सगाई हाथ उठकर जय

2:06:06 [संगीत]

2:06:16 हो ह बो [संगीत]

2:06:44 ऐसी प्रीत बढी वृंदा ववन ऐसी

2:06:51 प्रीत बड़ी वृंदावन ऐसी प्रीत बड़ी

2:06:59 [संगीत] वृंदावन ऐसी प्रीत बड़ी

2:07:05 वृंदावन गोपि अन नाच न

2:07:11 चाई गोपि अन नाच नचाई

2:07:17 सबसे ऊंची प्रेम सकाई सबसे

2:07:24 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:07:30 ऊंची प्रेम सगाई सबसे

2:07:35 ऊंची प्रेम सगाय सबसे ऊंची प्रेम सगाए सबसे

2:07:44 ऊंची प्रेमा सगा बोलो बाल कृष्ण लाल की जय श्री विदुर जी

2:07:53 महाराज की ज इस प्रकार से भगवान श्री

2:08:01 कृष्ण सबसे ऊंची प्रेम सगाई जिन्होंने कभी यह नहीं देखा

2:08:08 [संगीत] कि कौन छोटा कौन बड़ा कौन ऊंचा कौन नीचा

2:08:14 बस भाव देखा बस प्रेम देखा आज वह श्री कृष्ण चंद्र भगवान विदुर

2:08:21 जी के घर जाते [संगीत] हैं और वहां पर जाकर जब दरवाजा खटखटा हैं

2:08:29 विरानी जी स्नान कर रही थी जैसे ही कृष्ण का स्वर सुना कृष्ण की

2:08:37 आवाज सुनी दौड़कर जिस भी अवस्था में थी व सुद बुध भूलकर भगवान श्री कृष्ण के पास

2:08:45 दरवाजा खोलने आ गए आकर किवाड़ खोला भगवान ने देखा विदरा जी

2:08:54 का यह हाल उन्होंने तुरंत अपनी पीतांबरी उठाई और विदरा जी के ऊपर डाल दिया क्योंकि

2:08:59 वह समझ गए थे कि यह सुद बुध भूल गई है प्रेम में यह

2:09:06 अपने आप को भूल गई और प्रेम तो ऐसा ही होता है जहां पर

2:09:12 मैं खत्म हो जाता है हम लोगों ने कहा था ना कि प्रेम गली

2:09:20 अति साकरी ता में मैं न समाए कि प्रेम की गली इतनी पतली है कि

2:09:28 जहां पर मैं नहीं समा आता मैं अर्थात

2:09:35 अहंकार आज विदरा जी सर्वस्व सब कुछ भूल गई है भगवान श्री कृष्ण के समक्ष खड़ी है और

2:09:42 उनको बस निहार रही है आंखें सजल हो गई है ठाकुर जी को बस निहारती जा रही है गु जी

2:09:48 से पूछ र है प्रभु आप कैसे हैं और घर परिवार में सब बढ़िया

2:09:56 है कैसे आना हुआ आप ठीक तो है ना अन्य अन्य प्रकार से

2:10:04 अन्य अन्य बातें कर रही है कृष्ण जी कहते हैं अरे मैया अरे काकी सारी बातें द्वार

2:10:11 पर ही करोगी क्या अंदर भी लेकर जाओगी विरानी जी कह हा प्रभु आ

2:10:20 स्वागत है ठाकुर जी को अंदर लेकर जाती है जिस घर को उन्होंने अभी अभी पूरे घर को

2:10:26 सजाया था सवारा था कि कृष्ण आएंगे तो मैं यहां बिठाऊ यहां बिठाऊ ऐसे खिलाऊंगी यह

2:10:31 पिलाऊंगी आज जब कृष्ण आए तो सुद बुध भूल गई और उनको

2:10:36 कोई स्थान ही नहीं मिल रहा है कि मैं किस स्थान पर प्रभु को

2:10:42 बिठाऊ उल्टे सीधे पाटे को उल्टे कर दिया भगवान इस बैठ जाइए नहीं प्रभु उचित नहीं

2:10:48 है आपके लिए प्रभु यह बिछा रही हूं इस पर बैठ जाइए उसको बिछाने के बाद लगता है नहीं

2:10:55 ये भी उत्तम नहीं है इसके अलावा कुछ और बिछा द जिस पर प्रभु बैठेंगे वो उत्तम

2:11:00 होगा पूरा घर घुमा दिया प्रभु कोई स्थान नहीं लगा अंत में प्रभु उल्टे पाटे पर बैठ गए

2:11:08 कि विरानी जी तो बावरी हो गई और बैठकर कहा अरे काकी बहुत जोर भूख लग

2:11:17 र विरानी जी ने कहा हां लाला बस अभी आतो ही

2:11:24 होग विदुर जी गए हैं तुम्हारी ताई माखन मित्री मिश्री लावे की

2:11:30 ताई अभी बस माखन मिश्री लेकर आएंगे और मैं तो खवा उंगीयर्ड

2:11:44 [संगीत]

2:11:51 काकी दौड़ कर जाती है अपने कदली वन से सुंदर सुंदर केले का फल लेकर आती है टोकरी

2:11:58 में धूल करर स्वक्ष करके और कहती प्रभु आप केला खाएंगे क्या ये मैंने अपने हाथों से

2:12:05 सिंचन किया है होता है ना जब आपके क कोई आते हैं संत महापुरुष तो आप अपने अपने

2:12:12 सामर्थ्य के अनुसार कोई दूध ले जा रहा है कोई फल ले जा रहा है कोई कुछ खाने का सामान कोई कुछ देते हैं ना

2:12:18 ठीक उसी प्रकार आज विरानी जी आई और कहा कि प्रभु

2:12:25 यह मैंने अपने हाथों से सिंचन किया है आप इसको खाएंगे क्या बड़ी मीठी ठाकुर जी ने

2:12:31 कहा क्यों नहीं आज वह इतने भाव में है कि उनको यह

2:12:36 नहीं पता चल रहा है कि मैं क्या कर रही हूं मैं क्या कह रही हूं उन्होंने केले को छील छीलकर फल भाग भगवान को दिया और जो फल

2:12:47 भाग है उसको दिया और जो छिलका है व भगवान को देती और भगवान भी प्रेम

2:12:55 में फल खाते रहे उन्होंने यह नहीं कहा कि यह फल क्यों दे रही

2:13:03 हो विरानी जी के आंखों से अशु छलक रहे हैं व भाव के अ प्रेम के अशु ठाकुर जी विरानी

2:13:12 जी को बस निहार रहे हैं कि धन्य है वो विरानी जिसके हाथों से ठाकुर

2:13:18 केले का छिलका खा रहे धन्य है वो नारी भगवान ने एक दो 10 12

2:13:26 15 नहीं 40 छिलके खा लिए लेकिन एक बार भी नहीं कहा अरी काकी यह फल क्यों खिला रही

2:13:34 हो भगवान बस भाव चाहते हैं बस प्रेम चाहते

2:13:40 हैं हम आप तो क्या करते हैं कि भगवान को क्या भोग लगाना चाहिए जो मुझे प्रिय हो

2:13:46 भगवान को भोग लगाने की बाद तो मैं ही खा यह मन में विचार कर कभी मन में ये विचार नहीं करते कि आज

2:13:53 भगवान का खाने का क्या मन कर रहा होगा भगवान बस भाव से बस श्रद्धा से उनको

2:14:02 जो खिलाएंगे वह खाएंगे [संगीत]

2:14:07 आज ठाकुर जी बहुत ही विनम्रता से बहुत ही सरलता से विरानी के हाथों से केले का

2:14:15 छिलका खा रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं

2:14:20 विधुर जी आते हैं घर के अंदर प्रवेश करते हैं देखते

2:14:26 हैं जब देखा कि सारा फल फेंक दे रही है छिलका भगवान को खिलाती जा रही है विधुर जी

2:14:33 क्रोधित हो गए अरे विरानी यह तुम क्या कर रही हो भगवान को तुम छिलका खिला रही हो फल

2:14:42 खिलाना चाहिए और खुद केला छील छील कर फल भगवान को दिया और छिलका

2:14:50 फेंका भगवान ने कहा विदुर अगर बुरा म ना मानो तो मैं एक बात

2:14:56 कह तो विदुर जी ने कहा जी प्रभु कहिए उन्होंने कहा जो भाव से विरानी जी केलिए

2:15:04 खिला रही थी छिलका खिला रही थी वह भाव इसमें

2:15:09 नहीं इसमें दिमाग लगाया [संगीत] आपने इसमें वो श्रद्धा नहीं है वो विचार

2:15:18 नहीं है वो भाव नहीं [संगीत]

2:15:24 है जो भाव केले के छिलके में थे वो भाव

2:15:29 नहीं और आपको बता दूं जब भगवान श्री कृष्ण इस धरती से जाने लगे तब भगवान श्री कृष्ण

2:15:35 से उद्धव जी ने प्रश्न किया कि प्रभु आप जब इस धरती पर आए तो आपके इतने अवतार हुए

2:15:41 हैं सबसे ज्यादा कब कब आपको भोजन करने में अच्छा लगा तपति हुई

2:15:50 तो भगवान श्री कृष्ण चंद्र ने कहा कि मैं आया बहुत बार हूं खाया मैंने बहुत बार है

2:15:56 लेकिन आनंद मुझे दो बार आया है एक विदरा के हाथों से वो जो उन्होंने छिलका खिलाया

2:16:04 था एक सबरी के वो बेर जो बड़ी श्रद्धा से द हजार वर्षों तक

2:16:13 सवरी ने इंतजार करके उस फल को किया था भगवान के

2:16:20 लिए हम आप तो अगर एक दो वर्ष एक दो वर्ष

2:16:25 तो बहुत बड़ी बात हो जाएगी एक दो महीना भी अगर पूजा कर ले ना भगवान की और भगवान का

2:16:32 आभास महसूस नहीं होता हमारा विश्वास उठ जाता है हमारा विश्वास उठ जाता है अरे

2:16:39 भगवान भगवान कुछ नहीं होते सबरी ने 100 हज वर्षों तक इंतजार किया था क्या आप कर

2:16:46 पाएंगे और किस बात पर इंतजार किया उनके गुरु ने

2:16:53 कहा था भगवान आएंगे समय नहीं बताया था एक वर्ष बाद दो वर्ष बाद 10 वर्ष बाद या 100 वर्ष

