वीडियो नारी का महत्व: आधे से पूरे होने की कहानी | अनिरुद्धाचार्य जी महाराज

नारी का महत्व और उसका योगदान किसी भी समाज और संस्कृति में अतुलनीय है। हमारी पौराणिक कथाओं और इतिहास में भी नारी को देवी के रूप में पूजा गया है। लेकिन आज के समय में, जब हम विज्ञान और तकनीक के युग में जी रहे हैं, तो कई बार हम अपने मूल्यों और संस्कारों को भूल जाते हैं।

स्त्री का महत्व: सृष्टि की आधारशिला

स्त्री के बिना पुरुष का जीवन अधूरा है। शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं है। नारी के बिना पुरुष अधूरा रहता है, और जब स्त्री और पुरुष मिलते हैं, तो ही वे एक संपूर्ण जीवन का निर्माण करते हैं। यह सच है कि पुरुष भले ही शारीरिक रूप से बलवान हो, लेकिन उसकी पूर्णता स्त्री के साथ ही संभव है। यही कारण है कि पत्नी को जीवन का आधा हिस्सा माना जाता है, क्योंकि दोनों के मिलन से ही जीवन का वास्तविक स्वरूप उभरता है।

नारी: शक्ति का प्रतीक

हमारी संस्कृति में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा, काली, कामाख्या जैसी शक्ति पीठों में देवी को ऊपर रखा गया है, जबकि देवताओं को नीचे रखा गया है। यह दर्शाता है कि नारी में शक्ति का प्रतीक निहित है।

नारी: जीवन का स्रोत

नारी ही जीवन का स्रोत है। वह अपने गर्भ में नया जीवन को जन्म देती है। मां के दर्द से ही पुरुष मर्द बनता है। यदि मां को प्रसव का दर्द न होता, तो पुरुष कभी मर्द नहीं बन पाता।

नारी: संसार की रचयिता

नारी ने ही संसार के महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया है। राम, कृष्ण, हनुमान जैसे महापुरुषों को जन्म देने में नारी का योगदान अतुलनीय है। यदि नारी न होती, तो पुरुष भी न होता।

नारी: पूर्णता का प्रतीक

पुरुष तब तक अधूरा है, जब तक नारी उसके साथ न हो। नारी को ही अर्धांगिनी कहा जाता है, क्योंकि पुरुष और नारी मिलकर ही पूर्णता प्राप्त करते हैं। पुरुष के बिना नारी और नारी के बिना पुरुष अधूरा है।

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