सच्चे आनंद की खोज: माया से परमात्मा की ओर | भास्करानंद जी महाराज

माया का मतलब क्या है? माया अशांति, क्लेश, अज्ञान, और अंधकार का प्रतीक है। यह उपद्रव का भी प्रतिनिधित्व करती है। इसके विपरीत, परमात्मा सुख, आनंद, शांति और ज्ञान का रूप है। परमात्मा प्रकाश का स्वरूप है। अब मैं आपसे पूछता हूँ: क्या आप दुख, अशांति, क्लेश, अज्ञान या अंधकार चाहते हैं? या फिर आप आनंद और शांति की खोज में हैं?

सभी चाहते हैं आनंद, यहां तक कि पशु-पक्षी भी दुख नहीं चाहते। इसका मतलब यह है कि हर जीवात्मा का वास्तविक लक्ष्य परमात्मा है। भले ही हम सीधे तौर पर न जानें, लेकिन अगर आप आनंद चाहते हैं, तो आप दरअसल परमात्मा को ही चाहते हैं। और यदि आप दुख चाहते हैं, तो समझें कि आप माया को चाह रहे हैं।

हमारे एक स्वामी जी हैं जिनके गणेश मंदिर में “सवा मनी” की परंपरा है। एक बार मैंने स्वामी जी से पूछा कि सवा मनी का मतलब क्या होता है। स्वामी जी ने बताया कि जब भक्तों की इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, तो वे गणेश जी को धन्यवाद देने के लिए सवा मनी कराते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि लोग सुख के लिए ही सवा मनी करते हैं। स्वामी जी ने कहा कि उन्होंने कभी भी किसी को नहीं देखा जिसने दुख के लिए सवा मनी कराई हो।

अभी भी लोग सुख के लिए ही प्रार्थना करते हैं, जबकि मां कुंती ने भी दुख की बजाय सुख की प्रार्थना की थी। मां कुंती ने कहा कि विपत्ति का सामना करने के बावजूद भी वे भगवान को ही चाहती हैं, और भगवान का नाम लेने से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलेगी।

अतः वास्तविक मनुष्य की मांग है परमात्मा। हर व्यक्ति अनजाने में ही सही, परमात्मा को मांगता है। लेकिन गड़बड़ होती है हमारी बुद्धि में, जो माया के भ्रम में चूर रहती है और सत्य मार्ग को नहीं पहचानती।

शास्त्रों के अनुसार, परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग केवल एक है: भजन। भजन का मतलब केवल माला जपने, मंदिर जाने, या श्रावण सोमवार करने से नहीं है। भजन का असली अर्थ है अपने मन को परमात्मा के चरणों में समर्पित करना। जैसे गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है, “मन मना भव,” अर्थात् अपने मन को भगवान को दे दो।

जब हम अपने मन से परमात्मा का भजन करने लगेंगे और अपने मन को परमात्मा को समर्पित कर देंगे, तब हमारी बात बन जाएगी।

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