2:17:02 बाद केवल इतना बोला था मतंग स ने कि भगवान

2:17:07 आएंगे सबरी ने इंतजार किया भगवान अवश्य आएंगे यहां तो हम लोग कह के चले जाते हैं

2:17:13 भगवान की भक्ति करो भगवान प्राप्त होंगे एकाद ने बाद फोन आने लगता देवी जी आपने

2:17:19 कहा था भगवान मिले नहीं अरे जिस भाव से बुला रहे हो भगवान

2:17:25 मिल [संगीत]

2:17:30 जाएंगे हमारे वृंदावन में ज्यादा यम नियम प्राणायाम नहीं

2:17:38 चलता कि बहुत आरती उतार रहे हैं बहुत विशेष एकदम

2:17:46 किया ऐसा नहीं चलता वहां पर भाव सेवा होती प्रेम और इस समय एक महाराज जी हमारे यहां

2:17:54 बड़े प्रसिद्ध हुए हैं आप लोग भी देखते होंगे

2:17:59 अगर व क्या सेवा कर रहे हैं प्रेम ही तो कर रहे हैं राधा रानी

2:18:06 से क्या कर रहे हैं वह केवल प्रेम कर रहे हैं आप और हम प्रेम क्यों नहीं कर सकते

2:18:13 हैं भगवान से उतना हम अपने बच्चे से प्रेम कर लेते हैं अपने पति से प्रेम कर लेते और

2:18:19 उससे प्रेम करते हैं जिससे हमें पता है कि एक ना एक दिन यह व्यक्ति हमें धोखा

2:18:27 देगा हो सकता है कि वह और किसी प्रकार का धोखा ना दे हो सकता है कि उसका जीवन उसको

2:18:32 धोखा दे जाए और व आपको छोड़कर चला जाए जिससे आप अत्यधिक प्रेम करते हो व मर

2:18:38 जाए तो वह भी तो एक प्रकार का धोखा है आप उससे प्रेम कर रहे

2:18:44 हो लेकिन भगवान जो परम पिता है जो जगत पति

2:18:50 है आप उससे प्रेम नहीं कर पाते तो भगवान को केवल दो बार भोग अच्छा

2:18:59 लगा एक सरी के जूठे बेर एक विरानी इस प्रकार से भगवान श्री विदुर जी

2:19:06 को आशीर्वाद देते हैं और वापस

2:19:12 द्वारिका चले जाते हैं आगे अन्य अन्य कथाए आती है विदुर जी का उद्धव जी से मिलना

2:19:18 होता है और इसी क्रम

2:19:27 में आगे प्रसंग आता है कि कश्यप ऋषि की 13

2:19:32 पत्नियां थी जिसमें सबसे बड़ी पत्नी थी जिनका नाम था

2:19:42 दती जो संध्या काल में अपने पति से अनुरोध करती है कि मुझे पुत्र प्राप्ति करना है

2:19:51 तो कश्यप ऋषि कहते हैं कि देवी अभी संध्या का समय है अभी पूजा पाठ का समय

2:20:00 है लेकिन दती नाराज हो जाती कहती नहीं और सभी को

2:20:05 पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई है मुझे ही बस पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई है मुझे पुत्र

2:20:12 चाहिए कश्यप ऋषि जब बारबार समझाते हैं जब बारबार कहने पर भी नहीं मानते हैं तो वह

2:20:21 क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध से भरकर उन्होंने श्राप दे

2:20:29 दिया कि दती तुम्हारे पुत्र तो होंगे और एक नहीं दो दो पुत्र होंगे लेकिन

2:20:37 दोनों दुष्ट होंगे दुराचारी होंगे क्योंकि संध्या काल जो होता है

2:20:42 भगवान की भक्ति करने का होता है पूजा करने का होता है पाठ करने का होता है भगवान को

2:20:49 याद करने का होता है और तुम इस समय में पुत्र प्राप्ति चाहती हो इसलिए उन्होने

2:20:54 श्राप दे दिया दती जो है वह प्रार्थना करने लगी प्रभु से

2:20:59 निवेदन करने लगी कि प्रभु क्षमा कर दीजिए माफ कर दीजिए

2:21:05 लेकिन जब कश्यप ऋषि [संगीत] को दया आई तो उन्होंने कहा कोई बात नहीं

2:21:13 अब मैंने जो शाप दे दिया है वो तो वापस नहीं लौट ने वाला

2:21:22 लेकिन जो तुम्हारे दोनों पुत्र होंगे उनका कल्याण करने के लिए स्वयं परमपिता

2:21:27 परमेश्वर इस धरती पर [संगीत]

2:21:32 आएंगे और इस प्रकार से आगे की कथा में इनके दोनों पुत्रों का कल्याण के लिए

2:21:39 भगवान का किस प्रकार से अवतार होता है ये आप हम

2:21:44 सभी श्रवण पान करेंगे आगे की कथा में हम आप

2:21:52 सभी आकृति देहती प्रसूति यह मनु महाराज की तीन

2:21:57 पुत्रियां होती हैं और दो पुत्र होते हैं प्रवृत और

2:22:02 उत्तानपाद [संगीत]

2:22:08 जिसमें से जो देवती मैया होती है उनके पुत्र के

2:22:16 रूप में श्री कपिल देव भगवान का अवतार होता है श्री कपिल देव भगवान छोटी सी अवस्था

2:22:24 में अपनी माता को उपदेश करते

2:22:29 हैं कि संसार में किस प्रकार से रहना चाहिए किस उम्र के बाद भगवान के नाम का

2:22:35 चिंतन करना प्रारंभ कर देना चाहिए भगवान की भक्ति करना चाहिए तो देव होती मैया ने

2:22:43 कहा कि पुत्र मैंने इतना जीवन ग्रस्त जीवन में जी लिया लेकिन फिर भी मुझे शांति नहीं

2:22:50 है सुख नहीं [संगीत] है तो कहते हैं कि कि दीन कहे धनवान सुखी

2:22:58 धनवान कहे सुख राजा को भारी हर व्यक्ति को लगता है कि मैं सुखी नहीं हो संसार सुखी

2:23:04 होगा हर व्यक्ति को लगता है यहां पर एक ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो कहे कि

2:23:11 मैं सुखी हूं मैं खुश हूं मुझे कोई पीड़ा नहीं कोई कष्ट नहीं हर व्यक्ति को लगता है मैं दुखी हूं मेरा पड़ोसी खु

2:23:19 हो कहते हैं कि दीन कहे धनवान सुखी धनवान कहे सुख राजा को

2:23:24 [संगीत] भरी राजा कहे महाराजा सुखी महाराजा कहे

2:23:30 सुख इंद्र को भारी इंद्र कहे चतुरानन सुखी चतुरानन कहे

2:23:37 सुख विष्णु को भारी इंद्र कहता है कि मैं भी सुखी नहीं

2:23:44 हूं मुझे भी भय बना रहता है कोई इतनी तपस्या ना कर ले कि भगवान जाकर आशीर्वाद

2:23:50 दे दे और मेरा सिंहासन हिल

2:23:56 जाए इंद्र कहता मैं सुखी नहीं हूं चतुरानन सुखी है चतुरानन कहते कि मैं तो बहुत बिजी

2:24:02 रहता हूं मुझे सृष्टि की रचना करनी पड़ती है अन्यान्य बहुत काम है विष्णु जी सुखी होंगे व ीर सागर में

2:24:12 केवल नाग के आशय में करते रहते लेकिन तुलसी दास

2:24:20 विचार कहे संतोष बिना सब जीव दुखारी अगर आपके पास संतोष रूपी धन नहीं है ना हर

2:24:28 व्यक्ति दुखी है हर व्यक्ति दुखी तो व्यक्ति को के अंदर संतोष होना

2:24:38 चाहिए व्यक्ति के अंदर संतोष होना चाहिए अगर संतोष रूपी धन है तो आपको

2:24:46 सर्वस्व प्राप्त हो जाएगा आगे कथा आती एक बार की बात है सनत कुमार

2:24:54 जो है वो भगवान से मिलने के लिए जाते हैं भगवान

2:25:00 विष्णु से मिलने के लिए जाते हैं अब जब भगवान विष्णु के पास मिलने गए तो जो द्वारपाल थे जय और विजय तो

2:25:09 उन्होने रोका कि आप नहीं जा सकते प्रभु हमारे विश्राम कर रहे

2:25:15 हैं तो सनत कुमार कहते नहीं नहीं मुझे तो

2:25:21 भगवान के दर्शन करने हैं आप मुझे जाने दो तो द्वारपाल कहते कि नहीं मिलने नहीं

2:25:28 देने जा सकते हमारे प्रभु विश्राम कर रहे हैं

2:25:34 उनको विश्राम करने दीजिए अंदर मत जाइए बारबार जब रोका तो सनत कुमारों को क्रोध आ

2:25:40 गया कि भक्त को भगवान से मिलने से तुम रोक रहे हो इससे बड़ा पाप क्या हो सकता है जाओ

2:25:47 तुम्ह मैं श्राप देता हूं कि अगले जन्म में तुम राक्षस

2:25:53 बनो जय विजय क्षमा प्रार्थना करने लगते हैं कि हे प्रभु मेरी कोई गलती नहीं है

2:25:59 मैं तो अपना काम कर रहा हूं मेरा काम है द्वारपाल मैं अपना कर्म कर रहा हूं मेरी

2:26:05 कोई गलती नहीं आपने मुझे क्यों श्राप दे दिया बारबार क्षमा प्रार्थना करने लगे तब

2:26:11 सनत कुमारों ने कहा कि कोई बात

2:26:18 नहीं तुम्हारे जब जब राक्षस रूप में जन्म

2:26:24 होगा जब जब तुम कंस बनो रावण बनो तब तब भगवान आएंगे तुम्हारा उद्धार

2:26:32 करने के लिए इस प्रकार से सनत कुमार जो है उनको आशीर्वाद

2:26:39 देते हैं आगे प्रसंग आता है उत्तानपाद जी

2:26:45 का उत्तानपाद जी के

2:26:50 एक पत्नी है जिनका नाम है सुनीति सुनीति अर्थात सुंदर नीति पर चलने

2:27:00 वाली जो सुंदर नियम का पालन करती हो जो नियम पर चलने वाली स्त्री हो उत्तानपाद जी

