क्या आप जानते हैं? ये छह गुण ही बनाते हैं किसी को भगवान | पूज्य रश्मि मिश्रा जी

पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में ईश्वर की पहचान और स्वरूप को बहुत ही गहराई से वर्णित किया गया है। भगवद गीता, पद्म पुराण, और अन्य शास्त्रों में बताया गया है कि ईश्वर या परमात्मा को परिभाषित करने वाले छह प्रमुख गुण होते हैं। इन गुणों को समझने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इनका विस्तार से वर्णन किया है।

ईश्वर को वही माना जाता है जिसमें ये छह गुण समाहित हों: ऐश्वर्य, धर्म, कीर्ति, श्री, ज्ञान, और वैराग्य। यही गुण किसी को ईश्वर बनाते हैं। इनका संपूर्ण संयोजन सिर्फ और सिर्फ भगवान में ही हो सकता है। आइए, इन गुणों को विस्तार से समझते हैं:

1. ऐश्वर्य (संपत्ति और शक्ति)

भगवान का पहला गुण है ऐश्वर्य, यानी अपार संपत्ति और शक्ति। वह सब कुछ है जो इस संसार में है – सभी संसाधन, सभी धन, और सभी सामर्थ्य। भगवान की शक्ति असीमित है। वह संसार को संचालित करते हैं और सभी जीवों की रक्षा और पालन-पोषण करते हैं।

2. धर्म (नैतिकता और न्याय)

धर्म वह सिद्धांत है जो व्यक्ति को सही और गलत के बीच का भेद समझने में मदद करता है। भगवान धर्म के प्रतीक हैं, उनका हर कार्य धर्म की ओर ही इशारा करता है। उनकी नैतिकता अटल है और वे न्यायपूर्ण होते हैं।

3. कीर्ति (यश और प्रसिद्धि)

भगवान का तीसरा गुण है कीर्ति। उनका यश अपरिमित है। भगवान की महिमा, उनकी लीलाएं, और उनके कार्य युगों-युगों तक गाए जाते हैं। उनका नाम कभी धूमिल नहीं होता। वे अनंत हैं और उनकी प्रसिद्धि भी अनंत है।

4. श्री (समृद्धि और सौंदर्य)

श्री का अर्थ है सौंदर्य और समृद्धि। भगवान के पास असीम सौंदर्य और आंतरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार की समृद्धि होती है। यह केवल भौतिक सौंदर्य तक सीमित नहीं है, बल्कि भगवान का आत्मिक सौंदर्य भी अपार है।

5. ज्ञान (ज्ञान और बुद्धि)

भगवान सर्वज्ञानी होते हैं। उनके पास हर समय, हर स्थान, और हर घटना का पूरा ज्ञान होता है। वे अज्ञान का नाश करते हैं और जीवों को सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

6. वैराग्य (अलगाव और निरासक्ति)

भगवान संसार में रहते हुए भी इससे निरासक्त होते हैं। वे किसी भी सांसारिक बंधनों में बंधे नहीं होते, जबकि उनका काम संसार के कल्याण में होता है। वैराग्य का यही गुण उन्हें सबसे महान बनाता है, क्योंकि वे हर चीज में रहते हुए भी उससे अलग होते हैं।

मनुष्य और भगवान का भेद

अब सवाल यह उठता है कि यदि किसी मनुष्य में ये छह गुण आ जाएं तो क्या वह भगवान कहलाएगा? इसका उत्तर है नहीं। क्योंकि मनुष्य में यदि इनमें से एक गुण भी आता है तो उसके साथ अहंकार का भी आगमन हो जाता है। यही अहंकार उसे भगवान बनने से रोकता है।

अहंकार व्यक्ति को अपने सत्य स्वभाव से दूर कर देता है। जब अहंकार आता है, तो समझ लीजिए कि यह आत्मा को अज्ञान में डाल देता है। यही कारण है कि कोई भी मनुष्य इन छह गुणों को पूरी तरह से धारण नहीं कर सकता, क्योंकि अहंकार उसे नियंत्रित करने लगता है।

भगवान वे हैं जिनमें यह छह गुण पूरी तरह से विद्यमान होते हैं और जिनमें अहंकार का कोई स्थान नहीं है। यही कारण है कि केवल भगवान को ही सर्वगुण संपन्न माना जाता है। मनुष्य जब तक अहंकार से परे नहीं होता, तब तक वह इन गुणों का सही ढंग से पालन नहीं कर सकता।

भक्ति के माध्यम से मुक्ति

पद्म पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इन गुणों को जानने और समझने का सबसे अच्छा माध्यम भक्ति है। भगवान की कथा सुनने और उनके नाम का जप करने से जीव को उनके निकट जाने का अवसर मिलता है।

भले ही मनुष्य ने जीवनभर गलतियां की हों, लेकिन यदि वह मरने से पहले भगवद कथा का आश्रय लेता है, तो उसे मुक्ति प्राप्त हो सकती है। भगवान के इन छह गुणों का ज्ञान, भक्ति और सत्य मार्ग पर चलने से ही प्राप्त किया जा सकता है।

इसलिए, जो बीत गया, उसे भूलकर वर्तमान को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। भगवान ने हमें जो दिया है, उसमें संतुष्टि और आनंद महसूस करना चाहिए, क्योंकि उनकी ही इच्छा सर्वोपरि है।

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