भगवान गणेश और कार्तिकेय की परिक्रमा की कथा: एक प्रेरणादायक संदेश | अनिरुद्धाचार्य जी

हिंदू धर्म में भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन गणेश जी को “प्रथम पूज्य” के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके पीछे एक रोचक कथा है जो ज्ञान और बुद्धिमत्ता की गहरी समझ देती है।

कथा इस प्रकार है कि एक दिन भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय से कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा, वही प्रथम पूज्य कहलाएगा। कार्तिकेय का वाहन मयूर था, जो तेज गति से उड़ने में सक्षम था। इसलिए वे बिना समय गंवाए अपने वाहन पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। दूसरी ओर, गणेश जी का वाहन छोटा और धीमा चूहा था। इससे गणेश जी को संदेह हुआ कि वे इस प्रतियोगिता को कैसे जीत पाएंगे।

गणेश जी ने सोच-समझकर एक निर्णय लिया। उन्होंने विचार किया कि माता-पिता ही संसार का केंद्र और प्रतीक होते हैं। हमारे जीवन का हर पहलू माता-पिता से जुड़ा होता है, और उनकी पूजा से संपूर्ण विश्व की पूजा होती है। गणेश जी ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए माता पार्वती और शिवजी की परिक्रमा की। उनकी इस परिक्रमा को संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा के समान माना गया। इस प्रकार गणेश जी ने बुद्धि और श्रद्धा का प्रमाण दिया।

जब कार्तिकेय जी मयूर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा समाप्त करके लौटे, तब उन्होंने खुद को विजेता माना। लेकिन भगवान शिव ने गणेश जी की बुद्धिमत्ता और विवेक की प्रशंसा की, और उन्हें प्रथम पूज्य घोषित किया। यह कथा न केवल गणेश जी की महिमा को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि केवल शारीरिक शक्ति और गति से नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता और सही दृष्टिकोण से भी जीवन की बड़ी समस्याओं का समाधान संभव है।

इस कथा का एक और महत्वपूर्ण संदेश है कि माता-पिता का आदर और सम्मान सर्वोपरि है। गणेश जी ने यह दिखाया कि माता-पिता की सेवा और उनके प्रति समर्पण से बड़ा कोई कार्य नहीं होता। जब कार्तिकेय को इस बात का एहसास हुआ, तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि बुद्धि और भक्ति का कोई विकल्प नहीं होता।

गणेश जी का वाहन चूहा तर्क और विचारशीलता का प्रतीक है। चूहा निरंतर तर्कशील रहता है, जैसे कि कोई भी समस्या का समाधान खोजने में गणेश जी बुद्धिमत्ता से काम लेते हैं। चूहे पर गणेश जी का बैठना यह दर्शाता है कि विवेक और तर्कशीलता को नियंत्रित करना ही सच्ची बुद्धिमत्ता है। यही कारण है कि गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘बुद्धि के देवता’ के रूप में पूजा जाता है।

इसके साथ ही, गणेश जी की अन्य शारीरिक विशेषताएँ भी महत्वपूर्ण संदेश देती हैं। उनके बड़े कान यह संकेत देते हैं कि हमें अधिक सुनना चाहिए और कम बोलना चाहिए। उनके बड़े पेट का मतलब है कि हमें अपने जीवन में सभी अच्छे-बुरे अनुभवों को पचाने की क्षमता रखनी चाहिए, और हमारे अंदर धैर्य होना चाहिए। उनकी एकदंत आकृति हमें यह सिखाती है कि हमें अपनी कमजोरियों को स्वीकार करना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए।

इस प्रकार, भगवान गणेश और कार्तिकेय की यह कथा हमें जीवन में धैर्य, तर्कशीलता, माता-पिता के प्रति सम्मान, और बुद्धिमत्ता के महत्त्व को सिखाती है। गणेश जी को प्रथम पूज्य बनाने का निर्णय न केवल उनके प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि जीवन की जटिलताओं का समाधान बुद्धि और सही दृष्टिकोण से करने की सीख भी देता है।