2:27:08 का जीवन बहुत सुंदर चल रहा है

2:27:15 और इस जीवन में श्री उत्तानपाद जी जो है सत्कर्म करते राज्य का पालन पोषण कर रहे

2:27:22 थे बहुत सुंदर जीवन व्यतीत कर रहे थे एक बार श्री उत्तानपाद जी जो है वह

2:27:28 युद्ध करने कहीं गए हुए थे और वापस लौट रहे थे तो उनकी नजर पड़ी एक सुंदर स्त्री

2:27:34 पर जिसका नाम था सुरुचि सुरुचि अर्थात जो रुचिक हो जो मन को भाने

2:27:43 वाली सुनीति का मतलब क्या होता है जो नियम चलने वाली हो सुरुचि का मतलब क्या होता है

2:27:49 जो मन को भाने वाली वो नियम रूल रेगुलेशन से उसे कोई लेना देना नहीं होता क्योंकि

2:27:55 वो मन को भ रही है उत्तानपाद जी विवाह कर लेते हैं गंधर्व

2:28:02 विवाह और लेकर आ जाते हैं अपने राजमहल में जहां पर सुनीति जो है वो सुंदर स्वागत

2:28:09 करती है आरती का थाल लेकर जब आरती का थाल लेकर स्वागत करती है तो सुर जी कहती कि यह

2:28:15 कौन है उत्तानपाद जी कहते हैं कि यह मेरी प्रथम पत्नी सुनीति है सुरज रूठ जाती है

2:28:24 उत्तानपाद जी से और कहती है कि मैं इस महल में तब प्रवेश करूंगी जब इस सुनीति को इस

2:28:31 महल से आप निकाल दोगे अब क्योंकि प्रेम में थे उत्तानपाद

2:28:38 जी उन्होंने सुनीति को महल से निकाल दिया सुनीति महल से बाहर नगर से बाहर

2:28:46 संतों के आश्रम के पास में पर्ण कुटी में निवास करने लगती हैं और भगवान का भक्ति

2:28:52 भजन करने लगती है क्योंकि जब वह महल से बाहर आई थी उसके पहले से वह गर्भवती थी तो

2:29:01 वह समय आने पर एक बालक को जन्म देती हैं जिनका नाम वह ध्रुव रखती हैं इधर

2:29:10 सुरज ने भी एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम उसने उत्तम रखा

2:29:18 ध्रुव जो है ध्रुव का मतलब होता है दृढ़ निश्चय

2:29:24 संकल्प जो ठान ले वो

2:29:30 करे ध्रुव जो है संतों के संग में रह रहे हैं भगवान की भक्ति कर रहे हैं सुनीति है

2:29:36 तो सुंदर नीति पर चलना भी उनकी माता जी सिखा रही है संस्कार भी दे रहे हैं अच्छा

2:29:42 आजकल ना माता-पिता कहते हैं कि मेरे बच्चे ना मेरा कहना नहीं

2:29:47 मानते बच्चे कहना नहीं सुनते हैं बच्चे आप जो कर रहे हो वह देखते हैं है ना आप अगर

2:29:55 यहां आए हो और बैठे हो और अपने बच्चों को भी लेकर आए हो आप

2:30:03 अगर शांति से कथा सुनोगे तो बच्चे भी सुनेंगे कि हां ठीक है लेकिन अगर आप आए हो आप ही य बात कर रहे

2:30:10 हो तो फिर आपके बच्चे क्या करेंगे उनको लगे सब फालतू बातें हो रही कोई बात नहीं

2:30:15 हम लोग पहले अपना बात कर रहे बच्चे जाएंगे खेल के आएंगे तो संस्कार माता देती प्रथम गुरु

2:30:23 माता होती है एक बार कहते कि दिल्ली मेट्रो में

2:30:30 स्त्री जा रही थी अपने बच्चे के साथ तो व उनका जो बच्चा है व पुस्तक पढ़ रहा था बुक

2:30:37 पढ़ रहा [संगीत] था तो बगल में एक व्यक्ति बैठा हु तो उसको बड़ा आश्चर्य हुआ ये आ 10 साल का बच्चा

2:30:46 किताब खोल के पड़ रहा है आजकल के बच्चे तो मोबाइल जब देखो तब मोबाइल मुझे टेबलेट

2:30:51 चाहिए मोबाइल चाहिए इस टाइप की बातें करते हैं य बुक कैसे पढ़ रहा

2:30:56 है तो उसने उस बच्चे की जो मां बैठी हुई थी उससे पूछा कि बहन आपने क्या संस्कार

2:31:04 दिया है क्या घोल के पिलाया है कि आपका बच्चा जो है वोह मोबाइल टैबलेट ना मांगने

2:31:10 की जगह यहां पर किताब पढ़ रहा है तो उस महिला ने बड़ा सुंदर उत्तर

2:31:17 दिया कि मैं खुद किताबें पढ़ती हूं मेरा बच्चा वही देखता है उसे क्योंकि

2:31:25 मैं किताब पढ़ती हूं उसे लगता होगा कि किताब पढ़ना चाहिए तो पढ़ता है अगर जैसे

2:31:31 मैंने पहले बताया आप जो करोगे बच्चे वही करेंगे आप गुरु को प्रणाम करोगे बच्चे

2:31:37 प्रणाम करेंगे इसलिए हमारे क्या हम लोग आप लोग

2:31:43 बच्चों को जय करना सिखाते हैं बेटा जय करो जय है ना तो बच्चों के अंदर संस्कार

2:31:49 माता-पिता डालते हैं सुनीति यहां सुंदर संस्कार डाल रही है बच्चे में और

2:31:55 सुरुचि जिसके अंदर खुद संस्कार नहीं वो क्या संस्कार देगी महाराज

2:32:02 इधर ध्रुव जी महाराज पाच वर्ष के हो गए सुंदर

2:32:10 संस्कृति उनके अंदर उनकी माता ने दिया

2:32:16 संतों के संग्रह भगवान की कथा सुने भगवान में उनका

2:32:24 विशेष उसके अलावा हमारे ध्रुव जी अपने सभी बड़ों का बड़ा सम्मान करते थे एक दिन उनके

2:32:30 पिताजी बहुत दिवसों के बाद महीनों के बाद महल में वापस आए सुनीति महल में नहीं जा

2:32:36 सकती थी लेकिन ध्रुव जी के लिए किवाड़ बंद नहीं था तो ध्रुव जी महाराज दौड़ते दौड़ते जाते हैं अपने पिताजी से मिलने के लिए

2:32:43 पिताजी आए हुए हैं पिताजी आए हुए हैं तो उत्तान जी ने कहा था कि कोई भी आए अंदर मत आने

2:32:49 दे तो ध्रुव जी महाराज जब जाते हैं तो कहते हैं कि मुझे अंदर जाने दो तो द्वारपाल रोक देते हैं कि नहीं अंदर नहीं

2:32:56 जाने देंगे तो वो कहते हैं कि मुझे तो जाना है अपने

2:33:03 पिताजी से मिलना है तो उन्होंने कहा नहीं नहीं बिल्कुल आपके पिताजी ने मना किया अगर मैं उनकी आज्ञा का पालन नहीं करूंगा तो

2:33:10 मुझे दंड देंगे ध्रुव जी कहते हैं कि एक बार मैं पिता के दंड से तुम्हें ब बचा

2:33:15 लूंगा मैं उनका पुत्र हूं लेकिन अगर मैं दंड दे दूंगा ना तो मेरे पिताजी भी नहीं

2:33:21 रोकेंगे मैं उनका पुत्र हूं द्वारपाल डर जाते हैं अंदर जाने देते

2:33:27 हैं अंदर जब गए पिताजी पिताजी पिताजी करके दौड़ते हुए ध्रुव पिताजी की गोद में बैठने

2:33:33 का प्रयत्न करने लगे राजा उत्तानपाद भी ध्रुव जी को अपनी गोद में लेने लगे बिठाने

2:33:39 के लिए सुरुची वही बैठी हुई थी उसको क्रोध आ गया ध्रुव जी का हाथ पकड़ के खड़ी हो

2:33:45 जाती और उस उनको खड़ा कर देती है और कहती तू इस गोद में बैठने का अधिकारी नहीं है ु

2:33:52 जी ने कहा कि मैया ऐसे कैसे हो सकता है यह तो मेरे पिताजी है मैं बैठूंगा उन्होंने कहा नहीं नहीं तुम इस

2:33:59 गोद में बैठने के अधिकारी नहीं हो बोले क्यों अधिकारी नहीं हो बोले अधिकारी इसलिए

2:34:05 नहीं हो क्योंकि तुमने मेरे गर्भ से जन्म नहीं लिया बोले तो क्या हुआ पिताजी तो फिर भी

2:34:13 है मेरे मैं तो बैठूंगा उसने कहा नहीं नहीं अगर तुम्हें इस गोद

2:34:20 में बैठना है तो जाओ भगवान का तपस्या करो और जाकर तपस्या करके जब

2:34:29 भगवान के दर्शन हो जाए तोत उनसे कहो कि वह तुम्हें मेरे गर्भ के द्वारा इस पृथ्वी पर

2:34:35 जन्म दे तब तुम इस गोद में बैठने के अधिकारी [संगीत]

2:34:42 हो आज सुर नेवान का तक अपमान कर दिया कि वोह अपने आप

2:34:49 को इतना विलक्षण बता रही है कि अगर भगवान के दर्शन हो जाए तो भगवान

2:34:56 से यह मांगो कि मेरे गर्भ में आओ मैं आज

2:35:01 [संगीत] तक ध्रुव जी बारबार अनुरोध करते रहे लेकिन

2:35:07 सुरुची ने बैठने दिया ु जीी रो नहीं लगे आज यहां पर पिता तो कम से कम हाथ पकड़कर

2:35:14 बैठा लेते अपनी गोद में कुछ नहीं बोला उत्तान पादने कुछ भी नहीं बोला रोते रोते ध्रुव

2:35:22 जी अपनी माता के पास गए और बिलख बिलख कर कहने लगे मैया जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो

2:35:29 मैं छोटी मां को छोडूंगा नहीं मैं उनके प्राण ले लूंगा मैं उनको मार डालूंगा सुनीति जी ने तुरंत मुह पर हाथ

2:35:37 रखा कि बेटा ऐसे नहीं बोलते हैं वो तुम्हारी छोटी मां है उनका आदर करना चाहिए

2:35:44 सम्मान करना चाहिए तुम ऐसी बातें क्यों कर रहे हो ध्रुव जी ने पूरी बात

2:35:49 बताई दूसरी मां होती तो कहती कि हां मैं तुम्हें बड़ा करूंगी

2:35:55 फिर तुम बदला लेना लेकिन सुनीति जी ने कहा

2:36:01 नहीं सुरुची मैया ने सही ही तो कहा है उन्होंने कहा जाओ भगवान की भक्ति करो

2:36:08 और हमारे जीवन की सच्चाई तो यही है भगवान की भक्ति करना लोग बड़े हो जाते हैं तब जाकर भगवान

2:36:16 की भक्ति करते हैं उन्होंने तो आपको पहले ही सिखा दिया कि जाओ भगवान की भक्ति करो

2:36:22 और यह तो बहुत बढ़िया है जाओ भगवान की भक्ति करो अगर अपने पिता की गोद में बैठने

2:36:28 की इच्छुक हो तो उससे बड़ा है भगवान का गोद जाओ भगवान की भक्ति करो और भगवान का

2:36:35 गोद कैसे प्राप्त हो बैठने के लिए ये जाकर प्रयत्न करो सही तो कहा है सुरसी मैया ने जाओ

2:36:44 भगवान की भक्ति करो उनके नाम का चिंतन करो अपने कुल का नाम

2:36:51 [संगीत] बढ़ाओ श्री ध्रुव

2:36:56 जी माता की बात से प्रेरित होकर भगवान को प्रणाम करके साधारण वस्त्र पहनकर

2:37:04 माता को चरण स्पर्श करके आज ध्रुव जी जब जा रहे हैं तो सुनीति

2:37:13 मैया ने ध्रुव जी की देखा तक नहीं जाने

2:37:19 [संगीत] दिया क्यों नहीं देखा अगर वह देखती और

2:37:26 ध्रुव जी को अपनी माता के आंखों का आंसू दिख जाता तो

2:37:32 [संगीत] व ध्रुव जाते नहीं जंगल में ध्रुव जी चले

2:37:38 गए वन में सबसे पहले कुछ दूर गए तो उनको नारद जी से मिलना

2:37:44 हुआ ध्रुव जी महाराज को गुरु मंत्र

2:37:49 मिला और श्री ध्रुव जी वन में जाकर भगवान की भक्ति करना प्रारंभ करते

2:37:59 हैं और इस प्रकार से वन में जाकर भक्ति करते हैं सबसे पहले उन्होंने

2:38:06 अन्न खाना त्याग दिया फल का खाकर भगवान की भक्ति की थोड़ा समय ज्यादा हो रहा है

2:38:12 इसलिए संक्षेप कर रही हूं बाकी कल समय रहेगा तो मैं विस्तार से बता

2:38:18 दूंगी उसके बाद केवल फल खाकर भगवान की भक्ति की फिर

2:38:24 फल भी त्याग दिया केवल पत्ते खाकर भगवान की भक्ति की फिर पत्ते भी त्याग दिए केवल

2:38:30 जल पीकर भगवान की भक्ति की और एक समय ऐसा आया उन्होंने जल भी त्याग दिया केवल श्वास

2:38:36 लेकर भगवान की भक्ति की और अंत समय में जब तब भी भगवान के दर्शन नहीं हुए एक पांव पर

2:38:44 खड़े होकर दोनों हाथों को इस प्रकार से जोड़कर नेत्र बंद करके उन्होंने मंत्र जाप

2:38:50 करना प्रारंभ किया और शवास रोक लिया इंद्र आदि सभी देवी देवता भगवान

2:38:58 विष्णु के पास गए कि प्रभु आपका भक्त पांच वर्ष का छोटा सा बालक आपकी भक्ति कर रहा

2:39:04 है जाइए आप उसको दर्शन दीजिए सृष्टि रुक गई है संसार रुक गया है जलचर थर

2:39:12 चर सभी रुक गए हैं नद बहना रुक गई है झरने

2:39:17 रुक गए सभी सब कुछ रुक गया है जैसे ही ध्रुव जी का शवास रुका आप जाकर उन्हें

2:39:23 दर्शन दीजिए भगवान विष्णु बड़े प्रसन्न होते हैं और ध्रुव जी के समक्ष आकर अवतरित

2:39:30 हो जाते हैं लेकिन ध्रुव जी का ध्यान इतना अटूट है

2:39:36 कि वह फिर भी नेत्र खोल नहीं रहे वो अपना मंत्र जाप करते जा रहे हैं आधा घंटा

2:39:43 तक तो प्रभु ने बस ध्रुव जी को निहारा है महाराज आधा घंटा तक प्रभु ने ध्रुव की

2:39:52 वो तेज को वो ध्रुव की भक्ति को वो समर्पण वो त्याग सबको

2:39:59 निहारा ये छोटा सा बालक जब बहुत देर हो गया ध्रुव जी ने

2:40:06 नेत्र नहीं खोला ध्रुव जी को प्रभु ने पुकारा हे ध्रुव मैं आ गया

2:40:13 हूं ध्रुव जी ने नेत्र खोला अब कुछ बोल नहीं रहे हैं ध्रुव जी मनही मन में विचार कर रहे कि

2:40:20 मैं तो इतना छोटा हूं ना मुझे कोई स्तुति आती है ना मुझे कोई मंत्र आता है ना मुझे वंदन करने आता है ना प्रणाम करने आता है

2:40:28 बस गुरु जी से एक मंत्र मिल गया था मैं उस मंत्र को जाप किया आप मुझे प्राप्त हुए अब मेरे पास कुछ शब्द ही नहीं मैं कैसे

2:40:34 प्रणाम करू मैं कैसे स्वागत करूं आपका ध्रुव जी मुख होकर खड़े हैं कुछ बोल

2:40:44 नहीं रहे ठाकुर जी समझ गए उन्होंने अपने संख को ध्रुव जी के गालों पर स्पर्श

2:40:51 करवाया ध्रुव जी पाच वर्ष की अवस्था में सभी वेदों पुराणों ग्रंथों उपनिषदों की

2:40:59 ज्ञाता हो गए और सुंदर स्तुति की ध्रुव जी ने भगवान विष्णु का और उसके बाद भगवान

2:41:08 विष्णु ने अपने गोद में बिठाकर ध्रुव जी से कहा पुत्र वर मांगो कि क्यों तुमने

2:41:14 भक्ति की है क्यों मुझ मु बुलाया दर्शन के लिए अब ध्रुव जी मन में विचार कर रहे हैं

2:41:20 और कुछ कह नहीं रहे क्या कहे पिता की गोद में बैठना था इसलिए बुला रहे थे क्या कहे

2:41:26 कि मुझे राज्य चाहिए इसलिए मुझे मैं बुला रहा था आपको वो कुछ नहीं कह रहे प्रभु बस आप मिल

2:41:32 गए सब सर्वस्व मिल गया ठाकुर जी समझ गए कि ध्रुव कुछ नहीं

2:41:38 कहने वाले उन्होंने कहा ध्रुव जाओ हजारों हजारों वर्षों तक इस धरती पर तुम निवास

2:41:44 करोगे और इस धरा धाम से जाने के बाद भी लोग तुम्हें ध्रुव तारे के रूप में याद

2:41:50 करेंगे और तुम्हारा पूरा समाज तुम्हें बहुत ही ज्यादा सम्मान करेगा इस प्रकार से

2:41:56 ध्रुव जी महाराज को भगवान विष्णु दर्शन देते हैं और भगवान

2:42:03 विष्णु के दर्शन के बाद ध्रुव जी वापस आते हैं उनका बहुत ही सत्कार किया जाता है

2:42:08 उत्तानपाद जी के द्वारा खूब सुंदर स्वागत किया जाता है और उसके बाद 36 हज वर्षों तक धुव जी इस

2:42:17 धरा धाम पर निवास करते हैं और उसके बाद भगवान के धाम को चले जाते हैं बो बाल

2:42:23 कृष्ण लाल की

2:42:29 जय हमारे आगे की कथा में श्री परीक्षित जी

2:42:36 महाराज प्रश्न करते हैं श्री सुखदेव जी से कि प्रभु यह

2:42:41 बताइए कि क्या कोई व्यक्ति बहुत पूजा पाठ करने वाला हो और बाद में

2:42:49 उसकी मति भ्रमित हो गई हो तो

2:42:55 क्या भगवान उसको दर्शन देते हैं तो उन्होने कहा हां बिल्कुल आगे

2:43:04 उन्होंने कथा में बताना प्रारंभ [संगीत]

2:43:11 किया कि श्री ऋषभ देव जी महाराज के 100 पुत्र थे जिनमें से एक पुत्र सबसे बड़े पुत्र का

2:43:18 नाम था भरत 100 पुत्रों को श्री ऋषभ देव जी महाराज बुलाते हैं जैसे आप सब आए हुए हो

2:43:25 और उन सबको ज्ञान देते हैं क्या कि हमारे जीवन का परम उद्देश्य भगवत प्राप्ति

2:43:32 करना भगवान के नाम का चिंतन करना यहां पर खेलने खाने नाचने गाने दिनचर्या करने पूरा

2:43:39 इसलिए नहीं आयो तो जब ऋषभ देव जी महाराज बहुत ही विधि विधान से उपदेश करते हैं तो

2:43:47 ऋषभ देव जी जो है के उपदेश के बाद उनके नवासी पुत्र तो उसी वक्त जंगल में चले

2:43:53 जाते हैं भगवान की भक्ति करने के उनमें से जो सबसे बड़े होते हैं भरत जी

2:43:59 [संगीत] उनको राज्य पाठ संभला करर ऋषभ देव जी

2:44:05 भगवान की भक्ति करना प्रारंभ कर देते हैं वन में इधर भरत जी काफी समय तक भगवान की

2:44:13 भक्ति करते हुए पाठ का पालन करते हैं और एक समय ऐसा आता है जब उनको आभास होता है

2:44:19 कि मेरे सभी भाई बंधु मेरे पिताजी स्वयं भगवान की भक्ति कर रहे मैं राज्य का पालन

2:44:25 पोषण करने में लगा हुआ हूं मुझे भी भगवान की भक्ति करनी

2:44:30 [संगीत] चाहिए तो भरत जी जो है

2:44:38 वोह भगवान की भक्ति करना प्रारंभ करते हैं वन में जाकर त्रिकाल संध्या सिद्ध कर लेते

2:44:47 हैं त्रिकाल संध्या सिद्ध कर लेते हैं और एक समय एक नदी में खड़े होकर संध्या कर

2:44:54 रहे थे पूजा कर रहे थे और संध्या करते समय उन्होंने

2:45:01 एक सिंह को की ड़ने की आवाज सुनी और सिंह के आगे आगे बहुत सारी

2:45:10 हिरनिया दौड़ रही थी भाग रही थी अपने प्राण को बचाने के लिए सभी हिरनिया जो है

2:45:17 नदी के एक ओर से दूसरी ओर कूद गई इनमें से एक जो सबसे बाद में हिरनी कूदती है वह

2:45:25 गर्भवती थी तो उसका गर्भ नदी के पानी में गिर जाता है और दूसरी ओर वह जाकर गिरती है

2:45:31 प्रसव पीड़ा और बच्चे से दूर हो जाने के कारण वह मर जाती है अब भरत जी ने सब कुछ

2:45:40 देखा था तो उन्होंने क्या किया अपनी माला को गले में डाला और इस बच्चे को जो नदी

2:45:45 में बह रहा था उसको निकाल करर नदी से बाहर लाई और लाकर उसका लालन पालन करना प्रारंभ

2:45:54 कर देते हैं कि 101 दिन रखूंगा जब यह खुद से अपना देखभाल करने लगेगा तो मैं इसको

2:46:00 छोड़ दूंगा लेकिन भरत जी जो उनकी सेवा करना प्रारंभ करते हैं तो धीरे-धीरे नेह

2:46:06 हो जाता है प्रेम हो जाता है तो हिरनी से इतना लगाव हो जाता है कि जो व्यक्ति 22

2:46:14 घंटे भगवान की पूजा किया करता था अब एक घंटा भी करना बड़ा दुर्लभ हो गया है एक

2:46:20 दिन भरत जी आश्रम के अंदर पूजा की तैयारियां कर रहे थे इधर हिरण जो

2:46:27 है उसके जैसे लोगों को बाहर आती आते हुए देखती वो उनके साथ दूर निकल जाती है फिर

2:46:33 लौट के वापस नहीं आ पाती भरत जी बाहर आते हैं देखते हैं बड़े

2:46:39 व्याकुल हो जाते हैं परेशान हो जाते हैं बहुत दूर दूर तक जाकर ढूंढते हैं लेकिन वो हिरणी नहीं मिलती बहुत परेशान हो जाते

2:46:47 हैं कुछ समय बीतता है और भरत जी महाराज का अंतिम समय आता है तो अंत समय में व हिर को

2:46:53 याद करते हिरण को ही याद करते हैं अगला जन्म उन्ह हिरण का मिलता

2:46:59 [संगीत] है अब अगले जन्म में हिरण बने तो त्रिकाल संध्या सिद्ध व्यक्ति उसको याद रह गया कि

2:47:08 मैं पिछले जन्म में क्या था मैंने क्या गलती करी थी तो इस जन्म में उन्होंने खाना पना त्याग दिया सखे पत्ते खाते

2:47:17 अपने जो हिरण हियों के झुंड से दूर रहते और एक बार जब जंगल में आग लगा तो उस अग्नि

2:47:24 में अपने जल शरीर को जलाकर भस्म कर दिया और फिर पुनः जन्म हुआ एक ब्राह्मण परिवार

2:47:32 में जहां पर उन्होंने बचपन से बोलना ही नहीं

2:47:40 प्रारंभ किया बोला ही नहीं सोचा कि ब्राह्मण घर में हूं अगर मैं बोलूंगा तो मुझे

2:47:48 पहले श्लोक सिखाया जाएगा मंत्र सिखाया

2:47:53 जाएगा गायत्री मंत्र सिखाया जाएगा फिर उदर भरण करने के लिए मुझे यह मंत्र सिखाया

2:47:59 जाएगा मुझे यह सब चक्कर में नहीं पढ़ना फिर शादी विवाह करना सिखाया जाएगा मुझे नहीं पढ़ना इन सब चक्कर में तो बोलते ही

2:48:06 नहीं है धीरे धीरे बड़े होते हैं बड़ा प्रयास करते हैं उनके पिताजी ये कुछ तो

2:48:12 बोले जब वो नहीं बोलते हैं और उनका नाम संयोग बस उन्होंने भरत ही

2:48:17 रखा जब वो नहीं बोलते बड़ा प्रयास करते हैं बड़ा इलाज करवा लेते हैं तो एक दिन क्रोध से भरकर उनके पिताजी कहते हैं एकदम

2:48:25 जड़ बुद्धि है भलता ही नहीं है अब जड़ भरत जी उनका नाम पड़ गया

2:48:33 धीरे-धीरे वह बड़े होने लगे बड़े सीधे साधे स्वभाव के जो जो कहता उस काम को करते

2:48:38 अगर कोई कह रहा है झाड़ू लगा दो तो आंगन में झाड़ू लगाते पूरे नगर में झाड़ू लगा

2:48:44 देते [संगीत] अगर कोई कहता कि किसी की सेवा कर दो मदद

2:48:49 कर दो तो उसकी खूब सेवा करते खूब मदद करते धीरे धीरे इस प्रकार

2:48:55 से उनके माता-पिता का शरीर शांत हो गया और भाई भाभी किसी के नहीं होते तो भाभियों को

2:49:04 व टकने लगे कि मैं काम करने भेजती हूं अपना यह दूसरे का काम करने में लग जाते हैं याद ही नहीं रहता इनको तो अपने पतियों

2:49:12 को कहती किय पड़ा पड़ा बस खाता रहता है को बाहर के खेत में छोड़ा हो वहां अपना

2:49:17 रहेंगे अपना खेतीवाड़ी [संगीत] करेंगे अब पत्नियां जब कहती है पति कर

2:49:26 क्या सकते हैं बेचारे वो गए वहां बाहर की खेत में वहां छोड़

2:49:33 आए बाहर जब छोड़

2:49:38 आए तो वहां पर खेत बोने के लिए दिया गया यहां कुड़ाई कीजिए फिर उसम बीज डालिए तो

2:49:47 कुड़ाई तो किए बहुत बढ़िया और वो जो भाई लोग थे व भोजन पहुंचा भी दिया करते थे

2:49:52 कुड़ाई किए गुड़ाई किए पानी डाला जब बीज डालने का समय आया तो बीज खेत में थोड़ा

2:49:58 अंदर मिट्टी के अंदर डाला जाता है उन्होने ऊपर डाल दिया जिससे जो पक्षी होते हैं जो जीव होते

2:50:06 हैं वो उनको खाए तृप्त हो जाए उनका भाई आया देखा बोले ये क्या कर रहे हो मूर्ख

2:50:16 यह खेत के अंदर डालना है बीज है ये ऊपर डालोगे तो कैसे उपजे तो कहते हैं कि राम

2:50:23 जी की चिड़िया राम जी का खे खाओ प्यारी चिड़िया भर भर पेट हमारा कुछ नहीं है पहली

2:50:30 बार बोला भरत जी ने राम जी की चिड़िया राम जी

2:50:35 का खेत खाओ प्यारी चिड़िया भर भर पेट भाई भड़क जाता है यह क्या है भाई यह तो बोलना

2:50:43 जानता है आज तक बोलता नहीं अब वह भोजन पानी देना बंद कर देता

2:50:50 है यह तो ढंग से खेती भी नहीं कर रहा है कई दिन बीत

2:50:57 गए जड़ भरत जी भूक प्यास से व्याकुल है भोजन ही नहीं पहुंचाया भाइयों ने बहुत समय

2:51:05 बीतने के बाद उन उनके खेत के बगल में एक मंदिर था

2:51:10 भद्रकाली का भद्रकाली का जो मंदिर था वहां पर एक अफवाह फैली हुई थी कि जो भी यहां पर बली

2:51:18 चढ़ाता है किसी जीव जंतु का तो भद्रकाली से जो भी आशीर्वाद व्यक्ति मांगता है वह

2:51:25 मिल जाता है तो डकैतों ने देखा कि अगर किसी बकरे

2:51:31 वगरे को काटने से थोड़ा सा धन मिलता है अगर मनुष्य को काट के चढ़ा दे तो भद्रकाली

2:51:36 तो खजाना भर देंगे तो उन्होंने क्या किया मंदिर आकर पूरी साफ सफाई की पूरा व्यवस्था

2:51:43 किया खूब सुंदर सजाया खूब विधिवत आरती पूजन किया अब वो ढूंढने

2:51:49 लगे कोई ऐसा मिले जिसको हम लोग बली चढ़ा सके तो अपने संगी साथियों को भेजा कि जाओ

2:51:56 ढूंढ के लेकर आओ इसको बली चढ़ाए तो बाहर निकले तो खेत दो चार खेत आगे बढ़े तो देखा

2:52:01 य जड़ भरत जी बेचारे व्याकुल भूख से तड़प रहे बैठे हुए हैं तो उनको लेकर वो वहां गए

2:52:10 मंदिर में और पहले जड़ भरत जी को नहलाया गया वि विधान

2:52:15 से सुंदर वस्त्र पहनाए गए उसके बाद जड़ भरत जी को भोजन करवाया

2:52:22 गया खूब सुंदर भोजन आज भरत जी महाराज दोनों हाथों से खा रहे इतने

2:52:28 भूखे और जब खापी के तृप्त हो गए तो उन्होंने पूछा कि भैया यहां क्या हो रहा

2:52:37 है इतना सुंदर भोजन भंडारा मुझे क्यों खिलाया जा रहा है तो वो लोग कहते हैं कि

2:52:43 तुम्हारी बलि दी जानी है तो वोह कहता है भरत जी कहते हैं कि ऐसी

2:52:50 बलि रोज देव ऐसा भंडारा रोज

2:52:56 हो अब वो समझ जाते कि मूर्ख है इसको कुछ समझ में नहीं आ रहा और बढ़िया है इसको

2:53:02 शांति से जैसे जैसे कहेंगे ऐसे ऐसे करेगा बलि देने में आसानी होगी ज्यादा छटपटा एगा

2:53:07 नहीं तो जो डाकुओं का सरदार होता है वो क्या करता है कहता है ऐसे हाथ जोड़ो और

2:53:16 नेत्र बंद करके यूं गला नीचे करके खड़े हो जाओ जड़ भरत जी महाराज वैसे ही करते हैं

2:53:24 और वह तलवार निकालता है सर धड़ से अलग करने के लिए बली चढ़ाने के

2:53:31 लिए कहते जब जब भक्त पर समस्या आती भगवान अवश्य आपकी रक्षा करते हैं बस आप सरल होनी

2:53:42 चाहिए जब त र निकाली जड़ भरत जी का गला काटने के लिए भद्रकाली मैया प्रकट हो गई

2:53:49 बोले भद्रकाली महारानी की जय भद्रकाली महारानी प्रकट हो गई और उस डाकू से और

2:53:58 भद्रकाली मैया का खूब देर तक युद्ध चला और भद्रकाली मैया ने उन सभी डकैतों का वध

2:54:05 किया और उसके बाद क्रोध से भरी हुई मैया जो है वो जड़ भरत जी की ओर देखती है कि

2:54:12 मांगो वर मांगो जड़ भरत जी बहुत ही सरल भाव से कहते हैं कि देवी आप आकर आपने मुझे

2:54:18 दर्शन दिया यही मेरे जीवन के लिए बहुत बड़ा भाग्य है आप बस इतना आशीर्वाद दीजिए

2:54:25 कि मेरे ठाकुर के प्रति मेरी श्रद्धा और बढ़े और आप हम सभी के मध्य श्री काली जी

2:54:33 की झांकी आने वाली है और आप हम सभी काली जी की झांकी का दर्शन करेंगे और मीठी मीठी

2:54:41 तालियों की सेवा हम आप सभी करेंगे

2:54:46 आइए काली काली अमावस की रात में काली काली

2:54:53 अमावस की रात में काली निकली है भैरों के

2:54:58 साथ में काली काली अमावस की रात में काली

2:55:04 काली अमावस की रात में काली निकली है भैरों के साथ में काली काली अमावस की रात

2:55:13 में के काली काली अमावस की रात में काली

2:55:19 निकली है भैरों के साथ में काली निकली है बैरों के साथ

2:55:25 [संगीत]

2:55:43 में [संगीत]

2:55:54 सबको बैठ घूमर निकली मां

2:56:00 महाकाली सबसे पहले आप लोग बैठ जाइए खड़े होंगे किसी को नहीं दिखेगा कुछ और बड़ा

2:56:06 आनंद आएगा बैठ जाइए सभी लोग जो खड़े हुए हैं भक्तगण सभी बैठ कर के आनंद प्राप्त

2:56:11 करेंगे माता महाकाली के बैठ कर के दर्शन करें सभी बहने जो खड़ी हो गई है सभी बैठ कर के

2:56:17 दर्शन करेंगे अपने सिर पर पल्लू लेकर के जो है माता महाकाली के सुंदर दर्शन करेंगे

2:56:22 बोलिए काली मैया की घूमने निकली मां महाकाली घूमने निकली मां महाराज एक दानव

2:56:32 का मुंड लिए हाथ में एक दानव का मुंड लिए हाथ में काली निकली है भैरो के साथ में

2:56:42 काली निकली है भैरो के साथ में काली काली अमावस की रात में काली काली अमावस की रात

2:56:52 में काली निकली है भैरों के साथ में काली काली अमावस की रात में काली निकली है

2:57:01 भैरों के साथ

2:57:13 में [संगीत]

2:57:25 केस बिखरे मां के काले काले केस बिखरे मां के काले काले नैना मैया के लाल लाल लाल रे

2:57:36 नैन मैया के है लाल लाल रे काला कुत्ता है

2:57:41 मैया के साथ में काला कुत्ता है मैया के साथ में काली निकली है भैरों के साथ में

2:57:50 काली काली अमावस की रात में काली काली अमावस की रात में हो काली निकली है भैरों

2:57:59 के साथ में काली निकली है बैरों के साथ [संगीत]

2:58:12 में [संगीत]

2:58:35 रूप भैरो जी का काला काला रूप भैरोजी का

2:58:40 काला काला ये तो है मैया काली का काला ये

2:58:46 तो है मैया काली का लाला रूप भैरो जी का काला काला रूप भैरो जी का काला काला ये तो

2:58:57 है मैया काली का लाला ये तो है मैया काली

2:59:02 काला बेटा घूमने चला मां के साथ में बेटा घूमने चला मां के साथ में काली निकली है

2:59:12 भैरों के साथ में काली काली अमावस की रात में काली निकली है

2:59:19 भैरों के साथ में काली काली

2:59:35 अमावस काली मैया

2:59:40 [संगीत] की [संगीत]

2:59:57 वामन भैरो और 56 है करवा वामन भैरो और 5

3:00:03 है करवा 754 खेल रहो है बरुआ सासो चमन खेल

3:00:09 रहो है बरवा वामन भैरो और 5 है बरवा वामन

3:00:15 भरो और 5 है करवा 754 खेल रहो है बरवा सास

3:00:22 चमन खेल रहो है 64 जोगनिया 64 जोगनिया 64

3:00:29 जोगनिया मैया के साथ में काली निकली है भैरों के साथ में काली काली अमावस की रास

3:00:38 में काली निकली है भैरों के साथ में काली काली अमावस की रात में काली निकली है

3:00:47 बैरों के साथ में काली काली अमावस की रात में काली निकली है भैरों के साथ में एक

3:00:56 दानों का मुंड लिए हाथ में काली निकली है नोटों के साथ में एक दानों का मुंड लिए

3:01:05 हाथ में काली निकली है भैरों के साथ में काली निकली है भैरों के साथ में काली काली

3:01:14 अमावस की रात में काली निकली है भैरों के साथ

3:01:20 [संगीत]

3:01:26 में काली मैया की

3:01:34 [संगीत]

3:01:42 ज [संगीत]

3:02:02 किस बिखरे मां के काले काले किस बिखरे मां के काले का केस बिखरे मां के काले कालेस

3:02:12 बखरे के काले हैं काले नैना मैया के लाल

3:02:17 लाल लाल रे नैना मैया के हैं लाल लाल लाल रे काला कुत्ता है मैया के साथ में काला

3:02:27 कुत्ता है मैया के साथ में काली निकली है भैरों के सास के काली कुता है मैया के साथ

3:02:36 में काली निकली है भैरों के साथ में काली काली अमावस की रात में काली निकली है

3:02:44 भैरों के साथ में काली काली अमावस की रात में काली निकली है भैरों के साथ में काली

3:02:54 निकली है भैरों के साथ में काली निकली है भैरों केथ

3:03:01 में बोलिए काली मैया की श्रीमद् भागवत पावन पुराण की

3:03:09 जय आज की दिव्य कथा परम श्रद्धेया

3:03:15 वसुधा श्री जी की दिव्य वाणी से आप सभी श्रवण कर रहे थे और साथ ही कल जो है

3:03:21 चतुर्थ दिवस है कथा का चौथे दिवस में जो है भगवान का प्राग उत्सव जन्म उत्सव यहां

3:03:29 मनाया जाएगा आप सभी अधिक से अधिक संख्या में पधारे जो भक्त पीले कपड़े पहन कर के आ

3:03:35 सकते हैं तो जन्मोत्सव में माताएं बहने भाई बंधु पीले वस्त्र धारण करके आए अन्यथा

3:03:42 जिसको जो धारण करना है कर सकते हैं जिनके पास पीले वस्त्र है वह पीले वस्त्र पहनकर

3:03:47 अवश्य आए कल भगवान का बड़ी धूमधाम से बड़े आनंद के साथ बड़े भाव के साथ हम सभी

3:03:54 जन्मोत्सव मनाएंगे आप सभी को बधाइयां दी जाएंगी आप सभी से बधाइयां ली जाएंगे साथ

3:04:01 ही श्रीधाम वृंदावन से आप सभी को विदित है श्रद्धेया वसुधा श्री जी पधारी हैं जो कि

3:04:07 राधा माधव फाउंडेशन की अध्यक्षा है राधा माधव फाउंडेशन पूरे देश

3:04:12 में सेवा के कार्य कर रहा है समाज सेवा के कार्य कर रहा है श्रद्धेया वसुधा श्री जी

3:04:18 के सानिध्य में गरीबों को जो सहयोग की आवश्यकता होती है वह सब किया जाता है राधा

3:04:25 माधव फाउंडेशन की तरफ से अनाथ कन्याओं के विवाह करवाए जाते हैं ऐसी भीषण ठंडी पड़

3:04:32 रही है ठंडी में जो है कमल वितरण का भी विशेष संकल्प पूज्य वसुधा श्री जी के

3:04:38 द्वारा किया गया है उस संकल्प को आज आयोजक परिवार के द्वारा पूर्ण करने में विशेष

3:04:46 महता सहयोग है राधा माधव फाउंडेशन को जो है आयोजक परिवार के द्वारा आज 51 कंबल

3:04:53 भेंट किए गए एक बार जोरदार तालियों से स्वागत और सम्मान करें 51

3:04:58 कंबल जो है इंदु पांडे जी की पुण्य स्मृति में डॉक्टर साहब ने श्री शारदा पांडे जी

3:05:04 ने वीरेंद्र पांडे जी ने जितेंद्र पांडे जी ने इस महादान में अपनी सुंदर 51 कंबल

3:05:11 की आहुति प्रदान की है राधा मथ फाउंडेशन की तरफ से बहुत-बहुत आशीर्वाद बहुत-बहुत

3:05:17 धन्यवाद और ठाकुर जी से यह प्रार्थना करते हैं कि आप ऐसे ही जो है सभी को सहयोग करते

3:05:24 रहे भगवान के चरणों में आपकी प्रीति बनी रहे सुखी रहे निरोगी रहे और भी जो भक्त

3:05:30 ऐसे कमलों की आहुति देना चाहते हैं ऐसे कंबल दान करना चाहते हैं तो आप सभी सादर

3:05:36 आमंत्रित है साथ ही आज इस दिव्य आयोजन में ही इन कमलों को वितरण किया जाएगा आप में

3:05:43 से से ही कुछ भक्तों को यहां बुला कर के जो है देवी जी के श्री कमलों से यह कंबल

3:05:49 दान करवाए जाएंगे साथ ही मैं दान दाताओं को मंच पर आमंत्रित करूंगा कि संकल्प करके

3:05:55 आप इन कमलों का दान करें श्री शारदा पांडे जी वीरेंद्र पांडे जी जितेंद्र पांडे जी

3:06:01 आप मंच पर आए आकर के इन कमलों का सुंदर संकल्प करके और राधा फाउंडेशन राधा माधव

3:06:07 फाउंडेशन को समर्पित करें साथ ही आप सभी भक्त हमारे पास ठाकुर जी ने क्या कुछ नहीं

3:06:14 दिया है महापुरुषों से विद्वानों से संतों से हमने ऐसा सुना है कि नर सेवा ही नारायण

3:06:21 सेवा है और यह सच बात है हमारे पास बहुत कुछ है उसमें से अगर हम थोड़ा सा कुछ किसी

3:06:27 को दान करते हैं तो ठाकुर जी हमें बहुत बहुत बहुत आशीर्वाद प्रदान करते हैं किसी

3:06:33 की अगर ठंडी से हम एक व्यक्ति की भी रक्षा सुरक्षा कर पाते हैं तो यह बहुत बड़ी बात

3:06:39 है जिनका भी भाव हो कंबल दान करने का तो आप आकर के यहां कंबल दान कर सकते हैं कंबल

3:06:46 की राशि दे सकते हैं जैसा आपका भाव हो और यहीं से यह कंबल वितरण किए जाएंगे और कंबल

3:06:52 वितरण का जो है आप में से ही किसी से नाम पूछ कर के आप

3:06:58 में से ही किसी से यह पूछ करके कि किसको आवश्यकता है वह नाम लिखे जाते हैं और फिर

3:07:05 फाउंडेशन की तरफ से यहीं से जो है पूज्य वसुधा श्री जी के कर कमलों से दिए जाते

3:07:11 हैं आइए सुंदर संक के साथ हम सभी संकीर्तन करेंगे संकीर्तन करते हुए इन कमलों का

3:07:18 वितरण भी होगा जिन भक्तों को आज यह कंबल दिए जाएंगे उनसे भी निवेदन है कि मैं नाम

3:07:23 बोलूंगा वह यहां मंच के पास आ जाएंगे श्री नंगू जी श्री हीरा लाल जी मथुरा प्रसाद जी

3:07:31 गीता देवी जी छोटी के परिवार से कैलाश चौबे जी सुशीला रामदेव जी के परिवार से

3:07:37 रामचंद्र मिस्त्री रामराज जी राम अचल के परिवार से बालक पासवान कुमारी अंजलि

3:07:44 शिवराम के परिवार से साराम प्रभावती प्रेम शंकर के परिवार से ननकऊ पासवान बबलू यादव

3:07:52 और पराग यह सब यहां मंच के पास आ जाए आकर के जो है पूज्या वसुधा श्री जी से

3:07:58 आशीर्वाद स्वरूप कमल भेट में लेकर के अपने जीवन को धन्य बनाए आइए सुंदर संकीर्तन के

3:08:04 साथ झूमते हुए हम सभी आनंद को प्राप्त करेंगे जय श्री

3:08:12 राधे अच्छा कुछ जो है हेलो राधे राधे

3:08:21 धे राधे धे जो कुछ लोग माताए आई थी कि कुंडली बना

3:08:27 देंगी क्या प्रभु जी तो हा आप इनसे संपर्क कर सकते हैं जिनको भी अगर कुंडली बनवाना हो तो हमारे भैया से आके कुंडली बनवा सकते

3:08:34 हैं या कुछ जानना हो पूछना हो तो पूछ सकते हैं [संगीत]

3:08:42 आइए हो मेरी लगी मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया

3:08:50 क्या जाने मेरी लगी श्याम संग प्रीत दुनिया क्या जाने लगी श्याम संग प्रीत ये

3:09:00 दुनिया क्या जाने मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या जाने मेरी लगी श्याम

3:09:09 संग प्रीत ये दुनिया क्या जाने क्या जाने

3:09:14 कोई क्या जाने क्या जाने कोई क्या जाने क्या जाने

3:09:20 कोई क्या जाने क्या जाने कोई क्या

3:09:26 जाने मुझे मिल गया मुझे मिल गया मुझे मिल गया मन का मीत ये दुनिया क्या जाने मुझे

3:09:35 मिल गया मन का मीत ये दुनिया क्या जाने मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दु दुनिया

3:09:43 क्या जाने मेरी लगी श्याम संग प्री ये दुनिया क्या

3:09:51 [संगीत] [प्रशंसा]

3:09:58 जाने बाकी बिहारी लाल

3:10:05 [संगीत] [प्रशंसा] [संगीत] [प्रशंसा] [संगीत]

3:10:11 की मोहन की सुंदर सुरतिया मोहन की सुंदर

3:10:18 सुरतिया मोहन की सुंदर सुरतिया मोहन की सुंदर सुरतिया मन में बस गई मोहन मूर्तिया

3:10:28 मन में बस गई मोहनी मूर्तिया जब से ओढी श्याम चुनरिया जब से ओढ़ी श्याम चुनरिया

3:10:37 लोग कहे हैं मोहे बावरिया लोग कहे हैं मोहे

3:10:44 मैंने छोड़ी मैंने छोड़ी मैंने छोड़ी जग की प्रीत ये दुनिया क्या जाने मैंने छोड़ी

3:10:52 जग की रीत ये दुनिया क्या जाने लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या

3:11:00 जाने मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या जाने क्या जाने कोई क्या जाने क्या

3:11:08 जाने कोई क्या जाने मुझे मिल गया मुझे मिल मुझे मिल गया मन का ये दुनिया क्या जाने

3:11:17 मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या

3:11:23 जाने अब जो है कमल वितरण आशीर्वाद स्वरूप पूज्य वसुधा श्री

3:11:30 जी के कर कमलों से किए जा रहे आप सभी झूमते हुए इस दिव्य महादान में आप स भी

3:11:37 सम्मिलित हो रहे हैं और सभी आनंदित होते हुए इस परमानंद को प्राप्त करेंगे

3:11:43 जय श्री राधे बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की प्यारी जो लोग नृत्य करना चाहते अपने

3:11:50 स्थान पर खड़े हो जाे मैं यहां बैठ के नाच रही हूं और आप लोग वहां बैठ के नहीं नाच पा रहे हो ऐसे थोड़ी आएंगे भगवान और पड़गा

3:11:59 कंबल के लिए आ रहे हैं एक एक करके आप यहां ऊपर भेजते जाएंगे सभी को मुझे मिल गया मन

3:12:06 कामी ये दुनिया क्या जाने मुझे मिल गया मन का ये दुनिया क्या जाने

3:12:13 क्या जाने कोई क्या जाने क्या जाने कोई क्या जाने मेरी लगी मेरी लगी श्याम संग

3:12:21 प्रीत ये दुनिया क्या जाने मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या

3:12:33 जाने [संगीत]

3:12:41 प्या [संगीत]

3:12:51 बरी छबी लखी मैंने श्याम की जब से छबी लखी मैंने श्याम की जब से भाई बावरी में तो तब

3:13:00 से भाई बावरी में तो तब से बांधी प्रेम की डोर मोहन से नाता तोड़ा मैंने जग से बांधी

3:13:09 प्रेम की डोर मोहन से बाधी प्रेम नाता तोड़ा मैंने जग से नाता तोड़ा मैंने

3:13:18 जग से ये कैसी ये कैसी ये कैसी निगोड़ी री

3:13:24 ये दुनिया क्या जाने ये कैसी निगोड़ी री ये दुनिया क्या जाने क्या जाने कोई क्या

3:13:32 जाने क्या जाने कोई क्या जाने मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या जाने मेरी

3:13:39 लगी श्याम संग प्रीत ये दुनिया क्या जाने एक बात

3:13:45 बताओ नृत्य करना आता नहीं कि शरमा रहे हो इतना जोर से बोलो यहां तक आए आवाज आता

3:13:52 नहीं शरमा रहे हो शरमा रहे हो तुम्हारी कोई शर्म लाज है भी जो शरमा रहे हो बैठ के

3:13:59 छोटे से हैं पिे भर के अरे थोड़ा झूम लो नाच लो कल ठाकुर आने वाला है कृष्णा आने

3:14:07 वाला है नृत्य नहीं करने आता मैं सिखाती हूं ऐसे सर प हाथ रखो और खड़े हो जाओ और

3:14:14 कमर पर हाथ रखो और ठुमके लगाने प्रारंभ कर दो कैसे जानते हो देवावर भाई भाई की शादी

3:14:21 होती है ना तो साड़िया खोल खोल के नाचती होंगी यही लोग यहां पर शर्म आ रही है अरे

3:14:27 भगवान के यहां पर नाचोगे ना तो जग में नहीं नाचना पड़ेगा और यहां नहीं नाचोगे तो

3:14:34 जग में तो नाच रहे ही हो खुद का निर्णय जग में नाचना है कि यहां नाचना है तो क्या

3:14:41 कहते हैं मोहन की सुंदर सुरतिया मोहन की सुंदर

3:14:48 सुरतिया मन में बस गई मोहनी मूर्तिया मन में बस गई मोहनी मूर्तिया मोहन की सुंदर

3:14:56 सुरतिया मोहन की सुंदर सुरतिया मन में बस गई मोहनी मूर्तिया मन में बस गई मोहनी

3:15:04 मूर्तिया छोड़ी प्या मैंने छोड़ी जग की रीत ये दुनिया

3:15:10 क्या हरि बोल थोड़ी जग की रीत ये दुनिया क्या जाने मुझे मिल गया मन का मीत ये

3:15:18 दुनिया क्या जाने मुझे मिल गया मन का मी ये दुनिया क्या जाने बाके बिहारी की देख

3:15:26 छटा देख छटा मन मन होए गयो टा पता जी बांके बिहारी की देख छटा देख छटा मेरो मन

3:15:35 होए गयो लटा पटा के के बिहारी की देख चटा देख चटा मेरो मन हो गयो लटा पटा लटा पटा

3:15:45 हरी लटा पटा लटा पटा हरी लटा पटा लटा पटा

3:15:50 हाजी लटा पटा लटा पटा हरी लटा पटा बांके बिहारी की देख छटा छटा मेरो मन है ग पटा

3:16:02 बाके बिहारी की देख छटा देख छटा मेरो मन होए गयो लटा पटा लटा पटा हरी लटा पटा लटा

3:16:11 पटा लटा पटा के बाके बिहारी की देख छटा देख छटा मेरो मन होए गयो लटा पटा बाकी

3:16:21 बिहारी की देख छटा देख छटा मेरो मन होए गयो लटा पटा और क्या कहते

3:16:28 [संगीत] हैं मन में तो श्याम नाम की मन में तो

3:16:35 श्याम नाम की मन में तो श्याम नाम की मन में तो श्याम नाम की मेरा ज्योति जला के

3:16:44 दे आएगा आएगा आएगा मेरा

3:16:49 सावरा दिल से बुला के दे आएगा मेरा सावरा

3:16:56 दिल से बुला के दे मन में तो श्याम नाम की

3:17:01 मन में तो श्याम नाम जरा ज जला के दे आएगा

3:17:08 आएगा आएगा मेरा सावरा दिल से बुला के दे

3:17:14 आएगा मेरा सांवरा दिल से बुला के दे मन

3:17:20 में तो श्याम नाम की मन में तो श्याम नाम जरा ज्योति जगा के

3:17:27 दे आएगा आएगा आएगा मेरा सावरा दिल से बुला

3:17:34 केते आएगा मेरा सांवरा दिल से बुला के

3:17:41 दे [संगीत]

3:17:54 प्यारी

3:18:09 [संगीत] प्यारी क्या कहते हैं मुकुट सिर मोर का मुकुट सिर मोर का

3:18:20 मेरे चित्र चोर का मेरे चित्र चोर

3:18:28 कानना घनश्याम के कटीले है कटार

3:18:33 केना घनश्याम के कटीले है कतार के मुकुट सिर

3:18:40 मोर का मेरे चित चोर का मुकुट सिर मोर का

3:18:47 मेरे चित चोर का नना नना नन दो नना

3:18:54 घनश्याम के कटीले कतार के दो नैना

3:18:59 घनश्याम के कटीले कतार

3:19:08 के प्यारी

3:19:16 [संगीत] बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय हो सभी

3:19:24 लोग खड़े हो जाएंगे खड़े होकर के जो है ठंडी भी बहुत है और ठंडी में सब लोग बड़े

3:19:30 ऐसे बैठे हुए हैं तो ठंडी दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है कि ठाकुर जी के सामने

3:19:36 अपनी अर्जी भी लग जाए और ठंडी भी दूर हो जाए सभी दोनों हाथ ऊपर उठा कर के बड़े भाव

3:19:42 झूमते हुए नाचते हुए ठाकुर जी के श्री चरणों में अरजी लगाएंगे बोलिए वृंदावन बिहारी लाल

3:19:49 की दो नना नना नना दो नना नना दो नैना घनश्याम के कटीले है कतार के दो नैना

3:19:59 घनश्याम के कटीले है कटार

3:20:10 के

3:20:27 प्यारे और भक्त क्या कहता

3:20:33 है सपने में रात में

3:20:40 आया सपने में रात में आया मुरली वाला

3:20:47 री मेरे दिल बस गयो श्याम जप मैं

3:20:53 माला दिल में बस गयो श्याम जप मैं माला री सपने में रात में आया

3:21:05 हो सपने में रात में आया मुरली बाला वाला

3:21:11 बाला मेरे दिल में बस गयो श्याम

3:21:16 जपरी मेरे दिल में बस गयो श्याम जप मैं

3:21:21 मालरी [संगीत]

3:21:27 हो हो सपने में रात में

3:21:39 आया सपने मेरा त में आया मुरली वाला

3:21:45 री मेरे दिल में बस गयो जप मैं माला

3:21:50 री मेरे दिल में बस गयो श्याम जप मैं माला

3:21:55 री मेरे दिल में बस गयो श्याम जप मैं

3:22:00 मालरी मेरे दिल में बस गयो श्याम जप मैं [प्रशंसा]

3:22:07 मालरी बोलिए श्रीमद भागवत पावन पुराण की जय

3:22:12 कल जो है चतुर्थ दिवस है चतुर्थ दिवस में कल यहां भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव

3:22:18 बड़े आनंद से बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा आप सभी बड़ी तैयारी से आए यहां पर सुंदर

3:22:27 बधाइयां आप सभी को दी जाएंगी आप सभी से बधाइयां ली जाएंगी और डॉक्टर साहब से

3:22:32 निवेदन है कि आप आए और आकर के भगवान की सुंदर आरती करें आपके बंधु बांधव भी साथ

3:22:38 में आकर के आरती करें हम सभी भक्त बड़े आनंद से राधा माधव फाउंडेशन के तत्वावधान

3:22:45 में वसुधा श्री जी के सानिध्य में जो है सुंदर श्रीमद् भागवत कथा को श्रवण कर रहे

3:22:52 हैं सुंदर सुंदर सत चरित्रों को श्रवण कर रहे हैं साथ ही जो भी मार्च में होने जा रहे कन्या विवाह के

3:23:00 लिए अगर सहयोग करना चाहते हैं तो आप सभी साधार आमंत्रित है हमारे 11000 कंबल वितरण

3:23:07 में अगर सहयोगी बनना चाहते तो आप सभी साद आमंत्रित हैं आप आकर के जो है इस महादान

3:23:12 में सम्मिलित होकर के इस दिव्य महादान को और भी भव्य बना सकते हैं आइए सभी खड़े

3:23:19 होकर के भगवान की सुंदर आरती करेंगे सभी भक्त खड़े हो जाएंगे भगवान की दिव्य आरती

3:23:24 करेंगे आरती के बाद आज प्रसाद वितरण जो है पीछे से किया जाएगा आरती और प्रसाद पीछे

3:23:32 वहां पर रेलिंग बनाई गई है तो वहां से सब लोग एक एक करके जाएंगे पहले माताएं बहने

3:23:38 और बच्चे जाएंगे और माताओं से निवेदन है कि बच्चों को सा साथ में लेकर जाएंगे वहां जहां प्रसाद वितरण होगा पीछे रेलिंग बनाई

3:23:45 गई और फिर भाई बंधु सभी एक एक करके बढ़िया लाइन से जाकर के प्रसाद लेंगे कल थोड़ी सी

3:23:51 असुविधा हो गई थी प्रसाद में इसलिए आज बढ़िया व्यवस्था आपकी की गई है और कोई

3:23:56 किसी को धक्का नहीं देना है आप सबने भगवान की सुंदर कथा सुनी है कथा में पूज्या श्री

3:24:03 जी के द्वारा यह बताया गया कि हमारे द्वारा किसी को कष्ट ना हो परहित सरस धर्म

3:24:09 नहीं भाई पर पीड़ा नहीं सम अमाई अगर हम दूसरे को सहयोग करते हैं तो उससे बड़ा कोई

3:24:16 धर्म नहीं है और अगर हमने किसी को धक्का दिया हमने किसी के पांव पर पांव रख दिया तो उससे बड़ा अधम काम कोई नहीं है इसलिए

3:24:23 प्रसाद वितरण में कोई भी धक्का नहीं देंगे आराम से लाइन से वहां पीछे से प्रसाद

3:24:28 लेंगे और साथ ही कल जन्मोत्सव में सभी सुंदर पीले पीले वस्त्र पहन कर के आएंगे

3:24:34 और बड़ी धूमधाम से हम सभी जन्मोत्सव मनाएंगे आइए परमात्मा की सुंदर आरती हम

3:24:40 सभी बड़े भाव से झूमते हुए ताली की सेवा करते हुए करेंगे बोलिए वृंदावन बिहारी लाल

3:24:46 की जय ओम चंद्रमा मनसो जा सक्ष सूरज वजय

3:24:52 श्रोत्रा दवाय प्राण मुखाग्नि रजत आरती अति पावन पुराण की आरती अति पावन

3:25:05 पुराण की धर्म भक्ति विज्ञान न की

3:25:12 धर्म भक्ति देन खाट की

3:25:18 महापुराण भागवत निर्मल महापुराण

3:25:24 भागवत निर्मल सुख मुख विगलिंक

3:25:31 फल सुख मुख

3:25:37 [प्रशंसा] [संगीत] बगलिर स में कल

3:25:43 परमानंद सुधरस में कल लीला रती रस निधान

3:25:51 की आरती अति पावन पुराण की कलि मल मथनी

3:25:59 ताप निवारनी कलि मल मथनी ताप

3:26:06 निवारण जन्म मृत्यु मय भव भय

3:26:12 जन्म मृत्युम भव भ हार सेवत सतत सकल सुख कारण

3:26:22 सेवत सतत सकल सुख कार सुख औषधि हरि चरित गान की

3:26:32 आरती अति पावन पुराण विषय विलास विमोह विनाशिनी

3:26:41 विषय विलास विमोह विनाशिनी विमल

3:26:47 विराग विवेक विकासिनी विमल

3:26:53 विराग विवेक विनाशिनी भगवत त्व रहस्य

3:27:00 प्रकाशिनी भगवत तत्व रहस्य प्रकाशिनी परम ज्योति

3:27:08 परमात्मा ज्ञान किया आरती अति पावन पुराण

3:27:15 की परमहंस मुनि मन उल्लास परम हंस मुनि मन

3:27:25 उल्लास रसिक हृदय रस रास

3:27:30 विलासिनी रसिक हृदय रस रास विलासिनी भुक्ति मुक्ति रति प्रेम

3:27:40 प्रकाशिनी भुक्ति मुक्ति रति प्रेम प्रकाशिनी कथा अकिंचन प्रिय सुजान की आरती

3:27:52 अति पावन पुराण की धर्म भक्ति भी ज्ञान

3:27:59 धान की आरती अति पावन पुराण की करपूर गौरम

3:28:07 करुणावतारं संसार सारम भुजगेंद्र हारम ब संतम हद अरविंद भव भवानी सहित नमा त्वमेव

3:28:16 माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधु सस त्वमेव त्वमेव विद्या दडम त्वमेव त्वमेव सर्वम मम

3:28:25 देव देव मंदार मालामल काल काल कपाल माला कित श खराय दिव्यां बराय दिगंबराय नमः

3:28:34 शिवाय च नमः शिवाय नमः शिवाय च नमः शिवाय अच्युतम केशवम रामना

3:28:41 कृष्ण दामोदरम वासुदेव हरे श्रीधरम माधवम गोपिका वल्लभ जानकी नायकम रामचंद्र भजे

3:28:49 जानकी नायकम रामचंद्र भजे जानकी नायकम रामचंद्र भ जानकी नायकम

3:28:56 राम चंद्र

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